गेहूं बुआई के तरीके
गतांक से आगेबीज दर एवं पौध अंतरण – चुनी हुई किस्म के बड़े-बड़े साफ, स्वस्थ और विकार रहित दाने, जो किसी उत्तम फसल से प्राप्त कर सुरक्षित स्थान पर रखे गये हो, उत्तम बीज होते हैं । बीज दर भूमि में नमी की मात्रा, बोने की विधि तथा किस्म पर निर्भर करती है। बोने गेहूँ की खेती के लिए बीज की मात्रा देशी गेहूँ से अधिक होती है । बोने गेहूँ के लिए 100-120 किग्रा. प्रति हेक्टर तथा देशी गेहूँ के लिए 70-90 किग्रा. बीज प्रति हेक्टर की दर से बोते है। असिंचित गेहूँ के लिए बीज की मात्रा 100 किलो प्रति हेक्टर व कतारों के बीच की दूरी 22 – 23 से. मी. होनी चाहिये। समय पर बोये जाने वाले सिचिंत गेहूं में बीज दर 100 – 125 किलो प्रति हेक्टेयर व कतारों की दूरी 20-22.5 से. मी. रखनी चाहिए। देर वाली सिंचित गेहूं की बोआई के लिए बीज दर 125-150 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पंक्तियों के मध्य 15 – 18 से. मी. का अन्तरण रखना उचित रहता है। बीज को रात भर पानी में भिगोकर बोना लाभप्रद है। भारी चिकनी मिट्टी में नमी की मात्रा आवश्यकता से कम या अधिक रहने तथा बोआई में बहुत देरी हो जाने पर अधिक बीज बोना चाहिए । मिट्टी के कम उपजाऊ होने या फसल पर रोग या कीटों से आक्रमण की सम्भावना होने पर भी बीज अधिक मात्रा में डाले जाते हैं । प्रयोगों में यह देखा गया है कि पूर्व – पश्चिम व उत्तर – दक्षिण क्रास बोआई करने पर गेहूँ की अधिक उपज प्राप्त होती है। इस विधि में कुल बीज व खाद की मात्रा, आधा-आधा करके उत्तर-दक्षिण और पूर्व – पश्चिम दिशा में बोआई की जाती है। इस प्रकार पौधे सूर्य की रोशनी का उचित उपयोग प्रकाश संश्लेषण में कर लेते हैं, जिससे उपज अधिक मिलती है। गेहूँ मे प्रति वर्गमीटर 400-500 बालीयुक्त पौधे होने से अच्छी उपज प्राप्त होती है।
बीज की गहराई – बोने गेहूं की बोआई में गहराई का विशेष महत्व होता है, क्योंकि बौनी किस्मों में प्राकुंरचोल की लम्बाई 4 – 5 से. मी. होती है। अत: यदि इन्हे गहरा बो दिया जाता है तो अंकुरण बहुत कम होता है। गेहूं की बौनी किस्मों को 3-5 से.मी. रखते है। देशी (लम्बी) किस्मों में प्रांकुरचोल की लम्बाई लगभग 7 सेमी. होती है। अत: इनकी बोने की गहराई 5-7 सेमी. रखें।
बोआई की विधियाँ – आमतौर पर गेहूँ की बोआई चार विधियों से (छिटककर, कूड़ में चोगे या सीडड्रिल से तथा डिबलिंग) से की जाती है। गेहूं बोआई हेतु स्थान विशेष की परिस्थिति अनुसार विधियाँ प्रयोग में लाई जा सकती है:
छिटकवाँ विधि : इस विधि में बीज को हाथ से समान रूप से खेत में छिटक दिया जाता है और पाटा अथवा देशी हल चलाकर बीज को मिट्टी से ढक दिया जाता है। इस विधि से गेहूँ उन स्थानों पर बोया जाता है, जहाँ अधिक वर्षा होने या मिट्टी भारी दोमट होने से नमी अपेक्षाकृत अधिक समय तक बनी रहती है । इस विधि से बोये गये गेहूँ का अंकुरण ठीक से नहीं हो पाता, पौध अव्यवस्थित ढंग से उगते हंै, बीज अधिक मात्रा में लगता है और पौध यत्र-तत्र उगने के कारण निराई-गुड़ाई में असुविधा होती है परन्तु अति सरल विधि होने के कारण कृषक इसे अधिक अपनाते है ।
हल के पीछे कूड़ में बोआई : गेहूँ बोने की यह सबसे अधिक प्रचलित विधि है । हल के पीछे कूड़ में बीज गिराकर दो विधियों से बुआई की जाती है –
(अ) हल के पीछे हाथ से बोआई (केरा विधि): इसका प्रयोग उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ बुआई अधिक रकबे में की जाती है तथा खेत में पर्याप्त नमी रहती हो। इस विधि में देशी हल के पीछे बनी कूड़ों में जब एक व्यक्ति खाद और बीज मिलाकर हाथ से बोता चलता है तो इस विधि को केरा विधि कहते हंै। हल के घूमकर दूसरी बार आने पर पहले बने कूंड़ कुछ स्वयं ही ढंक जाते है। सम्पूर्ण खेत बो जाने के बाद पाटा चलाते हैं, जिससे बीज भी ढंक जाता है और खेत भी चोरस हो जाता है ।
(ब) देशी हल के पीछे नाई बाँधकर बोआई (पोरा विधि): इस विधि का प्रयोग असिंचित क्षेत्रों या नमी की कमी वाले क्षेत्रों में किया जाता है। इसमें नाई, बास या चैंगा हल के पीछे बंधा रहता है। एक ही आदमी हल चलाता है तथा दूसरा बीज डालने का कार्य करता है। इसमें उचित दूरी पर देशी हल द्वारा 5-8 सेमी. गहरे कूड़ में बीज पड़ता है । इस विधि में बीज समान गहराई पर पड़ते है जिससे उनका समुचित अंकुरण होता है। कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए देशी हल के स्थान पर कल्टीवेटर का प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि कल्टीवेटर से एक बार में तीन कूड़ बनते हैं।
सीड ड्रिल द्वारा बोआई : यह पोरा विधि का एक सुधरा रूप है। विस्तृत क्षेत्र में बोआई करने के लिये यह आसान तथा सस्ता ढंग है। इसमें बोआई बैल चलित या ट्रैक्टर चलित बीज वपित्र द्वारा की जाती है। इस मशीन में पौध अन्तरण व बीज दर का समायोजन इच्छानुसार किया जा सकता है। इस विधि से बीज भी कम लगता है और बोआई निश्चित दूरी तथा गहराई पर सम रूप से हो पाती है जिससे अंकुरण अच्छा होता है । इस विधि से बोने में समय कम लगता है ।
डिबलर द्वारा बोआई: इस विधि में प्रत्येक बीज को मिट्टी में छेदकर निर्दिष्ट स्थान पर मनचाही गहराई पर बोते हंै। इसमें एक लकड़ी का फ्रेम को खेत में रखकर दबाया जाता है तो खूटियों से भूमि मे छेद हो जाते हैं जिनमें 1-2 बीज प्रति छेद की दर से डालते हैं। इस विधि से बीज की मात्रा काफी कम (25-30 किग्रा. प्रति हेक्टर) लगती है परन्तु समय व श्रम अधिक लगने के कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है।