किसान संगठित हो, व्यापारी भी बने
छत्तीसगढ़ के किसानों ने उनके द्वारा उगाई जाने वाली परम्परागत फसलों रागी, कोदो-कुटकी, चावल तथा अन्य कृषि उत्पादों के विक्रय हेतु एक कम्पनी स्थापित की है ताकि उन्हें अपने उत्पादों के उचित दाम मिल सकें। बस्तर के किसानों का यह एक साहसिक कदम है और यह छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों के किसानों के लिये प्रेरणा के स्रोत के रूप में कार्य करेगा, पिछले कुछ वर्षों से कृषि उत्पादों को आकर्षक पेकिंग में रखकर ऊंचे दामों में बेचा जा रहा है। यह कदम व्यापारियों द्वारा उठाये गये हैं, इससे किसानों द्वारा उनके उत्पाद के मूल्य में कोई लाभ नहीं मिलता। किसानों द्वारा कम्पनी खोलकर अपने उत्पादों को बेचने से उनके अधिक लाभ में कुछ वृद्धि तो होगी, परन्तु हमें कुछ आगे बढ़कर अपने कृषि उत्पादों का उपभोक्ता के रुचि अनुसार डालकर अपनी आर्थिक दशा सुधारने के प्रयास करने होंगे। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान के किसान कुछ ऐसे कृषि उत्पाद उपजाते हैं जिन्हें देश में उनके क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। एक बड़ी कम्पनी ने मध्यप्रदेश के सीहोर क्षेत्र में होने वाले गेहूंं को आटे में परिवर्तित कर पूरा फायदा उठाया है और उठा रहा है। यदि मध्यप्रदेश के गेहूं उगाने वाले किसान संगठित होकर आटे बनाने का यह कार्य करते तो सीहोर के अतिरिक्त अशोकनगर, विदिशा, उरई नाम से बिकने वाले आटे को देश के अन्य क्षेत्रों के उपभोक्ता भी उत्तम चपाती का आनन्द ले सकते थे। किसानों तथा उनके द्वारा इस कार्य के लिए बनाई गई सहकारी संस्थाओं को भी नाम मिलता तथा यह किसानों का आर्थिक लाभ के साथ सम्मानजनक जिन्दगी भी देता।
गेहूं के अतिरिक्त तीनों राज्यों में धान, धनिया, मिर्च, लहसुन, अदरक तथा बहुत से अन्य फसलों के भी क्षेत्र हैं जहां इन उत्पादों में मूल्य वृद्धि कर किसानों की आय को सरलता से दुगना-तिगुना किया जा सकता है।
आवश्यकता इस बात की है कि किसान आपसी बिना मतलब के मतभेद भुलाकर एक-दूसरे पर विश्वास कर आगे बढ़ें और इस दशा में सोचें। छत्तीसगढ़ के किसानों द्वारा कम्पनी बनाना तथा अपने कृषि उत्पादों की विक्रय व्यवस्था करना उन्हें प्रेरणा दे सकता है। अन्यथा किसान अपनी दशा पर रोता रहेगा और जीवन से निराश होकर आत्महत्या करता रहेगा और व्यापारी उसकी मेहनत से उत्पादित फसलों का उपयोग कर फायदा उठा कर सम्पन्न होते रहेंगे।