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बायर की पहल : धान की सीधी-बिजाई से किसान पानी के उपयोग को 40 प्रतिशत तक कम कर सकते है                

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21 अक्टूबर 2023, नई दिल्ली: बायर की पहल : धान की सीधी-बिजाई से किसान पानी के उपयोग को 40 प्रतिशत तक कम कर सकते है – संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य दिवस पर, बायर ने मनीला में छठी अंतर्राष्ट्रीय चावल कांग्रेस में सीधी-बिजाई वाली चावल (डीएसआर) प्रणाली शुरू करने की घोषणा की। रोपाई वाले धान की खेती की तुलना में सीधी-बिजाई वाले चावल की खेती करने से किसानों को पानी के उपयोग को 40 प्रतिशत तक कम करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जीएचजी) को 45 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है और किसानों के  महंगे शारीरिक श्रम पर निर्भरता को  भी 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। डीएसआर प्रणाली की शुरूआत पूरी तरह से पुनर्योजी कृषि के लिए बायर के हाल ही में घोषित दृष्टिकोण के अनुरूप है जो किसानों को अधिक बहाल करते हुए अधिक उत्पादन करने में सक्षम बनाएगी।

इन लाभों  से प्रेरित होकर, 2040 तक भारत में कुल चावल के 75 प्रतिशत खेतों में इस खेती की पद्धति को अपनाने की उम्मीद है, जबकि आज यह लगभग 11 प्रतिशत है। 2030 तक बायर ने भारत में डीएसआर प्रणाली को दस लाख हेक्टेयर में लाने की योजना बनाई है, जिससे इसके डायरेक्ट एकर्स (DirectAcres) कार्यक्रम के माध्यम से बीस लाख  से अधिक छोटे किसानों को मदद  होगी ।

बायर के क्रॉप साइंस डिवीज़न  में स्ट्रेटजी एंड सस्टेनेबिलिटी प्रमुख श्री  फ्रैंक टेरहॉर्स्ट ने कहा, “हम पुनर्योजी कृषि प्रथाओं पर आधारित संपूर्ण सिस्टम का निर्माण कर रहे हैं जो किसानों और प्रकृति के लिए समान रूप से मूल्य पैदा करते हैं और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के मुद्दे को हल करने में मदद करते हैं।सीधी बुआई वाला चावल एक ऐसी प्रणाली का उत्कृष्ट उदाहरण है जिसमें आगे चलकर सकारात्मक प्रभाव पैदा करने की भारी क्षमता है।”

बीज, फसल सुरक्षा और डिजिटल समाधानों को संयोजित करने वाली एक प्रणाली

परंपरागत रूप से, चावल किसान पहले जुताई, समतल और पानी भरे धान के खेतों में रोपाई करने से पहले नर्सरी में पौध उगाते हैं। बुवाई के बाद  पानी का स्तर समान और स्थिर रहना चाहिए ताकि पौधा मिटटी में जम सके । फसल की कटाई से कुछ समय पहले किसान खेत को सुखा देता है। आज विश्व की लगभग 80 प्रतिशत चावल की फसल इसी पद्धति से पैदा की जाती है।

अब उन्नत अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं का उपयोग करते हुए बायर उच्च पैदावार वाले जलवायु-लचीले संकर चावल डिजाइन कर रहा है जिन्हें सीधे मिट्टी में बोया जा सकता है और विशेष रूप से विभिन्न कृषि वातावरणों के लिए पैदा किया जा सकता है। मशीनों द्वारा  अधिकांश समय लेने वाली और हाथ से करने वाली कठिन  कृषि पद्धतियों को कर सकती है। इसके अतिरिक्त, छोटे किसानों को बायर के डिजिटल प्लेटफॉर्म फार्मराइज द्वारा मदद की जाती  है जो किसानों को सलाह, आवश्यक मशीनरी, अन्य इनपुट और सेवाएं  देता  है । फ़ार्मराइज़ छोटे किसानों  को कंपनी के कार्बन कार्यक्रम से भी जोड़ता है जिससे वे उत्सर्जन कम करके अतिरिक्त कमाई करने में सक्षम होते हैं।

पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने की अपार संभावना

दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी फसल, चावल, वैश्विक आबादी के आधे से अधिक का भरण-पोषण करती है। 2050 तक वैश्विक जनसंख्या 10 अरब तक बढ़ने की उम्मीद है, यह अनुमान है कि मांग को पूरा करने और कीमतों को स्थिर रखने के लिए इसी समय सीमा में चावल के उत्पादन में 25 प्रतिशत की वृद्धि की आवश्यकता होगी। वहीं जलवायु परिवर्तन में चावल का अहम योगदान है। यह अनुमान लगाया गया है कि चावल का उत्पादन कुल वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में 1.5 प्रतिशत, मीथेन उत्सर्जन में 12 प्रतिशत और दुनिया के कुल सिंचाई जल में 43 प्रतिशत तक का योगदान देता है। दुनिया भर में 15 करोड़  छोटे किसानों द्वारा चावल की खेती के परंपरागत तरीकों का उपयोग करके एक किलोग्राम अनाज का उत्पादन करने के लिए 4 हज़ार  से 5 हज़ार  लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

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