चुनावी लालीपॉप के बजाय कृषि की ठोस योजनाएं बने
राज्य के अंतिम चुनावी बजट के पूर्व किसान महासम्मेलन के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा लोकलुभावनी घोषणाएं ऐसे क्षण में हुई हैं जबकि राज्य का किसान बेमौसम बारिश एवं ओले की मार से आहत है। प्रदेश के अनेक हिस्सों में हुये इस प्राकृतिक प्रकोप से 20 फीसदी फसलें नष्ट हुई हैं। प्रदेश का किसान पिछले कुछ बर्षों से ऐसी ही आपदाओं का शिकार होकर कर्जदार हो चुका है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किसान महासम्मेलन में डिफाल्टर किसानों के लिये की गई ब्याज माफी की घोषणा से राज्य के डिफाल्टर किसानों का पूर्णत: लाभांवित हो पाना संदिग्ध ही है। सहकारी बैंकों का राज्य के 17.78 लाख किसानों को दिया गया यह कर्ज वर्षों पुराना है। जबकि इस श्रेणी के लगभग अस्सी फीसदी किसानों के पास राष्ट्रीकृत बैंकों के कर्जें भी है। इन कर्जदार किसानों की आय इतनी नहीं है कि वह राष्ट्रीकृत बैकों का ब्याज चुकाने के बाद इस डूबते कर्ज की एक पूरी किस्त जमा कर सकें। इसलिये सरकार को चाहिये की वह इस डूबे कर्ज की अदायगी मात्र दो किस्तों में डिफाल्टर किसानों से लेने के बजाय इसे 03 वर्षों की अवधि के लिये न्यूनतम 06 किस्तों के द्वारा लेने का प्रयास करें।
गेहूं खरीदी भुगतान समय पर मिले
मुख्यमंत्री की घोषणा में गेहूं के समर्थन मूल्य पर 265 रुपये की उत्पादकता प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा स्वागत योग्य कदम है। राज्य का किसान वर्षों से गेहूं का खरीदी मूल्य 2000 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग करता आ रहा है। लेकिन इस मूल्य वृद्धि का लाभ राज्य का किसान ले सके इसके लिये आवश्यक है कि राज्य सरकार, गेहूं खरीदने वाली सहकारी समितियों के पास आवश्यक संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता एवं भुगतान राशि की समय पर उपलब्धता को सुनिश्चित करें। सरकारी समितियां बारदानों की अनउपलब्धता, तुलाई हम्मालों की कमी, सिलाई धागा जैसी सामग्री की कमी दिखाकर किसानों को परेशान किया करते हैं। वही भुगतान प्रक्रिया का विलंब भी जरूरतमंद किसानों को सर्मथन मूल्य के बजाय, व्यापारी मंडी में बिकवाली के लिये मजबूर किया करता है। विगत दो वर्ष की ऐसी अनेकों घटनाएं घटित हुई हैं जिसमें सोसायटियों पर किसानों को तुलाई के लिये हफ्ते भर तक इंतजार करना पड़ा था। जिस पीड़ा से त्रस्त होकर दो किसानों ने आत्महत्या करने तक की कोशिश की थी।
विगत वर्ष 2017 की धान एवं गेहूं की सहकारी समिति द्वारा खरीद पर सरकार ने 200 रुपये का तोहफा देने की भी घोषणा की है। हालांकि यह किसानों से वोट लेने का शुद्ध चुनावी नजराना है। इसके क्रियान्वयन की सटीकता के लिये सरकार को काफी मशक्कत करना होगी। क्योंकि गत वर्ष की बिक्री रसीद को अधिकांश किसान कूढ़ेदान के हवाले कर चुके हैं। उन्हें बेची गई जिन्स की असल मात्रा भी याद नहीं है। हाल की भावान्तर योजना में राशि न मिलने की शिकायतें स्वयं सरकार के पास है। जहां अक्टूबर एवं नवंबर माह में बेची गई फसल की भुगतान राशि न मिलने की शिकायतों की संख्या 40 फीसदी से अधिक रही है। ऐसे में सरकारी सिस्टम में विसंगतियों के कारण यह योजना लाभांवित होने वाले किसानों एवं भुगतान करने वाली एजेन्सी के बीच विवाद का ही कारण बनेगी।
कस्टम हायरिंग फेल हुई
मुख्यमंत्री द्वारा किसान पुत्र-पुत्रियों के लिये कस्टम हायरिंग सेंटर के लिये लोन की घोषणा ग्रामीण बेरोजगारी दूर करने की पर्याप्त पहल नहीं मानी जा सकती है। क्योंकि पूर्व से लागू इस योजना के परिणाम उत्साहवर्धक नहीं है। इस योजना में शामिल हुये युवाओं को पर्याप्त काम न मिलने की वजह से उन पर बैंकों का अनावश्यक कर्ज चढ़ चुका है। जबकि कुछ प्रकरणों में तो बैंकों ने दिये गये उपकरण कर्जदारों से वापिस लेकर उन्हे बैंक डिफाल्टर घोषित कर दिया है। घोषित किसान उद्यमी योजना की प्रक्रिया सम्बन्धी खुलासा अभी सरकार द्वारा नहीं किया गया है। किसान क्रेडिट कार्ड के लिये ऋण अदायगी की अंतिम तिथि मार्च से अप्रैल माह में किया जाना स्वागत योग्य है। क्योंकि मार्च माह में फसल की बिक्री से पूर्व बैंक कर्ज अदायगी के लिये ऋणी किसान को साहूकारों से कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ता है। जो कि राज्य के किसानों की बरबादी का बड़ कारण भी रहा है।
स्थाई राहत नहीं
राज्य सरकार के द्वारा हाल की घोषणाएं राज्य के किसान को दीर्घकालीन राहत देने वाली नहीं है। राज्य के किसानों के लिये सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली की आवश्यकता पहली प्राथमिकता के रूप में बनी हुई है। भूमिगत जलस्तर पिछले दस वर्षों में 30 फीसदी कम हो चुका है। उत्तम खेती के लिये राज्य में वर्षा जल का संचयन पहली प्राथमिकता में शामिल करने की आवश्यकता है। लेकिन राज्य की खेत तालाब योजना छोटे बजट के कारण वृहद रुप नहीं ले सकी है। तालाबों एवं स्टाप डेम से सिंचाई की घोषित अनेकों परियोजनाएं आज भी राज्य सरकार के बस्तों में कैद पड़ी हैं। खेती के लिये बिजली की दस घन्टे की राज्य शासन की वचनबद्धता के बाद भी राज्य की बिजली कम्पनियां विद्युत की निरन्तरता बनाने में असफल ही रही है। कृषि एवं राज्य के किसान की बेहतरी के लिये वैज्ञानिक सोच वाली दीर्घकालीन नीतियों की आवश्यकता है। सरकार की फौरी घोषणाओं वाली योजनाएं काश्तकारों को क्षणिक आनंद ही दे सकती है, स्थाई राहत नहीं। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं)
विनोद के. शाह ‘विदिशा’
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