रबी का अमृत मावठा
21 दिसम्बर 2022, भोपाल । रबी का अमृत मावठा – मावठे की वर्षा ने रबी के दरवाजे से जो शुभ आमद दी है उसका पूरा-पूरा दोहन किया जाना आज की आवश्यकता बन गई है ताकि दोनों लक्षित क्षेत्र तथा उत्पादकता पर अच्छा असर हो सके। उल्लेखनीय है कि इस मावठे के कारण विभिन्न रबी फसलों के रकबे में तो इजाफा हुआ ही है कैसे दिन कटे और अन्न से भंडार भर जायें कुल मिलाकर यह मानना होगा कि अभी दिल्ली दूर है फसल को इन आने वाले दिनों में बीज से अंकुरण और अंकुरण से कंसों का निर्माण होना कोई दो दिन की बात नहीं है। फसल को काफी लम्बी अवधि तक प्रकृति के उतार-चढ़ाव का सामना करना होगा। होता यह भी है कि अच्छे रखरखाव से कम ईकाई क्षेत्र से भी अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है तो कहीं-कहीं बड़े क्षेत्र से भी कम उत्पादन मिलता है जो रखरखाव में ढील के कारण होता है। फसलों का सबसे बड़ा दुश्मन बल्कि पोषक तत्वों का न केवल बराबरी से बढ़वार करने वाला बल्कि फसल से अधिक पोषक तत्वों को खींचने वाला खरपतवार होता है जिसकी प्रतिस्पर्धा से फसलों को बचाना होगा ताकि भूमि में उपलब्ध पोषक तत्व तथा फसलों को कृत्रिम रूप से दिये गये खाद उर्वरकों की बढ़वार ना हो पाये यदि ऐसा होता है तो हर ईकाई क्षेत्र से दुगना उत्पादन लेना कोई काल्पनिक तथ्य ना होकर साकार सपना ही होगा। अच्छी नमी पेट भर भोजन और मुख्य फसल की बढ़वार में सक्रियता में अधिक समय लगने का लाभ खरपतवार को मिल जाता है बथुआ जो सामान्य रूप से गेहूं के साथ प्रतिस्पर्धा करता है को सरलता से कुचला जा सकता है बस जरूरत है तो इतनी सी कि समय से खरपतवारनाशी जैसे 2-4 डी का छिडक़ाव कर दिया जाये।
खरपतवारनाशी का उपयोग यदि बुआई के 30-35 दिनों के भीतर ही कर दिया गया तो कोई कारण नहीं है कि उसके द्वारा फसल को मिलने वाले तत्वों का बढ़वार करने लायक बथुआ रह पायेगा। अच्छे परिणाम के लिये पहली सिंचाई के बाद और दूसरी सिंचाई के पहले हाथ से निंदाई करा ली जाये दो फसल के पौधों के बीच में छिपे खरपतवार को उखाड़ दिया जाये फिर खरपतवारनाशी का उपयोग करें और बतर आने पर ही यूरिया की टाप ड्रेसिंग करें ताकि उर्वरक का पूरा-पूरा लाभ फसल को मिल सके आमतौर पर कृषक सिंचाई करने के पहले यूरिया खेत में फेंक देते हैं जो सर्वथा बेअसर और आर्थिक दृष्टिï से संतोषजनक परिणाम देने वाली बात नहीं होगी क्योंकि यूरिया तत्काल घुलकर बह जायेगा। नमी युक्त खेत में यूरिया का उपयोग अधिक असरकारक होगा। ऐसा करने से उर्वरक पर किये गये व्यय के पूरे-पूरे दाम वसूल किये जा सकते हैं। क्योंकि यूरिया धीमी गति से घुलकर सीधे जड़ों में पहुंचेगा और पौधों की बढ़वार में तेजी ला पायेगा। चने की फसल में दो प्रतिशत डीएपी के घोल के अच्छे परिणाम मिले हैं यदि बुआई के समय किसी कारण 100 किलो डीएपी का उपयोग ना किया गया हो तो छिडक़ाव जरूरी होगा। चने की कुख्यात इल्ली के बचाव हेतु ‘ञ्ज’ आकार की खंूटी तथा फेरोमैन ट्रेप जरूर लगायें। मसूर/अलसी की फसलों में मावठे आने के बाद एक छिडक़ाव मेन्कोजेब का गेरूआ से बचाव हेतु जरूर करें। प्रकृति की मेहरबानी का अधिक से अधिक लाभ उठाना अच्छे रखरखाव पर आधारित है। वर्तमान का युग मैनेजमेंट का युग है उसमें जितनी कसावट आयेगी प्रतिफल उतना ही मीठा होगा और कृषि में तो मैनेजमेन्ट तो रीढ़ की हड्डी की तरह ही है। यह नहीं भूलना चाहिए।
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