उद्यानिकी (Horticulture)

मौसम में फसल बरबादी-पोटाश की कमी तो नहीं ?

रबी में किसान मौसम के बदलते तेवरों से वर्ष-प्रतिवर्ष कहीं न कहीं अपनी फसल को नहीं बचा पाता है और उसे अत्यधिक नुकसान सहना पड़ा है। फिर वह शासन से मुआवजे की उम्मीद कर उसका इंतजार करता रहता है। गेहूं में यदि बौनी किस्में न आई होती तो किसान का क्या हाल होता इसकी हम कल्पना ही कर सकते हैं। परंतु किसान पानी व हवा से फसल के गिरने तथा पड़ोसी किसान की फसल न गिरने का कारण पता लगाने का प्रयास नहीं करता। फसल गिरने का एक प्रमुख कारण फसल को संतुलित उर्वरक न देना है। अधिकांश किसान नाइट्रोजन तथा फास्फोरस तो फसल को डीएपी के रूप में दे देते हैं। परंतु पोटाश नहीं देते। पोटाश जड़ों के विकास को बढ़ाता है, पौधों में सूखा, पाला सहने की क्षमता बढ़ाता है। कीटों तथा बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न करता है तथा पौधों को दृढ़ता प्रदान कर गिरने से बचाता है। इन सभी गुणों का प्रभाव उपज पर भी सकारात्मक पड़ता है। गेहूं की फसल में यदि आप 60 क्विं. उपज प्रति हेक्टर ले रहे हों तो इस उपज को लेने के लिये भूमि में 170 किलो नाइट्रोजन, 75 किलो स्फुर तथा 175 किलो पोटाश का हृास होगा। जबकि इन तत्वों गेहूं की फसल में 120 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फेट तथा 60 किलो पोटाश की अनुशंसा की जाती है। इस अनुशंसा अनुसार यह अनुपात 2:1:1 (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) आता है। यदि रबी फसलों में उपयोग किये गये इन तत्वों का पिछले कुछ वर्षों का अनुपात देखें तो यह अनुपात लगभग 2:1:0:12 आता है। जो एक चिन्ता का विषय है। प्रारंभ में प्रदेश की भूमि में पोटाश की कोई कमी नहीं थी। परंतु अधिक उपज देने वाली जातियों के आने के बाद भूमि में पोटाश का हृास तेजी से होने लगा और प्रदेश के कुछ जिलों मंडला, डिन्डोरी, सागर, दमोह, छिंदवाड़ा व छतरपुर में पोटाश का स्तर मध्यम तक आ गया है। अत: पोटाश का फसल में उर्वरक के रूप में देना आवश्यक हो गया है। इसके लिये किसान को प्रेरित करने की आवश्यकता है। पानी, हवा व ओलों से खराब हुई फसल का सर्वेक्षण करते समय यह आंकड़े लेना कि किसान ने फसल में कौन से उर्वरक किस मात्रा में डाले थे व पोटाश का प्रयोग किया था कि नहीं यह आंकड़े हमें कुछ निष्कर्ष निकालने में सहायक होंगे तथा पोटाश के प्रयोग के लिये किसान को प्रेरित करने का एक माध्यम भी हो सकते हैं। भविष्य में पोटाश के उपयोग के प्रचार-प्रसार के बाद इस प्रकार होने वाली हानि का मुआवजा उन्हीं किसानों को दिया जाय जिनकी फसल अनुशंसा अनुसार पोटाश देने के बाद भी नष्ट हो गयी हो।

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