बनी रहे मावठे की मिठास
22 जनवरी 2023, भोपाल । बनी रहे मावठे की मिठास – प्रकृति जब देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है। मावठा निश्चित ही रबी फसलों के लिए एक तरह का वरदान ही साबित होगा, प्रकृति से यदि सबसे अधिक प्रभावित होती है तो वह कृषि है और कृषि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। प्रकृति की यदि थोड़ी सी टेड़ी नजर हो जाए तो कृषि पर कहर से इंकार नहीं किया जा सकता है। पखवाड़े के बीच पड़ी मावठे की वर्षा का यदि कृषक चाहे तो समुचित लाभ उठा सकते हैं। विशेषकर असिंचित खेती में उत्पादन बढ़ाया जा सकता है क्योंकि कृषि के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का 60-70 प्रतिशत रकबा असिंचित होता है और यदि एक बार उसकी उत्पादकता बढ़ा ली जाये तो क्षेत्र की औसत उत्पादकता में इजाफा हो सकता है। उल्लेखनीय है कि जैसे ही वर्षा समाप्त होगी वातावरण साफ होने लगेगा तब कृषि फसलों को पाला से बचाने का प्रयास जरूरी होगा। ऐसी सम्भावनायें हैं कि मौसम खुलते ही तापमान गिरेगा और रात में कम आद्र्रता के साफ-स्वच्छ यदि वातावरण बने तब पाला अपने पैर फैला सकते हैं। पाले से बचाव के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाशन कृषकों के हित में किया गया है। आशा है उसका लाभ कृषक अवश्य लेंगे अपनी पलती-पुसती फसलों को बचा लेंगे। अरहर को पाले से सबसे अधिक हानि संभावित है। फूल अवस्था में और अधिक नुकसान होने की संभावना होती है। इसलिये अरहर की फसलों को बचाने के लिये पहले से चौकस रहें।
वर्तमान में दूरदर्शन, आकाशवाणी, दैनिक अखबार में सतत मौसम के विषय में खबरों का प्रसारण किया जाता रहा है। उसका उपयोग कृषकों को सर्तकता से करना चाहिये आलू की फसल में पिछेती झुलसा के लिये सबसे उपयुक्त मौसम बन गया है। एक छिडक़ाव निचली पत्तियों पर फफूंदनाशी का करना हितकर होगा इस एक छिडक़ाव से दो परिणाम मिलेंगे अगेती तथा पिछेती झुलसा पर नियंत्रण हो जायेगा। कृषकों को पूर्व सूचित किया जा चुका है कि मावठे के जल के साथ-साथ हिमालय तथा नीलगिरी पलनी पहाडिय़ों पर स्वयं ऊगे गेहूं के पौधों पर गेरूआ की फफूंदी बनी रहती है। वहां से हवा और पानी के साथ यह फफूंदी मैदानी क्षेत्र में लगे गेहूं पर गिरती है। अनुसंधान द्वारा यह बात सिद्ध हो चुकी है कि गेरूआ की फफूंदी मावठे के जल से साथ गेहूं जो मैदान में लगाई है पर गिर कर अपना अस्तित्व बना लेती है। वर्तमान का तापमान उसे दुगना करने के लिये उपयुक्त नहीं है। परंतु जैसे ही तापमान 14 डिग्री के आसपास होगा फफूंदी बिजली की रफ्तार से बढ़ेगी और पलते-पुसते गेहूं पर असर करने में नहीं चूकेगी। काले गेरूए तथा भूरे गेरूए की फफूंदी 4 हजार फुट ऊंचाई पर पनपती है तो पीले गेरूआ के फफूंदी 7 हजार फीट ऊंचाई से मैदानों में आती है। पीले गेरूए की फफूंदी का विस्तार केवल कम तापमान वाले क्षेत्रों तक ही सीमित रहता है परंतु भूरे तथा काले गेरूए की फफूंदी बनते तापमान वाले क्षेत्रों में बढ़ती है। पीला गेरूआ पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार तथा उत्तरप्रदेश के क्षेत्रों में लगे गेहूं पर नुकसान पहुंचाता है तो भूरे तथा काले गेरूआ का विस्तार मध्यप्रदेश तथा अन्य दक्षिण क्षेत्रों तक होता है। कहावत है खेती आप सेती जो जितने करीब से अपने बच्चों की तरह खेतों में पलते-पुसते पौधों पर पैनीनजर रखेगा उसे उतना ही फायदा हो सकेगा। प्रकृति के इस अनमोल देन का कृषक भरपूर लाभ उठायें ऐसी आवश्यकता है ताकि प्रति इकाई उत्पादकता बढ़ सके और खेती लाभकारी हो सके।
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