संपादकीय (Editorial)

नई सरकार ला सकती है खेती के नियमों में सुधार

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29 अप्रैल 2024, नई दिल्ली(शशिकांत त्रिवेदी): नई सरकार ला सकती है खेती के नियमों में सुधार – चुनावों के बाद नई सरकार खेती के क्षेत्र में क्या बदलाव कर सकती है? अभी इस सवाल का अभी उत्तर देना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि चुनाव के नतीजे आने और नई सरकार कामकाज शुरू करने में थोड़ा वक्त लेती है। फिर भी यदि खेती के कानूनों के रद्द हो जाने के बाद नई सरकार के सामने कुछ कृषि क्षेत्र के आगत (इनपुट) में सुधार करने पर विचार कर सकती है। बीज, उर्वरक और पौधों के रसायनों को नियंत्रित करने वाले नियमों में सुधार ला सकती है। सूत्रों के मुताबिक मौजूदा सरकार यदि वापस आती है तो किसानों के लिए कुछ और अधिक आसानी सुनिश्चित करने के लिए उर्वरकों पर सब्सिडी को और अधिक नीम-लेपित यूरिया की सफलता को आगे बढ़ाने के लिए उर्वरक सब्सिडी को अधिक प्रभावी ढंग से प्रशासित करने और लीकेज और डायवर्जन को कम करने के तरीकों पर विचार कर जल्द लागू कर सकती है।

सूत्रों ने कहा कि बीजों और पौधों के रसायनों के मामले में बहुत सारे सुधारों की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि भारत में नियामक और अनुमोदन प्रक्रिया में लंबा समय लगता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें कई परतें शामिल हैं।

रसायनों के निर्यात में बढ़ोतरी

सरकार खेती में काम आने वाले रसायनों के लिए एक अनुकूल नीतिगत माहौल बनाने पर विचार कर सकती है। इससे खेती के रसायनों के निर्यात में बढ़ोतरी होगी और भारत विदेशी निवेश के लिए एक आकर्षक देश के रूप में स्थापित होगा। यह इस क्षेत्र में काम कर रहे छोटे और क्षेत्रीय उद्योगों के लिए बहुत कारगर होगा।

भारत में अभी नए कृषि रसायन मॉलिक्यूल (अणु) के पंजीकरण की वर्तमान प्रक्रिया को उद्योग अक्सर समय लेने वाली, महंगी और एक जटिल प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। केवल कुछ बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ और प्रमुख घरेलू कंपनियां ही नए अणुओं को विकसित करने और उन्हें निर्माण और बिक्री के लिए पंजीकृत कराने के लिए अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) में निवेश करने का जोखिम उठा सकती हैं। नतीजा यह है कि भारत में अभी केवल लगभग 300 280 मॉलिक्यूल (अणु) और 800 फॉर्मूलेशन (संयोजन सहित) पंजीकृत हैं। भारत की तुलना में यूरोपीय संघ (ईयू) में यह संख्या दोगुनी और जापान में तिगुनी है।

खेती के निर्यात को बढ़ावा मिले

खेती में सलंग्न रसायन उद्योग केंद्रीय कीटनाशक प्रयोगशाला (सीआईएल) में भी सुधार चाहता है ताकि लंबित सूचियों और नए आवेदनों को मंजूरी देने में लगने वाले समय में कटौती की जा सके। भारतीय कृषि निर्यातकों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक यूरोपीय संघ जैसे क्षेत्रों में कीटनाशक अवशेषों से संबंधित कड़े नियम हैं। आने वाली सरकार कुछ ऐसे सुधार कर सकती है जिससे लम्बे समय में खेती के निर्यात को बढ़ावा मिले। नकली बीजों की समस्या और उनके प्रसार को रोकने के लिए उचित नियमों की आवश्यकता भी आने वाले समय में सुधारों का हिस्सा बन सकती है।

कुछ साल पहले, कुछ हलकों में किसानों को मिलने वाले सीधे लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) को संशोधित कर देश के कुछ जिलों में एक पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू हो सकता है जो भूमि जोत और पोषक तत्वों की खपत के बीच कुछ प्रकार का संबंध स्थापित करेगा।

वर्तमान में, डीबीटी के संस्करण में किसान आधार प्रमाणीकरण से गुजरने के बाद पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) उपकरणों के माध्यम से अपने उर्वरक खरीदते हैं। ताकि उर्वरक खरीदने वाले व्यक्ति की पहचान अच्छी तरह से स्थापित हो।

हालाँकि, प्रत्येक किसान द्वारा खरीदे जाने वाले उर्वरकों के बैग की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इससे कभी-कभी अधिक उपयोग और दुरुपयोग की संभावना होती है।

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