बीज प्रमाणीकरण की कानूनी विसंगतियां

Share
भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि उत्पादन पर आधारित है और बीज कृषि उत्पादन का मुख्य आदान है। बीज की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए बीज अधिनियम 1966 पारित किया। उसके बाद बीज नियंत्रण आदेश 1983 की रचना की परंतु गुणवत्ता का नियंत्रण आशा के अनुरूप नहीं हो सका। वाट्सएप पर इन दिनों एक समाचार प्रसारित किया जा रहा है कि बीज की गुणवत्ता के सुधार के लिये बीज प्रमाणीकरण को अनिवार्य किया जाए। मेरा ऐसा मानना है कि सरकार बीज प्रमाणीकरण को कम्पलसरी नहीं कर पायेगी। बीज प्रमाणीकरण बीज अधिनियम 1966 में भी स्वैच्छिक था और लोकसभा के समक्ष लम्बित बीज अधिनियम में भी स्वैच्छिक है। विश्व के मात्र दो देशों – यूके एवं डेनमार्क में ही प्रमाणित बीज उत्पादन कम्पलसरी है। भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में बीज प्रमाणीकरण अनिवार्य करना असम्भव सा लगता है। मुझे लगता है कि बीज उद्योग भी इसी सोच का है कि प्रमाणीकरण आदेशात्मक न हो। इसके तुरंत लागू होने से निम्र प्रभाव पड़ सकते हैं।

एक दम झटका:- भारत में कुल उत्पादित लगभग 353 लाख क्विंटल बीज का मात्र 25 प्रतिशत ही प्रमाणित बीज है और शेष 75 प्रतिशत लेबल बीज ही बनता है। एकदम प्रमाणित बीज देश की आवश्यकताओं के अनुसार नहीं हो पायेगा और बीज की उपलब्धता में कमी आयेगी और अंततोगत्वा उत्पादन घटेगा।

प्रमाणीकरण संस्थाएं असक्षम :- बीज प्रमाणीकरण हेतु राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्थाएं भी सक्षम नहीं है क्योंकि उनके पास प्रमाणीकरण करने हेतु पर्याप्त मात्रा में स्टाफ नहीं है। एक बीज प्रमाणीकरण अधिकारी एक वर्ष में नियम के अनुसार 1000 एकड़ क्षेत्र का निरीक्षण कर सकता है परंतु आर.टी.आई. में मांगी गई सूचनाओं के अनुसार एक एसीसीओ लगभग 5000 से लेकर 12000 एकड़ तक खेत निरीक्षण करता है और लगभग 10 प्रोसेसिंग प्लांट पर सुपरविजन करता है। इससे अंदाज लगा सकते हैं कि वर्तमान में जो प्रमाणीकरण हेा रहा है वह मात्र एक औपचारिकता ही है वास्तव में बीजों का प्रमाणीकरण नहीं हैं। इतना ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय बीज प्रमाणीकरण, आर्गेनिक पदार्थ प्रमाणीकरण तथा टिशुकल्चर प्रमाणीकरण का भार अतिरिक्त है।

अपर्याप्त लैब :- यद्यपि प्रमाणित बीज शत प्रतिशत टेस्ट होकर बाजार में बिकता है। बीज प्रमाणीकरण लाजमी करने से सैम्पल की संख्या बढ़ेगी और उनको टेस्ट करने के लिए पर्याप्त मात्रा में सीड टेस्टिंग लैब नहीं हेाने से प्रमाणीकरण आदेशात्मक होने में बाधा आयेगी।

बीटी कपास प्रमाणीकरण:- बीटी कपास की जितनी भी किस्में है। वह सभी निजी बीज उद्योग की है और शासकीय अनुसंधान संस्थानों ओर विश्वविद्यालयों की कोई भी किस्म विकसित नहीं है और न ही अधिसूचित है। अत: कपास बीटी का प्रमाणीकरण सम्भव नहीं हो सकेगा। चारा फसलों, सब्जी फसलों की अधिकतर किस्में ट्रूथफूल लेबल बीज के रूप में बिक रही हैं अत: इन किस्मों को प्रमाणीकृत करना दुष्कर लगता है।

बीज की गुणवत्ता :- बीज प्रमाणीकरण को आदेशात्मक करने के पीछे बीज की गुणवत्ता मे सुधार लाने की दलील दी जाती है परंतु यह सत्य नहीं। वर्तमान बीज अधिनियम से भी गुणवत्ता बनाई जा सकती है परंतु उन्हें सही तरह से लागू करने में कृषि विभाग की अकर्मणयता, बीज उत्पादकों की बीज उद्योग से केवल धन कमाने की लिप्सा, नियमों की पालना में उदासीनता मुख्य कारण है। गुणवत्ता नियंत्रण के कुछ कारणों पर नीचे विवेचना की गई है।

रिसर्च किस्म एवं टीएल बीज उत्पादन :- बीज अधिनियम में प्रमाणित और टीएल बीज के दो वर्ग हैं। बीजों के प्रमाणीकरण के द्वारा गुणवत्ता बनाए रखने ऊपर दिया गया है। बीज उत्पादक टीएल बीजोत्पादन में अधिक रूचि लेते हैं क्योंकि वह सुगम है। लेबल बीज उत्पादन सिद्धांतों के अनुसार करें तो उनकी भी उच्च गुणवत्ता बनाई जा सकती है। टीएल बीजोत्पादन में सबसे मुख्य है किस्म विकास। बीज उत्पादक किस्म विकास की शर्त पूरी ही नहीं कर पाते। रातों रात नई किस्म का नाम रख रिसर्च वैराईटी पैदा कर देते हैं और सिलेक्शन कह कर अंधाधुध लाभ कमाते हैं। आये दिन कृषि विभाग के अधिकारी रिसर्च किस्म पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं। अत: बीज उद्योग को संयम करना होगा ।

सील लगाना :- बीज के प्रत्येक पात्र पर सील लगानी चाहिए। बिना सील लगा बीज अमान्य है। परंतु आजकल प्रमाणित बीजों पर भी सील नहीं लगती क्योंकि सील लगाने में खर्चा होता है और श्रमिकों को मेहनत करनी पड़ती है। जब बिना सील लगाए धड़ल्ले से बीज बिके तो सील लगाने की जहमत क्यों लें। टीएल बीज पर भी कम्पनी की सील लगानी चाहिए परंतु जब टीएल बीज उत्पादकों को कहा जाता है कि बीज पात्र पर सील लगाना है, तो आश्चर्यपूर्ण तरीके से पूछते हैं कि टीएल बीज के पात्र पर सील लगाना आवश्यक है। हमाम में सब नंगे है की कहावत चरितार्थ करते हुए सरकारी निगमें और निजी बीज उत्पादक समान है। कुछ निजी कम्पनियां टीएल बीज के थैलों पर सील लगाती हैं। मात्र 10 प्रतिशत प्रमाणित बीज पर मोहर लगती है और केवल 1 प्रतिशत कट्टों पर प्रमाणीकरण संस्था के लोगों की छाप आती है सील न लगाने में उत्पादकों की अवहेलना तो है ही साथ ही बीज प्रमाणीकरण अधिकारी, बीज निरीक्षक, फुटकर बीज विक्रेता तथा किसान भी जिम्मेदार है । बीज सम्बंधी विवादों में फुटकर बीज विक्रेता न्यायालय में सील बंद पैकेट न होने से कीटनाशी की तरह दलील नहीं दे सकते। मंडी टैक्स की छूट भी सील बंद बीज पर ही है।

कृषि ज्ञान :- अधिकतर बीज उत्पादक एवं बीज विक्रेता कृषि पृष्ठभूमि से नहीं है कोई कृषि विज्ञान की प्रारम्भिक शिक्षा नहीं। वर्कशाप सैमिनार में जान धन का अपव्यव समझते हैं। कृषि मैग्जीन पत्रिका मंगाना अपराध है। ज्यादातर बीज कानून की पुस्तकें अंग्रेजी माध्यम में है। पढऩा असहज है हिंदी माध्यम में खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पाते और सब कुछ होने पर कृषि और बीज कानून पढऩे का समय नहीं है। अत: यदि सरकार बीज की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए प्रत्येक प्लांट पर और विक्रय स्थल पर कृषि स्नातक और परा स्नातक लगाने की शर्त लगाए तो उनका क्या दोष? बीज सम्बंधित निगमों, प्रमाणीकरण संस्थाओं में शीर्ष अधिकारी भी कृषि पृष्ठ भूमि से नहीं। शासकीय और निजी बीज उत्पादकों के बीज विक्रय हेतु एमबीए को वरीयता दी जाती है क्योंकि उनका उद्देश्य बीज बेचना नहीं वस्तु बेचना है। कानूनों को लागू करने की प्रतिबद्धता : कृषि अधिकारी जिनके कंधों पर बीज कानूनों को लागू करने का दायित्व है वे कानून के लागू करने के प्रति गंभीर नहीं है। कानून को अपनी व्याख्या देकर नया रूप दे देते और असंगत आदेश पारित कर देते हैं जैसे विगत समय में मध्यप्रदेश-इंदौर में सब्जी बीज विक्रय लाइसेंस लेने के लिए कृषि स्नातक की उपाधि की मांग, म.प्र. नागदा से कृषि विभाग के द्वारा प्रदत्त बीज विक्रय लाइसेंस से केवल अधिसूचित किस्मों के विक्रय को अधिकृत करना, उ.प्र. के बहराइच से रिसर्च किस्मों के विक्रय पर रोक लगाना, राजस्थान-लाइसेंस लेने के लिए पीसी की मांग आदि अनेकों विसंगतियों है अत: इन कमियों के कारण लागू अधिनियम का पालन नहीं हो पा रहा है।

कड़े दण्ड प्रावधान : बीज अधिनियम 1966 का उल्लंघन करने पर प्रथम बार रूपये 500/- दण्ड है और दूसरी बार 1000/- रूपये का जुर्माना करने का प्रावधान है। 1966 में 500/- रूपये अर्थ दण्ड काफी था परंतु बीज विक्रेता न्यायालयों के चक्कर काटने से बचने के लिए 500/- रूपये दण्ड लगवाकर अपने केसा का निवारण कर लेते हैं। अत: भारत सरकार इस दण्ड को बढ़ा कर 25000/- रूपये या अधिक करें जैसे बीज विक्रय लाइसेंस लेने की फीस रूपये 50/- से बढ़ाकर 1000/- रूपये कर दी है। तब अवश्य भय होगा। आज कल व्हाटसएप में बताया जा रहा है कि दण्ड 500/- रूपये से 5000/- रूपये तक है गलत प्रचार किया जा रहा है।

बीज उत्पादन : राष्ट्रीय स्तर की सहकारिता क्षेत्र की संस्था जिनका मूल उद्देश्य सहाकारिता को बढ़ावा देना हे, सहकार की धारणा को न अपनाते हए ठेकेदारों के माध्यम से बीज उत्पादन कराती है और किसानों को लाभ न देकर राजकोषीय धन ठेकेदारों/ आर्गेनाईजर/ प्रोमोटर के माध्यम से हड़प रहे हैं। ये तथाकथित आर्गेनाइजर कोई कृषि पृष्ठ भूमि के नहीं है। इसी पथ पर कई अन्य राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएं भी चल रही हैं। निजी उद्योग भी बिना कृषि स्नातक, कृषि पृष्ठ भूमि के धड़ल्ले से बीजोत्पादन करके धर्नाजन कर रहे है। बीजोत्पादन में कृषि स्नातक की नियुक्ति अनिवार्य होनी चाहिए। बीज की गणवत्ता में सुधार लाने के लिए और बहुत कदम उठाने वांछित है तथा सरकार को कड़े नियमों का प्रावधान करना चाहिए।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *