ग्रीष्मकालीन मौसम में कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती
- डॉ. आर.पी. सिंह, डॉ. पी.एन. त्रिपाठी
- डॉ. आर.के. जायसवाल ,रितेश बागोरा, डी.पी. सिंह , डॉ. नेहा शर्मा
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि विज्ञान केन्द्र, पन्ना
31 मार्च 2022, ग्रीष्मकालीन मौसम में कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती-
पोषकीय महत्व
कद्दूवर्गीय सब्जियों को मानव आहार का एक अभिन्न अंग माना जाता है। इन्हें बेल वाली सब्जियों के नाम से भी जाना जाता है जैसे – लौकी, खीरा, तोरई, गिल्की, करेला, कद्दू, तरबूज एवं खरबूज की खेती गर्मी के मौसम में आसानी से की जा सकती है। इन सब्जियों की अगेती खेती करके किसानों द्वारा अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। पोषण की दृष्टि से यह बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें आवश्यक विटामिन, खनिज तत्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं जो हमें स्वस्थ रखने में सहायक सिद्ध होते हैं। कद्दूवर्गीय सब्जियों की उपलब्धता वर्ष में आठ से दस महीने तक रहती है एवं इसका उपयोग सलाद के रूप में (खीरा, ककड़ी) पकाकर सब्जी के रूप में (लौकी, करेला, गिल्की, तोरई) मीठे फल के रूप में (तरबूज व खरबूज) मिठाई बनाने में (लौकी व पेठा) उपयोग मुख्य: रूप से किया जाता है।
उपयुक्त भूमि एवं खेत की तैयारी
कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन दुमट व बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है क्योंकि इसमें जल निकास अच्छी तरह से हो जाता है। मिट्टी में कार्बनिक तत्व पर्याप्त मात्रा में हो साथ ही पीएच मान करीब 6 से 7.5 के मध्य हो। बीज बुवाई से पूर्व खेत की एक गहरी जुताई एवं दो तीन हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें एवं खेतों को समतल करने के लिए ऊपर से पाटा लगा दें।
खाद व उर्वरक
ज्यादातर बेल वाली सब्जियों में खेत की तैयारी के समय 15-20 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी पकी हुई गोबर की खाद व 80 किलोग्राम नत्रजन की आधी मात्रा, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व उपयोग करें एवं शेष बची हुई नत्रजन की मात्रा को 20-25 दिन एवं 40 दिन की फसल अवस्था में दें।
बीज बुवाई
खेत में लगभग 45-50 से.मी. चौड़ी तथा 30-40 से.मी. गहरी नालियां बना लें। एक नाली से दूसरी नाली की दूरी फसल की बेल की बढ़वार के अनुसार 2 से 5 मीटर तक रखें। जब नाली में नमी की मात्रा बीज बुवाई के लिए उपयुक्त हो जाये तो बुवाई के स्थान पर मिट्टी भुरभुरी करके थाले में एक स्थान पर 4-5 बीज की बुवाई करें।
बीजदर
खीरा 2-2.5 कि.ग्रा., लौकी 4-5 कि.ग्रा., करेला 5-6 कि.ग्रा., तोरई 4.5-5 कि.ग्रा., कद्दू 3-4 कि.ग्रा., खरबूजा 2.5-3 कि.ग्रा., तरबूज 4-4.5 कि.ग्रा., टिण्डा 5-6 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
बुवाई का समय
गर्मी फसल की बुवाई के लिए मध्य फरवरी से मार्च तक का समय उपयुक्त होता है।
सिंचाई
गर्मी की फसल में 6-7 दिन के अंतराल पर एवं आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करें।
उपज
खीरा 110-120, लौकी 300-350, करेला 80-100, तोरई 100-120, कद्दू 300-400, खरबूजा 150-200, तरबूज 200-250 तथा टिण्डा 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है।
सब्जियों की तुड़ाई उपरांत प्रबंधन
बेल वाली फसलें जैसे खीरा, घिया, तोरी, करेला व कद्दू में तुड़ाई कच्चे व मुलायम अवस्था में करें। फलों को डंठल सहित तोड़ें एवं इसके पश्चात् रंग व आकार के आधार पर श्रेणीकरण कर पैकिंग करें तथा पैक किये गये फलों को शीघ्र मण्डी पहुंचाये या शीतगृह में रखें।
कद्दूवर्गीय सब्जियों की विभिन्न किस्में व संकर प्रजातियां
फसल | किस्म |
लौकी | पूसा हाईब्रिड-3, पूसा संदेश, अर्का बहार, पूसा नवीन, पंत लौकी चार, पूसा संतुष्टि, पूसा समृद्धि |
करेला | पूसा विश्ेाष, काशी मयूरी, पूसा दो मौसमी, पूसा हाईब्रिड 2 |
तोरई | चिकनी तोरी – पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, पूसा चिकनी एवं धारीदार तोरी-पूसा नसदार, पूसा नूतन एवं सतपुतिया |
खीरा | पूसा संयोग, पूसा बरखा, पूसा उदय, पूसा हाईब्रिड 1 |
तरबूज | सुगर बेबी, दुर्गापुर मीठा, अर्का मानिक |
खरबूज | पूसा मधुरस, अर्का मधु, हरा मधु, अर्का राजहंश, दुर्गापुर मधु |
कद्दू | पूसा विश्वास, पूसा विकास, पूसा हाईब्रिड 1 |
पेठा | पूसा उज्जवले |
टिण्डा | पंजाब टिण्डा, अर्का टिण्डा |
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