Editorial (संपादकीय)

अर्थव्यवस्था को साकार करेगी बहुराज्यीय सहकारी समितियाँ

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  • डॉ. अमित मुदगल, निदेशक प्रभारी,
    सहकारी प्रबंध संस्थान, भोपाल

 

22 जनवरी 2023,  भोपाल । अर्थव्यवस्था को साकार करेगी बहुराज्यीय सहकारी समितियाँ – भारतीय गणराज्य में हमेशा से वसुधैव कुटुम्ब की अवधारणा को महत्व दिया गया है और आदिकाल से सहकारिता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। देश के साथ-साथ समस्त प्रदेशों में भी सहकारी संस्थाएँ आजादी के पूर्व से एवं आजादी के पश्चात देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं। सहकारी संस्थाएँ देश के ग्रामीण कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में एवं देश की अर्थ व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण आधार स्तंभ होने के कारण हमेशा देश की विभिन्न सरकारों के केन्द्र बिन्दु में रही हैं।

वर्तमान भारत सरकार ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में सहकारिता की भावना एवं अर्थव्यवस्था में इसकी महत्ता को भली-भांति न सिर्फ महसूस किया है बल्कि केन्द्र में नया सहकारिता मंत्रालय का गठन कर एवं उसमें एक अनुभवी मंत्री को जवाबदारी देकर देश के सामने सहकारिता के महत्व को बतलाया है।

वोकल फॉर लोकल

नवीन सहकारिता मंत्रालय द्वारा जिसके मंत्री श्री अमित शाह ने अभूतपूर्व निर्णय लेकर देश के सहकारिता क्षेत्र में कदम उठाते हुए अनेकों बहुराज्यीय सहकारी समितियों की स्थापना को मंजूरी दी है जिसको मोदी सरकार की मंत्री मंडल समिति ने भी अनुमोदित किया है। इन बहुराज्यीय सहकारी समितियों में प्रमुख रुप से सहकारी निर्यात समिति, सहकारी बीज समिति तथा सहकारी जैविक समिति प्रमुख हैं। प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये नारे ‘सहकार से समृद्धि’ एवं ’वोकल फॉर लोकल‘ को इन बहु राज्यीय सहकारी समितियों (मल्टी स्टेट को ऑपरेटिव सोसायटी) के द्वारा सिद्ध किया जाएगा।

अधिनियम 2002 के तहत पंजीयन

भारत सरकार द्वारा बहुराज्यीय सहकारी निर्यात समिति का गठन पंजीयन मल्टी स्टेट को ऑपरेटिव सोसायटी अधिनियम 2002 के तहत पंजीकृत किया जाएगा। इसमें प्रायमरी से लेकर राष्ट्रीय स्तर की समितियाँ जिसमें प्रायमरी समितियाँ, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के संघ एवं बहुराज्यीय सहकारी समितियाँ शामिल होकर इसकी सदस्य बनेगी। इन सभी सहकारी समितियों के उपविधियों के अनुसार समिति के बोर्ड में उनके निर्वाचित प्रतिनिधि होंगे एवं विभिन्न उत्पादों के एकत्रीकरण, ब्रान्डिग एवं विपणन के माध्यम से उत्पादों की उच्च कीमत प्राप्त करने में इन सहकारी समितियों और किसान सदस्य को सहायता मिलेगी।

इफको, कृभको एवं अन्य का 100 करोड़ का योगदान

देश की चार प्रमुख सहकारिताएं इफको, कृभको, नेफेड, जीसीएमएमएफ और एनसीडीसी इसके लिए एक साथ, साथ आये हैं ताकि भारतीय किसानों के उत्पादों के निर्यात के लिए एक राष्ट्रीय स्तरीय बहुराज्यीय सहकारी समिति की स्थापना होगी इन सभी ने इसमें 100 करोड़ रुपये का योगदान भी प्रदान किया हैं। इसे एमएससीएस अधिनियम 2002 के तहत पंजीकृत किया जाएगा तथा धारा 146 (1) के तहत दूसरी अनुसूची में संशोधन करके समिति का एक राष्ट्रीय सहकारी समिति के रुप में अधिसूचित किया जाएगा।

देश में 29 करोड़ से अधिक सहकारी सदस्य

हमारे देश में लगभग 8.54 लाख पंजीकृत सहकारिताएं हंै जिनमें 29 करोड़ से अधिक सदस्य जो मुख्यत: ग्रामीण क्षेत्रों के सीमांत समूहों एवं निम्न आय वर्ग से हैं। इन सहकारिताओं के द्वारा सभी क्षेत्रों में जैसे कृषि (खाद्यान्न, दालें, तिलहन आदि), बागवानी (फल, सब्जियाँ, फूल, सुगंधित उत्पाद आदि), डेयरी, कुक्कुट पालन, पशुधन, मत्स्य पालन, चीनी , मसाले (इलायची, काली मिर्च, लौंग, केसर, हल्दी आदि) जैविक उत्पाद, उर्वरक, हस्तकरघा, हस्तकला, वस्त्र, चाय, कॉफी, लघु वनोपद उत्पाद, आयुर्वेदिक हर्बल औषधियां, प्रसंस्कृत खाद्यान्न, चमड़ा आदि में उत्पादन किया जाता है।

सहकारिता में एकरुपता का अभाव

सहकारिताएं विभिन्न क्षेत्रों जैसे उवर्रक उत्पादन 28.80 प्रतिशत, उर्वरक वितरण में 35 प्रतिशत, चीनी उत्पादन में 30.60 प्रतिशत, और दूध के विपणन योग्य अधिशेष की खरीदी में 7.50 प्रतिशत का योगदान भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में प्रदान कर रही हैं। इनमें से कई उत्पादों की कई देशों में भारी मांग है। लेकिन सहकारिता के एकरुपता के अभाव में सहकारी उत्पादों/सेवाओं की निर्यात क्षमता काफी हद तक अनुपयोगी रही हैं। पर्याप्त वित्त, निर्यात उन्मुखीकरण, पर्याप्त बुनियादी ढांचा, मानकीकरण, बाजार जागरुकता, उत्पादकों का प्रमाणन आदि कुछ ऐसे कारक हैं जो सहकारी उत्पादों के निर्यात में वृद्धि के लिए आवश्यक हैं। सहकारिताओं द्वारा देश की निर्यात बास्केट को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देने हेतु निर्यात योग्य घरेलू अधिशेष, कार्यशील पूंजी, तकनीकी जानकारी, और प्रशिक्षण हेतु उचित संस्थागत समर्थन की आवश्यकता है। परिणामस्वरुप भारतीय सहकारी क्षेत्र व्यापकता और अर्थव्यवस्था में इसके पर्याप्त योगदान के बावजूद केवल कुछ सहकारिताएँ ही सीधे विदेशों में ही निर्यात कर पा रही हैं। जैसे सहकारिताओं का देश के कुल चीनी उत्पादन में एक तिहाई योगदान है लेकिन सहकारी चीनी मिलों द्वारा प्रत्यक्ष निर्यात चीनी का मात्र एक प्रतिशत से भी कम हैं।

नवीन बहुराज्यीय सहकारी समिति के पास 2 हजार करोड़ की अधिकृत शेअर पूंजी होगी तथा 500 करोड़ की प्रारंभिक प्रदत्त शेअर पूंजी होगी। देश के हर क्षेत्र में इसका संचालन क्षेत्र होगा, प्रारंभ में पंजीकृत कार्यालय नईदिल्ली में होगा। प्राथमिक से लेकर राष्ट्रीय स्तरीय समस्त सहकारिताएँ जो निर्यात गतिविधियों में रुचि रखती हैं वे समिति में सदस्यों के रुप में शामिल होने की पात्रता रखेगी। समिति निर्यात सम्बद्ध के माध्यम से अपने सदस्यों के सामाजिक एवं आर्थिक बेहतरों के लिए सहकारी सिद्धांतों के अनुसार कार्य करेगी।

सहकार से समृद्धि

राष्ट्रीय स्तर की बहु स्तरीय राष्ट्रीय समिति निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक अम्ब्रेला संगठन के रुप में सहकारी क्षेत्र में कार्य करेगी इससे वैश्विक बाजारों में भारतीय सहकारिताओं की निर्यात क्षमता को अनलॉक करने में मदद करेगी। यह सहकारिताओं का सम्पूर्ण सहकारी दृष्टिकोण के माध्यम से भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, विभिन्न निर्यात सम्बंधी योजना और नीति का लाभ एक केन्द्रित रुप से प्राप्त करने में मदद करेगा। जिसके परिणाम स्वरुप सहकारिताओं के समावेशी विकासशील मॉडल के माध्यम से ‘सहकार से समृद्धि’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी एवं सदस्यों को अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात के माध्यम से बेहतर कीमतों की प्राप्ति तथा समिति द्वारा अर्जित अधिशेष से वितरित लाभांश दोनों के माध्यम से लाभ प्राप्त होगा।

वर्तमान में यह महसूस किया जा रहा है कि जो सहकारिताएँ उत्पाद के निर्यात करने में सक्षम हैं उन्हें उनकी उत्पाद के तुलनात्मक दृष्टि से ज्यादा दाम मिले एवं वे इसमें संलग्न लोगों को अधिक मजदूरी/ आर्थिक लाभ देकर उनकी आर्थिक मदद की जावे ताकि देश में लोगों का खेती के प्रति आकर्षण बढ़ेगा और ग्रामीण क्षेत्र से शहरों की ओर पलायन कम होगा।    

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