अमरूद के कीट-रोग
फल मक्खी- यह मक्खी बरसात के फलों को हानि पहुंचाती है। यह फल के अंदर अण्डे देती है जिनमें मेगट पैदा होकर गूदे को फल के अंदर खाते है।
नियंत्रण- ग्रसित फलों को नष्ट करें तथा 0.02 प्रतिशत डायजिनान या 0.05 प्रतिशत से 0.1त्न मेलाथियान का छिड़काव करें।
मिलीबग- ये कीड़े नये प्ररोहों पर चिपके रहते है तथा रस चूसते हैं, जिससे फूल पैदा नहीं होते है।
नियंत्रण- 1 भाग निकोटीन सल्फेट, 600 भाग पानी में घोलकर छिड़कें । तथा अधिक ग्रसित शाखाओं की काटछाट कर नष्ट कर दें व मेटासिस्टाक्स 0.05 प्रतिशत का छिड़काव करें।
छाल खाने वाली इल्ली– यह पौधे की शाखाओं में छेद बनाकर छिलका खाती है। प्रभावित प्ररोहों पर काले जाले बन जाते हैं। इन जालों में कीड़ों का मल पदार्थ इक होता है। ये इल्लियां इन्ही जालों के अंदर हानि पहुंचाती है।
नियंत्रण- छिद्रों में पेट्रोलियम या 40 प्रतिशत फार्मलीन डालें चाहिए या पेराडाइक्लोरोबेंजीन का चूर्ण छिद्रों में भरकर उनको चिकनी मिट्टी से बंद कर लें।
सूखा रोग- अमरुद उत्पादन में यह सबसे बड़ी समस्या है। इसमें शाखाओं ऊपर से सूखनी शुरू होती है तथा पूरी सूख जाती है तथा बाद में पूरा पौधा सूख जाता है। यह एक कवक द्वारा पैदा होता है। यह वर्षा ऋतु में सबसे अधिक देखा जाता है।
नियंत्रण- प्रभावित भागों को काटकर तुरंत नष्ट कर दें जिससे आसपास के पौधे में यह न फैल सके। पौधे के तनों पर बार्डो पेस्टिंग करें व रिडोमिल 0.2 प्रतिशत दवाई थाले में ड्रेचिंग करें।
फलों का सडऩा- यह फायटोप्थोरा पेरासिटिका कवक द्वारा होता है। यह अधिक आद्र्रता के कारण पहले फलों पर पानी भरे धब्बे दिखाई पड़ते हैं तथा बाद में पूरे पर फैलकर उसे गला देते हैं।
नियंत्रण- 2:2:50 बोर्डोमिश्रण का छिड़काव करें या डाइथेन जेड 78 0.2 प्रतिशत का पौधों पर छिड़काव करें।
उकठा रोग- अमरुद में उकठा रोग का प्रकोप क्षारीय भूमि में जिसका पीएच 7.5 से 9.5 तक हो उसमें अधिक होता है। यह फफूंद के द्वारा फैलता है जिसमें विशेष रुप से फ्यूजेरियम स्पेसीज माक्रोफोमिना फासकोलिना और सेफालोस्पोरियम स्पेसीज प्रमुख है-
रोकथाम-
- स्वस्थ पौधों को 0.1 प्रतिशत 8 क्यूनोलीन सल्फेट से इन्हेक्ट करें।
- सभी सूखे पौधे और सूखी टहनी को निकाल दें।
- मार्च, जून और सितम्बर माह में छटाई करके प्रत्येक पौधे के थाले में बाविस्टीन डाला जाये। रोगग्रसित भाग को काट के बेनोमाईल कार्बेंडाजिम के 20 ग्राम को पानी में घोल बना कर प्रति पौधा डाला जायें।
- मुरझाये हुए पौधों में 0.5 प्रतिशत मेटासिस्टाक्स और जिंक सल्फेट के मिश्रण का छिड़काव करें।