लखनपुरा में सुरजना की खेती और स्वचालित जीवामृत संयंत्र की तैयारी
- (दिलीप दसौंधी, खरगोन)
9 मार्च 2023, लखनपुरा में सुरजना की खेती और स्वचालित जीवामृत संयंत्र की तैयारी – निमाड़ की भूमि में ऐसा आकर्षण है कि जो भी यहाँ आता है, वह यहीं का होकर रह जाता है। सेवानिवृत्ति के बाद कोई व्यवसाय तो कोई खेती करने लग जाता है। महालेखाकार कार्यालय में वरिष्ठ लेखाकार रहे मूलत: ग्वालियर निवासी श्री कमलेश सिसोदिया भी इन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद अपनी जन्म भूमि के बजाय महेश्वर तहसील के ग्राम लखनपुरा में तीन साल पहले जमीन खरीदकर यहाँ स्वास्थ्यवर्धक सुरजने की खेती कर रहे हैं। जैविक खेती के लिए इनका जीवामृत बनाने हेतु स्वचालित संयंत्र लगाने का मामला प्रगति पर है।
श्री सिसोदिया ने कृषक जगत को बताया कि 2020 में यहां साढ़े तीन एकड़ ज़मीन खरीदी और 2021 से सुरजने की खेती कर रहे हैं। पहले दो एकड़ में सुरजने की ओडिसी प्लस किस्म लगाई। दो एकड़ में 12&6 फीट की दूरी पर 750 पौधे लगाए। एक एकड़ में 6&1 फीट की दूरी पर लगाया। एक कतार में 12 फीट का अंतर रखा। 2022 में उत्पादन शुरू हुआ। 10 टन उत्पादन हुआ। सुरजना की उपज को इंदौर में बेचा। औसत 40 रुपए किलो कीमत मिली। खर्च काटकर ढाई लाख का शुद्ध मुनाफा हुआ। सुरजने की खेती में लागत कम आती है।
जीवामृत बनाने का तरीका
श्री सिसोदिया ने कहा कि जैविक खेती में जीवामृत बहुत आवश्यक होता है। इसे बनाने की परम्परागत प्रक्रिया है, जिसमें तैयार जीवामृत की गंध बहुत तीखी होती है। इसलिए वे जीवामृत निर्माण का स्वचालित प्लांट लगाने की तैयारी कर रहे हैं। 25 हजार की लागत वाला यह प्लांट गुजरात से बुलवा लिया है। प्लेटफार्म बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस संयंत्र की क्षमता 5 घन मीटर रहेगी। रबर ट्यूब के इस संयंत्र में ऑक्सीजन नहीं जाती। इसलिए गंध नहीं आती है। इस संयंत्र में पहली बार उपयोग के दौरान 3 हजार लीटर पानी,150 किलो गाय का गोबर, 75 लीटर गौ मूत्र , 75 किलो गुड़ , 75 लीटर चावल का पानी, 75 लीटर छाछ के साथ बैक्टेरिया भी डाला जाता है। 50 दिन बाद इसे खोलने पर इसमें से जीवामृत गंधहीन और स्वच्छ जीवामृत प्राप्त होगा।
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