जिद्दी खरपतवारों का सटीक इलाज
दूब, मोथा, कांस जैसे जिद्दी खरपतवार उत्पादन वृद्धि के रोड़ा हैं।
दूब – दूब घास एक बहुवर्षीय एक पत्री खरपतवार है, जिसकी जड़ें बहुत ज्यादा फैलती हैं। कभी-कभी बीजों से भी पौधे बनते हैं। नम व गर्म मौसम में अधिक बढ़वार करता है, वैसे पूरे साल ही वृद्धि करता रहता है मुख्यत: इनका खरीफ की फसलों में ज्यादा प्रकोप होता है। यह एक बहुत अधिक शाखाओं वाली विस्तृत रूप से रेंगने वाली घास है, जसकीे सतह के नीचे कंद होते हैं।
तना- प्राय: चपटा, जमीन से चिपका परन्तु कभी-कभी कुछ ऊपर की ओर उठा हुआ जिस पर 10-40 से.मी. उठने वाले फूलों की शाखाएं होती है, जिसमें भूमि की सतह के नीचे कंदों की एक विस्तृत श्रंखला होती है।
पत्तियां: छोटी 2-10 से.मी. लम्बी और 4 मि.मी. तक चौड़ी नीले से हरे रंग की होती है,जिनकी निचली सतह चिकनी और ऊपरी रुएंदार होती है और किनारे खुरदरे होते हैं। ऊपर तनों पर छाए होते हैं जो उसके पत्र से संधिस्थल पर कुछ लम्बे रोमों से ढ़का सा रहता है।
नियंत्रण- ग्रीष्मकालीन जुताई के कारण प्रकंद धूप में सूख जाते हैं। तथा घास नष्ट हो जाती है। लगातार जुताई से इस घास-पात का उन्मूलन हो सकता है। खेत में मूंग, लोबिया, सोयाबीन आदि सघन छायादार फसल बोने से अधिकांश घास नष्ट हो जाती है। गर्मियों की जुताई से 2 सप्ताह पूर्व पैराक्वाट खरपतवार की 1 किलोग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़कें फिर इसके बाद कोई फसल बोयें। डेलापान या अमीट्रोल की 2 किलोग्राम मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में मध्य मई मेें जुताई जून के प्रारंभ में करें। कपास या मक्का, डेलापान से उपचारित खेत में दो सप्ताह बाद बोयें।
मोथा- यह साइप्रेसी कुल का खरपतवार है। इसे अंग्रेजी में लट ग्रास कहते हैं। हिन्दी में इसे मोथा कहते हैं। यह एक बहुवर्षीय खरपतवार है। इसमें फैलने वाला भौमिक तना होता है। इसी तने पर नट्स या ट्यूबर्स बनते हैं। इन्हीं नट्स से वायवीय तने निकलते हैं। जो फूल तथा फल उत्पन्न करते हैं। ट्यूबर्स में खाद्य पदार्थ सुरक्षित रहता है। इसी के सहारे मोथा प्रतिकूल परिस्थितियों मे सुषुप्त अवस्था में अपना जीवन यापन करता है। पतली-पतली पत्तियां भी इस कार्य में सहायता पहुंचाती हैं। इसके नट्स अधिक गहराई तक भूमि में पाये जाते हैं। इसकी जड़ों में गांठे बन जाती है। इसकी संख्या प्रत्येक पौधे में चार-पांच से लेकर बारह या इससे अधिक भी होती है। बहुवर्षीय होने के कारण प्रति वर्ष अपना प्रसारण करते रहते हैं और बीजोत्पादन होता रहता है। यह शुष्कता सहन करने की क्षमता रखता है, तथा नम दशा उपस्थित होने पर फिर बढऩा तथा वानस्पतिक वृद्धि करना प्रारंभ कर देता है। यह भूमि से प्रचुर मात्रा में खाद्य पदार्थ तथा नमी का शोषण करता है। फसलों की जड़ों की वृद्धि को रोकता है। इस प्रकार फसलों की वानस्पतिक वृद्धि भी रूक जाती है। अपेक्षाकृत मक्का,अरहर, ज्वार की फसलों को अधिक हानि पहुंचाता है। 50-75 प्रतिशत तक फसल की उपज मे क्षति पहुंचती है। मोथा भारी संख्या में बीज उत्पन्न करता है। बीज बहुत छोटे और हल्के होते हैं जो हवा द्वारा चारों ओर प्रसारित होती है। किन्तु बीजों में अंकुरण क्षमता बहुत ही कम होती है।
रोकथाम व नष्ट करने के उपाय – निंदाई-गुड़ाई इस प्रकार करते रहें कि तीन वर्ष तक इसके वायुमंडलीय भागों को बढऩे का अवसर न मिले। गर्मी की जुताई बहुत लाभकारी सिद्ध हुई है। इससे ट्यूबर्स भूमि की ऊपरी सतह पर लाये जाते हैं, जहां सूर्य की प्रचंड धूप इसको नष्ट कर देती है। खरपतवार से ग्रसित भूमि में सनई की हरी खाद की फसल बोई जाए। धान-बरसीम का शस्य-चक्र अपनाना बहुत उपयोगी रहेगा। गर्मियों में गहरी जुताई के साथ-साथ 2,4- डी सोडियम साल्ट (3 किलोग्राम /हेक्टेयर) को 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव वर्षा प्रांरभ होने से पूर्व ही करें। खेत अगर परती हो तो प्रत्येक बार खेत की जुताई, मौथे के 15-20 दिन के होते ही कर दीजिए।
कांस – कांस घास कु ल का खरपतवार है। यह बहुत गहरी जड़ वाला, शीघ्रता से प्रसार करने वाला बहुवर्षीय खरपतवार है। यह कृषि योग्य तथा बेकार पड़ी हुई भूमि में अधिक मात्रा में पाया जाता है। नम तथा नीची भूमियों तथा नदियों की घाटी में इसकी प्रचुरता से वृद्धि होती है। यह वर्षा ऋतु के अन्त में फूलता है। सितम्बर में भूमि की किस्म के अनुसार पौधे 1.5 से 5 मीटर तक लम्बे होते हैं। जड़े 3 से 7 मीटर की गहराई तक भूमि में पाई जाती है। जहां कांस के पौधे उगते हैं,वहां की संपूर्ण भूमि में जड़ों का जाल बिछ जाता है। कांस का पौधा अपेक्षाकृत सब से अधिक नमी तथा खाद्य पदार्थ का ह्रास करता है। इस प्रकार भूमि की उर्वराशक्ति बहुत ही शीघ्र नष्ट हो जाती है और फसल की उपज बहुत ही घट जाती है। अधिक प्रकोप होने पर खेत मेंं कोई फसल नहीं उगाई जा सकती है। वर्षा समाप्त होने पर सितम्बर-अक्टूबर में कांस पर फूल आते हैं। इसके बीज बहुत बारीक तथा हल्के होते हैं। इसलिए ये वायु तथा जल द्वारा बड़ी सुगमता पूर्वक फैल जाते हैं। एक बार बीज द्वारा उगने पर फिर कांस राइजोम्स द्वारा ही पैदा होता है प्राय: ऐसा देखा गया है कि कांस पहली साल बीज पैदा नहीं करता वरन वानस्पतिक वृद्धि ही करता है। दूसरे साल के बाद कांस हर साल बराबर फूलता-फ लता है। फसलों की उपज तथा भूमि की उर्वरा शक्ति को कांस सबसे अधिक घटाता है। गहरी जड़ें होने के कारण यह सूखे को बड़ी सफलतापूर्वक सहन कर लेता है।
नियंत्रण उपाय- ट्रैक्टर या बैल-चालित उपकरणों से गहरी जुताई करके इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। तवेदार हल से जुताई 12-15 से.मी. गहरी करनी चाहिए। खरपतवार ग्रस्त क्षेत्र को जलमग्र करके भी इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इस खरपतवार को किसी तेजी से बढऩे वाली बरसाती फसल दबा कर भी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है खरपतवार के भूमि के ऊपर रहने वाले भागों को निरन्तर काट कर भी इसको नियंत्रित किया जा सकता है। खरीफ में कांस से ग्रसित खेत में धान की फसल लेना एक अच्छा नियंत्रण का उपाय है। इस खरपतवार के प्रकंदों को नष्ट करने के लिए फेनेक खरपतवार नाशक रसायन की 3 किलोग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में प्रयोग करें। छिड़काव के बाद रसायन को मिट्टी में भली-भांति मिला लेना चाहिए।