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नियमों पर संतुलन से कृषि क्षेत्र में सही पारिस्थितिकी तंत्र बनेगा: कृषि सचिव मनोज आहूजा

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01 मार्च 2024, नई दिल्ली: नियमों पर संतुलन से कृषि क्षेत्र में सही पारिस्थितिकी तंत्र बनेगा: कृषि सचिव मनोज आहूजा – पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) की कृषि-व्यवसाय समिति ने 26 फरवरी 2024 को एक राष्ट्रीय कृषि इनपुट कॉन्क्लेव का आयोजन किया। यह आयोजन “2047 तक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि इनपुट उद्योग की तैयारी” विषय पर आधारित था।

कॉन्क्लेव ने 2047 तक भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के महत्वपूर्ण लक्ष्य से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों पर विचार-विमर्श करने के लिए कृषि क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों, उद्योग विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और विचारकों को एक मंच पर आमंत्रित किया। चूंकि भारत बढ़ती आबादी की मांगों को पूरा करने का प्रयास कर रहा है, इसलिए कृषि उत्पादकता को लगातार बढ़ाने और देश की खाद्य आपूर्ति की सुरक्षा के लिए कृषि-इनपुट उद्योग की तैयारियों पर भी ध्यान केंद्रित करना अनिवार्य है।

भारत सरकार के कृषि सचिव मनोज आहूजा ने अपने उद्घाटन उद्बोधन में कहा, “जब हम 2047 के बारे में बात करते हैं तो हमें टिकाऊ खेती , रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग में कमी और जलवायु परिवर्तन के संबंध में समाधान स्वीकार करने में तत्पर रहने की आवश्यकता है। एक किसान को कृषि-इनपुट की उपयोगिता, उत्पादकता और गुणवत्ता के बारे में सही जानकारी की आवश्यकता होती है। इसके लिए सरकार और उद्योग संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं। इस क्षेत्र की नीतियों के सम्बन्ध में श्री आहूजा ने कहा कि सरकार द्वारा गुणवत्ता उत्पाद उपलब्ध कराने वालो को प्रोत्साहित करने  का पारिस्थतिकी तंत्र विकसित करने के साथ नियम-कानून का संतुलन बनाया जाता है , जो  अमानक कृषि आदान निर्माताओं को हतोत्साहित भी करता है l   

पीएचडीसीसीआई की कृषि व्यवसाय समिति के अध्यक्ष एन के अग्रवाल ने कहा, “हम खाद्य सुरक्षा में तभी सफल हो सकते हैं जब हमारे आस-पास हर किसी को पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिले जो स्वस्थ जीवन जीने के लिए हमारी आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करता हो। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसानों को शिक्षित करना सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि भले ही हमारे पास देश में सभी नवीनतम इनपुट हों लेकिन किसान इसके बारे में शिक्षित नहीं है, तो ये सभी इनपुट किसानों के लिए मूल्यवान ही नहीं हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसानों, उद्योग, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को एक साथ आगे आना होगा।

किसान विज्ञान फाउंडेशन (केएकेवी) के अध्यक्ष विजय सरदाना ने कहा, “जैसे-जैसे दुनिया बदल रही है, हमें भारत में खेती  करने के तरीके बदलना होंगे । नई  यूरोपीय ग्रीन डील कृषि रसायनों के उपयोग में 50% की कमी की बात करती है और यह भारत में हमारे खाद्य उत्पादन के तरीके को प्रभावित करेगी क्योंकि नए कानून हमारे निर्यात बाजारों की आवश्यकताओं को बदल देंगे। उचित जानकारी के बिना बीज, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे प्रमुख कृषि-आदानों का उपयोग प्रतिकूल है। हमें अपने किसानों को उपलब्ध जानकारी की गुणवत्ता में भी सुधार करने की आवश्यकता है।in विस्तार कार्यों में  निरंतर निगरानी और नियंत्रण की आवश्यकता है।”

कृषि विभाग की अपर  सचिव और लघु किसान कृषि व्यवसाय कंसोर्टियम (एसएफएसी) की प्रबंध निदेशक डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी (आईएएस) ने कहा, “बीज, उर्वरक और कृषि रसायनों के अलावा कृषि-इनपुट की तीन प्रमुख श्रेणियां भी  हैं,  पशुपालन के इनपुट जैसे पशु चारा, पूरक, मवेशियों के लिए दवाएं, मत्स्य पालन के इनपुट,उपकरण और मशीनरी। ये सभी कृषि-इनपुट किसानों द्वारा उपयोग किए जाते हैं और ये बीज, उर्वरक और कृषि रसायनों के समान ही महत्वपूर्ण हैं। हमारे पास विश्व स्तरीय कंपनियां और सरकारी संस्थान हैं जो ग्रामीण भारत में इन आदान  की आपूर्ति करते हैं और फिर भी ऐसे गांव हैं जहां ये सामान नहीं पहुंच पाते  हैं। हमें किसान समूहों के माध्यम से वितरण प्रणाली में सुधार करने की जरूरत है और इन समूहों को वितरण चैनल का हिस्सा बनाने की संभावना तलाशनी होगी। वहीँ इनकी दरों और गुणवत्ता के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए।

उद्घाटन सत्र के दौरान मुख्य अतिथियों द्वारा किसान विज्ञान फाउंडेशन के दो श्वेतपत्र ‘क्या भारत 2047 में खाद्य सुरक्षित होगा’ और ‘क्या भारत दालों में आत्मनिर्भर बनेगा’ का विमोचन किया गया। श्वेतपत्र 2047 में भारत को खाद्य सुरक्षित बनाने के लिए जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उन पर काबू पाने के लिए देश के पास मौजूद विकल्प और सरकार और उद्योग द्वारा आवश्यक हस्तक्षेप पर प्रकाश डालता है।

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