Editorial (संपादकीय)

झाबुआ पावर प्लांट गांव वालों का नया जंजाल

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मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के घंसौर स्थित झाबुआ पावर प्लांट वहां आस-पास रहने वाले ग्रामीणों के लिये मुसीबत का सबब बनता जा रहा है। जिसको लेकर ग्रामीण और किसान काफी परेशान हैं। इसको लेकर स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अध्ययन किया है, जिसका सार संक्षेप एक आलेख के तौर पर प्रस्तुत है।

मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के घंसौर स्थित झाबुआ पावर प्लांट के अंतर्गत आने वाले ग्रामों से संपर्क कर एक संक्षिप्त अध्ययन पिछले दिनों किया गया। झाबुआ पावर प्लांट की स्थापना के वक्त क्षेत्रीय लोगों की सहमति इस विचार के साथ दी गई थी कि जिस स्थान को झाबुआ पावर प्लांट बनाने हेतु चयन किया गया था, वह जगह लगभग 1000 से 1500 हेक्टेयर के आसपास अनुपजाऊ बंजर पथरीली भूमि वाली थी। जिसमें किसी प्रकार की कोई फसल की पैदावार नहीं होती थी। स्थानीय लोगों को महसूस हुआ कि यह जमीन हमारे कोई काम की नहीं है, यदि यहां कोई कम्पनी द्वारा उद्योग धंधा या पावर प्लांट लगाया जाएगा तो हमको बंजर-पथरीली भूमि का अच्छा मुआवजा मिल जाएगा। क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिलेगा, जिससे पलायन रूकेगा। पावर प्लांट की स्थापना से यहां पर व्यापार, छोटे उद्योग धंधों की शुरूआत होगी, जिससे क्षेत्र का विकास होगा। इस बुनियादी सोच-विचार के साथ पावर प्लांट लगाने हेतु क्षेत्रीय लोगों ने अपनी सहमति प्रदान की थी।
लेकिन पावर प्लांट लगने के बाद की स्थिति और लोगों के सोच-विचार में एक विरोधाभास देखने को मिल रहा है। स्थानीय लोगों ने जिस क्षेत्र को अनुपजाऊ समझकर दिया था, उससे लगी हुई कृषि योग्य भूमि, जिसका कम्पनी द्वारा अब तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है, उसकी फसल कोपले, धूल से पट रहा और पूरी फसल नष्ट हो रही है। ग्रामीणों द्वारा आवेदन ज्ञापन देने के बावजूद न सरकार, न कम्पनी सुनने को तैयार है। बेबस गरीब किसान मजदूरी करके अपने परिवार और बच्चों का पालन-पोषण करने को लाचार है।
इस परियोजना के शुरू होने से लोगों की सोच यह भी थी कि क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिलेगा, जिससे पलायन रुकेगा। लेकिन जब तक पावर प्लांट का निर्माण कार्य चला, जब तक ईंट-गारा, पत्थर आदि काम पर मजदूरों को लगाया गया। पावर प्लांट निर्माण कार्य खत्म होने के बाद सबको कहा गया कि आपके लायक काम नहीं है। यहां पढ़े-लिखे तकनीशियन, कम्प्यूटर जानकार लोगों का काम है। शहरी परिवेश में पढ़े-लिखे लोगों का काम है। शहरी परिवेश में पढ़े-लिखे लोगों द्वारा यहां आकर नौकरी की जा रही है और स्थानीय क्षेत्र के लोग मजदूरी करने बाहर जाने को मजबूर हैं।
सवाल यह है कि जब तक कोई सरकारी परियोजनाएं स्थापित नहीं होती तब तक सबको रोजगार, नौकरी देने की बातें मौखिक से लेकर लिखित रूप तक की जाती रहती है। परंतु जैसे ही परियोजना बनकर तैयार होती है, फिर केवल तकनीकी लोगों को ही काम पर रखा जाता है। जबकि सरकार और कम्पनी को चाहिए कि परियोजना क्षेत्र के शिक्षित बेरोजगार युवा-युवतियों को प्रशिक्षण देकर सक्षम बनाकर रोजगार देना चाहिए।
तीसरी बात और भी महत्वपूर्ण है कि लोगों की सोच को क्षेत्र में व्यापार धंधा करने, मुआवजा मिलने एवं प्लांट का काम चालू होते ही फर्जी बैंक, फर्जी कंपनियां आई और क्षेत्र के लोगों के करोड़ों रुपये लेकर भाग गई।
यह भी सोचा गया था कि छोटे से क्षेत्र का विकास होगा, पर देखने में आ रहा है कि विकास तो दूर की बात है, हमारे पीढिय़ों की रीति-रिवाज, सांस्कृतिक खान-पान, रहन-सहन में जबर्दस्त बदलाव आने लगा है। प्लांट में बाहर के लोग काम करने आते हैं तो बाहरी लोगों का परिवार धीरे-धीरे गांवों में आने लगा हैं। आसपास के कुएं एवं हैंड पंप के पानी के स्त्रोत खत्म होने के साथ-साथ पास के गांवों में पीने के पानी एवं सिंचाई हेतु एक नया संकट खड़ा हो गया। अनावश्यक खर्च, मांस मदिरा, शराब का सेवन ज्यादातर नई पीढ़ी में देखने मिल रहा है।
झाबुआ पावर प्लांट से इस क्षेत्र में कई गंभीर खतरे आने वाले समय में देखने को मिलेंगे। इनमें आसपास की कृषि योग्य भूमि धीरे-धीरे बंजर हो जायेगी। कृषि पर आधारित परिवार के सामने जीवनयापन का संकट हो जायेगा। वहीं लगातार कोयले का डस्ट एवं पावर प्लांट के प्रदूषण से 5-6 वर्षों के बाद क्षेत्र में कई गंभीर श्वास, दमा से संबंधित बीमारियां होगी। प्लांट से जो ओवर फ्लो नाला निकलता है, इस नाले के साथ डस्ट का सिल्ट एवं प्लांट से बाहर मोटर गाड़ी ट्रक की धुलाई की जाती है, यह पानी प्रदूषित और मलबायुक्त होता है। यह नाला 5-6 गांवों को जोड़ते हुए नीचे लगभग 10-15 कि.मी. दूरी पर एक बड़ी नदी टेमा पर मिलेगा। इस नाला के पानी में लोग नहाते हैं, पशु पानी पीते हैं। धीरे-धीरे इस पानी से भी स्वास्थ्य में कई प्रकार के प्रभाव पड़ सकते हैं। अपने प्लांट से निकला हुआ डस्ट सिल्ट रहेगी जो भविष्य में नाला में जमते जाएगा और नदी के स्त्रोत भी समाप्त होने के खतरे हैं जिससे नीचे के कई गांव जल संकट में पड़ सकते हैं।
इन सभी पर्यावरणीय प्रदूषण एवं स्वास्थ्य संबंधी खतरों को देखते हुए क्षेत्र में जनसंपर्क अभियान और जनजागृति हेतु सतत कुछ न कुछ कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को जागृत कर सशक्त करने की जरूरत है। (सप्रेस)

  • शारदा यादव
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