राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)संपादकीय (Editorial)

घी में मिलावट पर नकेल कस सकते हैं एफ.पी.ओ

27 सितम्बर 2024, भोपाल: घी में मिलावट पर नकेल कस सकते हैं एफ.पी.ओ – हाल ही में देश के सबसे प्रसिद्ध आंध्र प्रदेश के श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर (तिरुपति मंदिर) के लड्डुओं में जानवरों की चर्बी और मछली के तेल को मिलाए जाने की पुष्टि होने की रिपोर्ट के बाद एक नई बहस छिड़ गई है। जांच में पाया गया है कि लड्डु बनाने में उपयोग में लाए जाने वाले घी में जानवरों की चर्बी और मछली का तेल मिलाया गया है।अब देश के अन्य मंदिरों में भी लड्डू, प्रसाद आदि खाद्य पदार्थों की जांच जोर पकड़ने लगी है। कुछ मंदिरों ने मिलावट की जांच शुरू भी कर दी है। श्रद्धालुओं का मानना है कि मंदिर जैसे पवित्र स्थल पर आपूर्ति किये जाने वाले घी में ही मिलावट करने में किसी तरह का डर (ईश्वर का डर) नहीं रहा तो ऐसे मिलावटखोर अन्य खाद्य सामग्रियों में स्वास्थ्य के लिये खतरनाक पदार्थ मिलावट करते होंगे, इसकी कल्पना मात्र से ही कलेजा कांप उठता है।

भारत विश्व में सबसे ज्यादा दूध का उत्पादन करने वाला देश है।
फिर भी प्रति व्यक्ति खपत विकसित देशों की तुलना में काफी कम ही है। एक अनुमान के अनुसार देश में जितना दूध का उत्पादन होता है, उससे अधिक दूध की खपत होती है। इसका तो सीधा सा यही अर्थ लगाया जा सकता है कि वास्तविक खपत और उत्पादन के बीच का अंतर मिलावट या नकली दूध से पूरा किया जाता है।

हर साल दीपावली और अन्य त्यौहारों के पहले सभी महानगरों के साथ भोपाल, इंदौर जैसे बड़े शहरों में नकली और मिलावटी मावा (खोवा) की खबरें आती हैं। सरकारी खाद्य विभाग भी जांच की रस्म पूरी कर प्रयोगशाला में नमूना भेज देता है। रिपोर्ट आने तक उपभोक्ता तो इस प्रकरण को भूल चुका होता है। रिपोर्ट आने के बाद दोषियों पर जुर्माने की कार्रवाई तो होती है लेकिन इतनी कड़ी नहीं होती कि कोई भी व्यक्ति खाद्य पदार्थो में मिलावट करने या नकली खाद्य पदार्थ बनाकर बेचने का दु:साहस कर सके। थोड़ा जुर्माना और कुछ माह या एक दो साल की कैद मिलावटखोरों के हौसलों को पस्त करने के लिये नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं।

केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकने के लिये अभी तक जितने भी प्रयास किये गये हैं.. उनमें सफलता नहीं मिली है। उपभोक्ता जागरूक हो गए हैं और वे शुद्ध व प्रामाणिक खाद्य पदार्थों की अधिक कीमत भी देने को तैयार रहते हैं। जरूरत इस बात की है कि उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर शुद्ध खाद्य पदार्थ उपलब्ध हों। इस दिशा में यदि किसानों का संगठन स्वयं पहल करेंगे तो उपभोक्ताओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह इसलिये कि किसानों की समाज में आज भी ईमानदार की छवि बनी हुई है। एफ.पी.ओ. अपने स्तर पर दुग्ध उत्पादों में घी और खोवा की आपूर्ति का जिम्मा उठा ले तो दूध उत्पादक किसानों के आर्थिक विकास को नये पंख लग सकते हैं। इस कार्य में किसान उत्पादक संगठन (एफ.पी.ओ.) अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

वर्तमान में अधिकांश दूध उत्पादक किसान अपने घर या डेयरी में उत्पादित दूध को सरकारी डेयरी में बेचते हैं, घर – घर जाकर ग्राहकों को देते हैं या उनसे होटल आदि के व्यवसायी खरीदते हैं। इसके बाद कुछ असामाजिक तत्व दूध से मिलावट वाला खोवा, पनीर, घी और अन्य खाद्य पदार्थ बनाकर सस्ते में बेचते हैं। मिलावट और नकली घी, खोवा, पनीर आदि बनाने वाले प्रतिष्ठित ब्रांडों के नाम से भी मिलावट वाला घी बाजार में आसानी से उपलब्ध है। असली और नकली घी को पहचानना थोड़ा मुश्किल इसलिये भी है कि मिलावट करने वाले ब्रांड कम्पनी जैसा ही पैकेजिंग में करते हैं और खुशबू भी असली घी के ही समान होती है। इस कारण उपभोक्ताओं को असली और नकली का पता ही नहीं चल पाता। और इसी का फायदा उठाकर मिलावटखोर ब्रांडों के नाम से सुंदर पैकेजिंग में घी बाजार में बेच देते हैं।

इसलिये अब किसान उत्पादक संगठनों या किसानों के छोटे – छोटे संगठन बनाकर अपने सदस्यों को घी, खोवा, पनीर, मक्खन आदि बनाने और इससे होने वाले फायदों के बारे में बतायें तो निश्चित ही वे इसके लिये तैयार हो सकते हैं। सबसे बड़ी समस्या विश्वास की है और उससे भी बड़ी चुनौती विश्वास को बनाए रखना। उपभोक्ताओं को मिलावट रहित शुद्ध घी, खोवा, पनीर आदि उत्पादों की आपूर्ति करने की होगी। इस कार्य में राज्य सरकारें भी किसान उत्पादक संगठनों को आर्थिक मदद कर सकती हैं । रियायती दरों पर ऋण देकर घी आदि बनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं। शासन स्तर पर बिना प्रयोगशालाओं से प्रमाणित दुग्ध उत्पादों के विक्रय पर प्रतिबंध लगाने पर भी गम्भीरता से विचार करना होगा। पैकेजिंग पर प्रमाणित करने वाली संस्था का नाम और सम्पर्क नम्बर भी देना चाहिये ताकि उपभोक्ता सीधे शिकायत कर सके। इसके साथ ही समय – समय पर दुग्ध उत्पादों की जांच के लिए सम्बंधित विभागों को भी सक्रिय करना होगा ताकि उपभोक्ताओं को शुद्ध उत्पाद मिल सके। उपभोक्ताओं को भी सस्ते के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिये। सरकार को शुद्ध घी, खोवा, पनीर आदि की जांच के लिये अधिकाधिक प्रयोगशालायें स्थापित करनी चाहिये ताकि एक दिन के भीतर ही जांच रिपोर्ट मिल जाये। साथ ही दुग्ध उत्पादों के न्यूनतम मूल्य भी घोषित करने चाहिये जिससे दुग्ध उत्पादक और इससे जुड़े व्यवसायी ईमानदारी से अपना कामकाज कर सके। मिलावट को रोकने के लिये कड़े कानून के साथ कानून का कड़ाई से पालन भी अनिवार्य होना चाहिये। मिलावट करना सिद्ध हो जाने पर फास्ट ट्रेक कोर्ट में प्रकरण दर्ज कर समय सीमा के भीतर फैसला आ जाये, जिससे आरोपी को उसके अपराध का दण्ड मिल सके। यदि ऐसा करने में सफल रहते हैं तो काफी हद तक मिलावट पर रोक लग सकती है। वर्तमान में उपभोक्ताओं को यह डर है कि वह जो घी, खोवा, पनीर बाजार से खरीद रहा है वह शुद्ध है या नहीं । ऐसी परिस्थिति में किसानों के लिये यह अवसर है कि वे उपभोक्ताओं को शुद्ध दुग्ध उत्पाद उपलब्ध कराकर आर्थिक विकास के पथ पर आगे बढ़ें।

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