गन्धक का महत्व
फसलों में गन्धक की आवश्यकता
आवश्यकता की दृष्टि से गंधक और फास्फोरस की मात्रा दलहनी और तिलहनी फसलों में धान्य फसलों की अपेक्षा अधिक आंकी गई है। धान्य फसलों में गन्धक और फास्फोरस का अनुपात 1:3 का होता है। जब कि यही अनुपात दलहनी फसलों में 1:0.8 और तिलहनी फसलों में 1:0.6 का पाया गया है। इससे स्पष्ट हो जाता है, कि तिलहनी फसलें गंधक का अवशोषण फास्फोरस की तुलना में लगभग दो गुनी मात्रा में करती है।
पौंधों में गंधक के कार्य
- गंधक कार्बनिक पदार्थो की संरचना का एक अभिन्न रंग है। यह पौधों के क्लोरोफिल के निर्माण में सहायक होता है, जो कि पौधों के लिये अत्यन्त आवश्यक है और यह पौधों की वानस्पतिक और जड़ों की वृद्धि में मदद करता है।
- यह सल्फर युक्त अमिनो अम्ल जैसे- सिस्टाइन सिग्टीन, मिथियोनीन और प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक होता है।
- सल्फर युक्त विटामिन्स और एन्जाइम बनाने में सहायक है और इन्जाइम की क्रियाशीलता को उत्प्रेरित करता है।
- यह फलदार पौधों में ग्रंथियों के बनाने में सहायता करता है। जससे दलहनी फसलों में वायुमण्डलीय नाइट्रोजन की यौगिकीकरण करने की क्षमता बढ़ती है। यह बीज बनाने को भी प्रोत्साहित करता है।
- गन्धक विभिन्न फसलों की उपज और गुणवत्ता बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तिलहनी फसलों में उपज के साथ-साथ तेल की मात्रा में बढ़ोत्तरी लाता है। दलहनी फसलों में प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि करता है, गन्ने के रस के गुणों में सुधार करता है। ज्वार की चरी में उत्पन्न होने वाले विषैले पदार्थ हाइड्रोसायनिक अम्ल की मात्रा में कमी लाता है।
- लहसुन, प्याज और सरसों वर्गीय पौधों में जो गन्ध आती है। वह गन्धक से बने पदार्थ ग्लूकोसाईड के कारण होती है।
- सल्फर की उचित मात्रा के फलस्वरूप यह पौधों में ठंड और पाले से बचनेे की सहनशक्ति को बढ़ाता है। राष्ट्रीय एवं प्रदेश स्तर पर किये गये विभिन्न परीक्षणों के परिणामों से पता चलता है कि एक किलो ग्राम गन्धक से 12 किलोग्राम गेंहूं , 5 किलो मूंगफली, 7 किलोग्राम सरसों के दानों और 74 किलोग्राम कन्द की बढ़ोत्तरी होती है। गंधक के उपयोग से सरसों में 8.5 प्रतिशत में मूंगफली में 5.1 प्रतिशत सूरजमुखी में 3.6 प्रतिशत, राई में 7.3 प्रतिशत और सोयाबीन में 6.8 प्रतिशत तेल की बढोत्तरी होती है।
भूमि में गन्धक की कमी होने के साथ ही पौधों पर लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं। ये लक्षण सभी फसलों में अलग-अलग होते हैं। गंधक की कमी के लक्षण सर्वप्रथम नवीन पत्तियों पर दिखाई देते हैं, ये पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधों की बढ़वार कम हो जाती है। तना कड़ा, खुश्क, पतला और बौना दिखाई देता है। गंधक की कमी के लक्षण नाइट्रोजन की कमी के लक्षणों से काफी मिलते-जुलते हैं, अंतर यह है कि नाइट्रोजन के अभाव में पुरानी पत्तियां पहले पीली पड़ती हैं और नई पत्तियां हरी बनी रहती हैं जबकि गन्धक की कमी से नई पत्तियां पीली पड़ती हैं पुरानी पत्तियां हरी बनी रहती हैं। अधिक कमी के अभाव में पूरा पौधा पीला पड़ जाता है। खाद्यान्न फसलों में इसकी कमी से परिपक्वता की अवधि बढ़ जाती है। पौधों की पत्तियों का रंग हरा रहते हुये भी बीच का भाग पीला हो जाता है। तिलहनी और दलहनी फसलों में गन्धक की कमी के लक्षण अधिक उभरते हैं, सरसों वर्गीय फसलों में गन्धक की कमी के कारण फसल की प्रारंभिक अवस्था में पत्ती का निचला भाग बैंगनी रंग का हो जाता है। |
गंधक युक्त उर्वरकों का चयन
गंधक युक्त उर्वरकों का चयन उसमें उपस्थित गंधक की मात्रा उसकी उपलब्धता और खेती करने के ढंग पर निर्भर करता है। गन्धक युक्त उर्वरकों में सामान्यत: जिप्सम, सिंगल सुपर फास्फेट, पोटेशियम सल्फेट, पायराइट्स और अमोनियम सल्फेट आदि आमतौर पर किसानों द्वारा उपयोग किया जाता है। परन्तु जिन मिट्टियों में जस्ता और गन्धक दोनों की कमी हो तो जिंक सल्फेट अच्छा रहता है। जिप्सम जिसका देश में प्रचुर मात्रा में भंडार है फसल में गंधक के रूप में प्रयोग किया जाता है। क्षारीय और उदासीन मृदाओंं के लिये सिंगल सुपर फास्फेट तथा जिप्सम आदि सर्वश्रेष्ठ गन्धकयुक्त उर्वरक हैं जबकि अम्लीय मृदाओं के लिये अमोनियम सल्फेट, पोटेशियम सल्फेट और मैंगनीशियम सल्फेट अच्छे साबित हुये हैं।
गंधक की कमी का निदान
गंधक के उपयोग का समय इसके स्त्रोत पर निर्भर करता है। जब गंधक उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाये तो सभी फसलों के लिये उसे अन्तिम जुलाई के समय उपयोग करना चाहिये। जिससे अच्छी तरह से मिट्टी में मिल जाये। गन्धक युक्त उर्वरकों को महीन पाउडर के रूप में खेत में फसल बोने के 20-25 दिन पहले मिलाना चाहिये नहीं तो उससे उचित लाभ नहीं मिल पाता है, क्योंकि सल्फर उपलब्ध रूप में बदलने में समय लगता है। मूंगफली में फली बनते समय गंधक की पर्याप्त आपूर्ति के लिये दो भागों में (बुवाई व फली बनते समय) बांटकर डालने की सलाह दी जाती है।
गंधक के पूर्ति वाले उर्वरक | ||
उर्वरक | गंधक की मात्रा (% में) | मृदा में प्रयोग की दर |
जिप्सम | 13 | 50-60 किलो/हेक्टर |
सिंगल सुपर फास्फेट | 12 | फसलों की मांग के अनुसार |
पोटेशियम सल्फेट | 18 | फसलों की मांग के अनुसार |
पायराइट | 22 | 25-30 किलो /हेक्टर |
अमोनियम सल्फेट | 24 | 25-35 किलो /हेक्टर |
जिंक सल्फेट | 11 | 25-30 किलो/हेक्टर |
फास्फो जिप्सम | 16 | 25-50 किलो/हेक्टर |
- डॉ. ए.के. सिंह
- डॉ. आशीष त्रिपाठी
- सिद्धार्थ नायक