जैविक खेती और अनुसंधान
पृथ्वी के निर्माण व उसमें मानव के आगमन से लेकर 20वीं सदी के प्रारंभ तक मानव आबादी मात्र एक अरब तक ही पहुंच पाई थी परंतु जब 20वीं सदी का अंत हुआ तो मानव संख्या सात गुना बढ़कर लगभग सात अरब तक पहुंच गई। एक अरब आबादी के भरण-पोषण के लिये मानव प्राकृतिक साधनों का ही उपयोग कर फसल उत्पादित कर लेता था जो पूर्ण रूप से जैविक थी। बढ़ती हुई आबादी के साथ खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिये उर्वरकों तथा पौध संरक्षण रसायनों का उपयोग एक बाध्यता बन गया। जिसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक असंतुलन की समस्या उत्पन्न होने लगी। परिणामस्वरूप लेडी रसल कारसन (1962) की पुस्तक ‘सूना बसंतÓ ने पूरी दुनिया का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। फलस्वरूप एक बार फिर हमें प्राकृतिक जैविक खेती की ओर सोचने के लिये बाध्य कर दिया। पिछले 10-15 साल से जैविक खेती के लिये प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। इसके लिये बहुत सी ऐसी अनुशंसा की जा रही है जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। प्राकृतिक संसाधनों से बनाये जाने वाले इन उत्पादों को बनाने के तरीके तथा उनकी गुणवत्ता के मानक भी परिभाषित नहीं किये गये हैं। आवश्यकता इस बात की है किन अनुशंसाओं पर विधिवत अनुसंधान हो और अनुसंधान के आधार पर ही इनकी अनुशंसा की जाये तथा इनके बनाने के तरीके के मानक स्थापित किये जायें। वर्तमान में बाजार में जैविक उत्पात के नाम पर महंगे-महंगे उत्पाद उपलब्ध हैं जिनका जैविक होना भी संदेह के घेरे में रहता है। इनकी असरकारी व जैविक होने का प्रमाण देने वाली संस्था का भी अभी अभाव है। यदि ऐसी संस्था अगर हो भी वह तब तक कार्य नहीं कर सकती जब तक इनके मानक न बना लिये जायें। इसलिये जैविक खेती के हर पहलू पर अनुसंधान आरंभ करने की आवश्यकता है। पूर्व में जैविक खेती के विभिन्न पहलुओं पर किये गये अनुसंधानों पर प्रकाशित लेखों को भी सूचीबध करने की आवश्यकता है ताकि भूतकाल में किये गये अनुसंधान का लाभ लिया जा सके। इस कार्य के लिये कृषि विश्वविद्यालयों का सहयोग प्राप्त किया जा सकता है।
भारत सरकार ने कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पात निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) का गठन किया है। जो एक सराहनीय कदम है। इसके द्वारा इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश में भी राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था भोपाल में कार्यरत है जो जैविक खेती द्वारा उत्पादित पदार्थों का प्रमाणीकरण करती है। जैविक उत्पादन के मानक तो संस्था द्वारा निर्धारित कर लिये गये हैं परंतु जैविक खेती के लिये उपयोग में लाये जाने वाले पदार्थों के मानकीकरण की अभी कोई व्यवस्था नहीं है। जिसका होना नितांत आवश्यक है। प्रदेश के कुछ किसानों द्वारा जैविक खेती कर उत्पादित फसल का प्रमाणीकरण कराया जा रहा है। ऐसे किसानों की फसलों का वैज्ञानिक तौर पर अध्ययन कराना भी आवश्यक है ताकि उसमें और सुधार किये जा सकें तथा उसका लाभ दूसरे जैविक खेती में उत्सुक किसानों तक पहुंचाया जा सके।