Editorial (संपादकीय)

फिर आया मौसम हरे छाते रोपने का

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  • डॉ. किशोर पंवार

25 जुलाई 2022, भोपाल । फिर आया मौसम हरे छाते रोपने का – गर्मी की तीखी धूप और मूसलाधर बरसात से बचने के लिए प्रकृति ने हमें पेड़ों के रूप में सामूहिक छाते उपलब्ध करवाए हैं। मानसून का यह मौसम इन ‘छातों’ को रोपने का है। ग्रीन ‘इको फ्रेंडली’ ‘एयर कंडीशनर’ से ताजी हवा सर्कुलेट होती है जो सुगंधित और स्वच्छ भी होती है। इन छातों के नीचे कभी आंख बंदकर कर बैठें तो संगीत की स्वर-लहरी सुनाई देगी। यह पक्षियों का कलरव है जो इन पर बसेरा पाते हैं।

बारिश और धूप से बचने के लिए हम अक्सर छाते का उपयोग करते हैं। अलग-अलग तरह के छोटे-बड़े-फोल्डिंग, तो कभी पुराने जमाने के मुड़े हुए हैंडिल वाले, परंतु जिनके पास अपने स्वयं के छाते नहीं होते वे तो सडक़ों के किनारे लगे बड़े-बड़े प्राकृतिक छातों के नीचे खड़े होकर ही तेज धूप और पानी से बचने की कोशिश करते हैं। अक्सर मई-जून के महीने में डामर या सीमेंट की सडक़ों के किनारे तपती दोपहर में मनुष्य-तो-मनुष्य, पशु भी छाया ढूंढते नजर आते हैं।

मैं बात कर रहा हूं सडक़ों के किनारे लगे हरे, प्राकृतिक छातों अर्थात् पेड़ों की। जहां एक ओर हमारे छाते केवल व्यक्तिगत सुविधा उपलब्ध कराते हैं, वहीं ये सामुदायिक छाते सहकार की भावना लिए पूरे समुदाय का ध्यान रखते हैं। इनकी इसी खास उपयोगिता को ध्यान में रखकर पहले भी लंबी-लंबी सडक़ों के किनारे मीलों तक घने छायादार पेड़ लगवाए जाते रहे हैं। याद कीजिए शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई गई 2500 मील लंबी ‘ग्रैंड ट्रंक रोड’ जिसके दोनों किनारों पर उन्होंने छायादार वृक्ष लगवाए थे। कहते हैं, सम्राट अशोक ने भी अपने शासनकाल में आम और इमली के छायादार वृक्ष लगाए थे। सडक़ों के किनारे लगे ये छाते दिनों-दिन बढ़ते भी हैं और सांस भी लेते हैं और हमेशा खुले रहते हैं। छातों की इस बिरादरी में कुछ छाते बिल्कुल हरे हैं तो कुछ प्रिंटेड और कुछ तो फैशनेबल भी। कुछ छाते हमेशा हरे रहते हैं, जैसे- पीपल, नीम, बरगद, गूलर आदि, तो कुछ अपना रंग बदलते हैं, फैशनेबल छातों की तरह। इनके छातों के कपड़े लाल, पीले, छींटदार होते हैं, जैसे- गुलमोहर, अमलतास और शिरीष।

इन छातों की छोटी-बड़ी शाखाएं ताडिय़ों का काम करती हैं जिन पर पत्तियों का कपड़ा चढ़ा होता है। कुछ छातों में कपड़ा काफी मोटा और गफ होता है, जैसे – बरगद, पाकड़ और गूलर, तो कुछ छातों में पीपल की तरह पतला और नीम की तरह झिरझिरा होता है जिसमें से धूप छन-छनकर आती रहती है, पर भर-गर्मी में नीम का यह झीना कपड़ा भी काफी सुकून देता है।

ये हरे छाते सिर्फ अपने आसपास की हवा को ही ठंडा नहीं करते। इनकी छाया के चलते धूप की चमक और गर्मी भी धरातल पर नहीं पहुंच पाती। इस तरह वृक्षों के कारण आसपास के भवन व सडक़ आदि खुले स्थानों की तुलना में अपेक्षाकृत कम गर्म होते हैं। फ्लोरिडा (अमेरिका) में किए गए एक अध्ययन से बड़े पेड़ों के कारण तापमान में 3.6 डिग्री सेल्सियस की कमी पाई गई थी। इस क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक अकबरी का मानना है कि वृक्षों का घनत्व 25 प्रतिशत बढ़ा देने से आसपास का तापमान 3.3 से लेकर 5 डिग्री तक कम किया जा सकता है। वृक्ष हमें तेज गर्मी से राहत पहुंचाते हैं। वे सीधे नीचे आने वाली धूप को रोक देते हैं। कुछ प्रकाश को पत्तियां परावर्तित कर देती हैं।
कुछ छाते तो गजब के हैं। कभी गर्मियों में आम के नीचे से गुजरकर देखें जहां ठंडी-ठंडी बूंदें भी टपककर गजब की ठंडक का एहसास कराती हैं। जीवन की आपाधापी में कुछ समय मिले तो कभी गर्मी में एक-दो दिन अमराई में गुजारिए तो सही। आप ‘एयर-कंडीशन’ और ‘हेप्पा फिल्टर’ भूल जाएंगे। ठंडी हवा के झोंके कोयल की मधुर कूक के साथ आपको सुनाई देंगे। तभी आप समझ पाएंगे कि अमराई में कोयल क्यों कूकती है।

अध्ययनों से पता चला है कि पेड़ों के आसपास की हवा का तापमान गर्मियों में खुले स्थानों की अपेक्षा 2 डिग्री सेल्सियस तक कम होता है। सेंटामॉरिस द्वारा 2001 में किए गए एक अध्ययन से पता चला था कि एक पेड़ 5 ‘एयर कंडीशनर’ के बराबर हवा ठंडी कर इतनी ऊर्जा बचाता है। दरअसल पेड़ सूर्य की ऊर्जा से चलने वाले ‘एयर कंडीशनर’ हैं। इस दिशा में अध्ययनरत वैज्ञानिक अकबरी का कहना है कि पेड़ों द्वारा की गई ‘एयर कंडीशनिंग’ से धुआं और प्रदूषण भी कम होता है। एक पेड़ द्वारा किए जाने वाले इस कार्य की कीमत 200 डॉलर आंकी गई है।

ग्रीन ‘इको फ्रेंडली’ ‘एयर कंडीशनर’ से ताजी हवा सर्कुलेट होती है जो सुगंधित और स्वच्छ भी होती है। इन छातों पर कभी-कभी रसीले फल भी लगते हैं जिनमें से कुछ बारहमासी हैं। इन छातों के नीचे कभी आंख बंदकर कर बैठें तो संगीत की स्वर-लहरी सुनाई देगी। यह पक्षियों का कलरव है जो इन पर बसेरा पाते हैं। मत्स्य पुराण में एक बहुत ही सारगर्भित श्लोक है – दस कूप समा वापी, दस वापी समो हृद:। दस हृद: सम:पुत्र, दस पुत्रो समो द्रुम:।। अर्थात् 10 कुओं के बराबर एक बावड़ी, 10 बावड़ी के बराबर एक तालाब, 10 तालाबों के बराबर एक पुत्र तथा 10 पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है। अर्थात् वृक्षों की महिमा सर्वोपरि है। इसलिए इस बारिश के मौसम में सडक़ों के किनारे तथा ट्रैफिक सिग्नलों के आस-पास अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाइए, ताकि आपको धूप से बचने के लिए इधर-उधर भटकना न पड़े। (सप्रेस)

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