संपादकीय (Editorial)

क्या खेती के लिए कोई प्लान ‘बी’ आवश्यक है ?

क्या खेती के लिए कोई प्लान ‘बी’ आवश्यक है ?

क्या खेती के लिए कोई प्लान ‘बी’ आवश्यक है – हम प्रति दिन ऐसे व्हिडिओ टीवी व सोशल मीडिया पर देख रहे है जिस में किसानों द्वारा अपनी उपज को नष्ट किया जाता हैं। इस के कई कारण होते हैं जैसे कभी बाज़ार में उपज के कम दाम मिलना तो कभी प्राकृतिक आपदा से सप्लाई चैन वांधित होना। अभी तक यह समस्या स्थानीय होती थी। लेकिन करोना वायरस-19 के कारण पूरे विश्व में यदि सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ है तो वह कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को हुआ है।

इनमें किसान, कृषि मज़दूर, कृषि आदान बनाने वाली कंपनियाँ, कृषि आदान वितरण करने वाले व्यक्ति, बैंक, मन्डी में काम करने वाले व्यक्ति, परिवहन करने वाले, भंडारण, प्रसंस्करण उद्योग, तथा छोटे बड़े दुकानदार, होटल, रेस्टोरेन्ट, ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ सम्पूर्ण बैकवर्ड एवं फ़ारवर्ड सप्लाई चैन में काम करने वाले लोग हैं। यह हमारी आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक लोग है जो प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं। इनमें दूध, पोल्ट्री, मॉस उत्पन्न करने वाले व्यक्ति भी है। अभी तक प्राथमिक सेक्टर में केवल प्लान ‘ए’ पर ही काम होता रहा है। जिस में फ़ैक्ट्री से फ़र्म तथा फ़र्म से फ़ोर्क तक की सप्लाई चैन सभ्यता के विकास के साथ साथ विकसित हुई हैं।

ग्लोबलाइज़ेशन के कारण इस सप्लाई चैन में सभी देशों के बीच परस्पर निर्भरता विकसित हुई। विगत दशकों में विश्व व्यापार संगठन के द्वारा सभी देशों ने इसे अपने अपने स्वार्थों के कारण अपनाया था। लेकिन विगत कुछ वर्षों के अथक प्रयासों के बावजूद कुछ विकसित देशों के घोर विरोधी नज़रिए के बाद भी यह देश अब अलग-अलग नहीं हो सके हैं। अब कोई भी शक्तिशाली राष्ट्र विश्व व्यापार की बात नहीं कर रहा हैं।

सब जगह नेता अब राष्ट्रीय भावना, आत्मनिर्भरता की बातें कर रहे हैं। इस बदलाव के परिदृश्य में हमें यह सोचना होगा कि भविष्य की खेती लोकल बाज़ार के लिए होगी या विश्व व्यापार के लिए? करोना की घटना के बाद विश्व व्यापार खेती के उत्पादों के लिए उतना आसान नहीं होगा। हर देश की प्राथमिकता यह होगी कि उनकी जनता को शुद्धता के साथ सुरक्षित खाद्य पदार्थ उपलब्ध हो।

प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद की गुणवत्ता पर ज़्यादा ज़ोर होगा। उपभोक्ता की खानपान की आदतों में बदलाव होगा। स्थानीय खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दी जाएगी। सप्लाई चैन में आधुनिक तकनीकों को प्राथमिकता मिलेगी। जिन में ब्लांकचैन, मोबाइल का उपयोग, मशीनीकरण, तथा सप्लाई चैन को छोटा करना मुख्य बातें होने जा रही हैं। हमें यह देखना होगा कि कृषि उत्पादों का स्थानीय स्तर पर प्लान ‘ए’ सीधे वितरण का हो, प्लान ‘बी’ प्रसंस्करण के लिए हो तथा प्लान ‘सी’ भण्डारण व परिवहन के लिए हो।

हर देश की सरकार को त्वरित सहायता देने के साथ साथ दीर्घकालिक निवेश प्लान ‘बी’ तथा प्लान ‘सी’ में करने के लिये पुराने क़ानूनों को बदल कर किसानों तथा उपभोक्ता के अधिकारों के संरक्षण के साथ कृषि आदान निर्माता, वितरक, प्रसंस्करण उद्योग, रिटेल ई- सप्लाई चैन, ई-मार्केटिंग के लिए अनुकूल नीतियों को प्राथमिकता देना होगी। कृषि उत्पाद बड़ी कठिनाई तथा अनेक अनुकूल परिस्थितियों के परिणामस्वरूप ही पैदा होते है। प्रकृति के इस अमूल्य योगदान में मानव श्रम, पूँजी तथा किसानों की अनेकों उम्मीदें जुड़ी होती हैं उसे किसी भी कारण से पोस्ट हार्वेस्ट लाश के कारण नष्ट नहीं करना चाहिए। आज किसानों द्वारा खेतों में तैयार सब्जिय़ों को जोता जा रहा है, डेरियों में दूध, पनीर, चीज़ को नष्ट किया जा रहा है।

दूसरी ओर उपभोक्ताओं को या तो सामान मिल नहीं रहे है या बहुत महँगे मिल रहे है। इसका कारण केवल यह है कि हमने कृषि के व्यवसाय के लिए कभी भी प्लान ‘बी’ या ‘सी’ के बारे में नहीं सोचा। लेकिन अब इस विश्व व्यापक घटना के बाद हमें स्थानीय स्तर पर यह सोचना होगा तथा काम करना होगा जहां कृषि के उत्पादों को नष्ट होने से बचाने के लिए आर्थिक पैकिज का उपयोग किया जा कर ऐसी अधोसंरचना का विकास हो जिस पर प्लान ‘बी’ तथा ‘सी’ के व्यवसाय विकसित हो सके।

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