कीटनाशकों का फसलों में अंधाधुंध प्रयोग
समस्या व समाधान
कीटनाशकों का वर्गीकरण:
- फंगीसाइड्स – कवक या कुकरमुत्ता को मारने के लिए।
- हर्बिसाइड्स- खतपतवारों को नष्ट करने के लिए।
- इन्सेक्टीसाइड्स- कीड़े- मकोड़े को मारने के लिए।
- माइटिसाइड – दीमक को मारने के लिए।
- नेमेटोसाइड-निमेटोड को मारने के लिए।
- रोंडेन्टिसाइड- चूहों को मारने के लिए।
कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के प्रभाव:
- जैव विविधता पर प्रभाव: जहां कीटनाशकों के अवशेष आहार श्रृंखला को प्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करता है सबसे ज्यादा कीटनाशकों का अवशेष सब्जियों में रहता है क्योंकि हरी सब्जियों को हम ताजा या 2-3 दिन के अंदर खाते हैं। जो हमारे आहार के द्वारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। वहीं यह अप्रत्यक्ष रूप से दुर्लभ प्रजाति के पक्षी व जीवों की विलुप्ति का कारण भी है।
- जलीय जैव विविधता पर प्रभाव : कीटनाशक कई तरह से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पानी स्रोतों में मिलकर यह जलीय पौधों तथा पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को कम करके जलीय जीव जैसे मछलिओं की संख्या को भी प्रभावित करता है।
भारत में कृषि में कीटनाशकों में मुख्यत: कीटनाशक, फंफूदनाशक और खतपतवारनाशक प्रयोग किये जाते हैं जिसमें से सबसे ज्यादा हिस्सेदारी कीटनाशकों व खतपतवारनाशकों की है। वर्ष 2009 के बाद भारत में कीटनाशकों की खपत में खासी वृद्धि हुई है। वर्ष 2014-15 में कीटनाशकों की खपत 0.29 किग्रा/ हेक्टेयर थी जो वर्ष 2009 की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत ज्यादा थी। हाल ही में हुई इस वृद्धि का एक कारण किसानों द्वारा खतपतवार को नष्ट करने के लिए खतपतवारनाशकों का प्रयोग भी मुख्य कारण हैं क्योंकि यह मजदूरों द्वारा खतपतवार को नष्ट करवाने से सस्ता पड़ता है। देश में कीटनाशकों का सबसे ज्यादा प्रयोग मुख्यत: महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में हो रहा है।
सामान्य जैव विविधता : अनियंत्रित कीटनाशकों का प्रयोग लक्षित पौधों के साथ साथ दूसरे पौधों पर भी घातक प्रभाव डालता है। इसके अलावा कृषि के लिए फायदेमंद कीट जैसे मधुमक्खी, झींगुर व दूसरे कीट बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। हाल ही के सालों में मधुमक्खियों की संख्या में भारी गिरावट प्रत्यक्ष रूप से देखी जा सकती है। इसके साथ ही लगातार कीटनाशकों के प्रभाव से मृदा के अंदर सूक्ष्म जीव जो कि नाइट्रोजन को निर्धारण करते है उनकी संख्या बुरी तरह से प्रभावित हुई है जिससे मृदा की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही है।
अत्यधिक कीटनाशक प्रयोग के कारणकिसानों का शिक्षा स्तर: हमारे ज्यादातर किसान ज्यादा पढ़े -लिखे नहीं है जिसके कारण उनको कीटनाशकों के रसायनिक घटकों तथा उपयोग की मात्रा की बहुत कम जानकारी पता चलती है। जिससे किसान अनजाने में कीटनाशकों का सिफ़ारिश से अधिक प्रयोग करते हैं। जागरूकता की कमी : हमारे किसानों में कीटनाशकों के विभिन्न प्रकार के विपरीत प्रभावों के बारे में जागरूकता का स्तर कम हैं, जिसके कारण कीटनाशकों का प्रयोग दिन- प्रतिदिन बढ़ रहा है। किसानों को अपर्याप्त प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता : हमारे देश में किसानों के लिए कीटनाशकों के बारे में प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता की काफी कम है। जिसके चलते किसान जाने-अनजाने में कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरत से बहुत ज्यादा कर रहे है। योग्य एकीकृत कीट प्रबंधन विशेषज्ञों और विस्तारकों की कमी : कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग का एक मुख्य कारण देश में योग्य एकीकृत कीट प्रबंधन विशेषज्ञों और विस्तारकों की भारी कमी है। जिसके कारण किसानों को समय पर कीट प्रबंधन की सही जानकारी नहीं मिलती है। कीटनाशक उद्योग का शक्तिशाली प्रभाव : कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग का एक मुख्य कारण देश में योग्य एकीकृत कीट प्रबंधन विशेषज्ञों और विस्तारकों की भारी कमी है। जिसके कारण किसानों को समय पर कीट प्रबंधन की सही जानकारी नहीं मिलती हैं। विक्रेता द्वारा कीटनाशकों का भारी प्रचार : देश में कीटनाशक विक्रेताओं द्वारा भारी-भरकम प्रचार के साथ किसानों को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन दिए जा रहे हैं जिससे किसान वर्ग उनके बहकावे में आकर कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहा है। कीट पहचान सेवाओं की कमी : देश में कीट विशेषज्ञों की कमी है जिसके कारण किसानों को किसान के मित्र और दुश्मन कीटों की सही जानकारी नहीं मिल पाती जिसके परिणाम स्वरूप किसान मित्र कीटों पर भी रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करते है। प्राकृतिक प्रबंधन के लिए कम रुचि, जैसे फसल चक्र और इंटरक्रॉपिंग: हमारे किसानों में प्राकृतिक प्रबंधन जैसे फसल चक्र, इंटरक्रॉपिंग आदि क्रियाओं में भी कम रूचि है। किसान एक ही फसल चक्र को कई सालों से करते आ रहे हैं जिसके वजय से उस फसल में आने वाले कीटों में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो गयी है जिसके चलते किसानों को साल दर साल विभिन्न कीटनाशकों का प्रयोग अधिक मात्रा में करना पड़ रहा है। जैविक नियंत्रण पर कम ध्यान : किसानों का जैविक कीट नियंत्रण की और भी कम ध्यान है किसान जैविक कीट प्रबधन की जगह रसायनिक कीट नियंत्रण पर ज्यादा केंद्रित है। |
मानव स्वास्थ्य पर कीटनाशक का प्रभाव: मानव स्वास्थ्य पर कीटनाशकों का प्रभाव अत्यधिक परिवर्तनशील है। वे दिनों में दिखाई दे सकते हैं या उन्हें प्रकट होने में महीनों या साल लग सकते हैं और इसलिए उन्हें तीव्र या दीर्घकालिक प्रभाव कहा जाता है।
तीव्र प्रभाव: कीटनाशक एक्सपोजर के तुरंत प्रभाव में सिरदर्द, आँखों और त्वचा का डंक मारना, नाक और गले में जलन, त्वचा में खुजली, त्वचा पर दाने और फफोले का दिखना, चक्कर आना, दस्त, पेट में दर्द, मतली और उल्टी, धुंधली दृष्टि, अंधापन शामिल हैं।
दीर्घकालिक प्रभाव: कीटनाशकों के दीर्घकालिक प्रभाव अक्सर घातक होते हैं और वर्षों तक भी प्रकट नहीं हो सकते हैं। दीर्घकालिक प्रभाव जो शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं। लंबे समय तक कीटनाशक के संपर्क में आने के बाद परिणाम सामने आते हैं इसमें मुख्य प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचाता है और अतिसंवेदनशीलता, अस्थमा और एलर्जी पैदा कर सकता है। कीटनाशक कई प्रकार के कैंसर का कारण होता है जैसे मस्तिष्क लिंफोमा, स्तन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, अंडाशय और वृषण कैंसर। लंबे समय तक शरीर में कीटनाशकों की उपस्थिति भी पुरुष और महिला प्रजनन हार्मोन के स्तर में परिवर्तन करके प्रजनन क्षमताओं को प्रभावित करती है।
कृषि लागत में वृद्वि: किसानों द्वारा प्रयोग किये जा रहे रसायनिक कीटनाशकों की कीमत बहुत ज्यादा होने कारण, ये कृषि में होने वाली लागत में अच्छी खासी बढ़ोतरी कर रहे हंै जिसके कारण किसानों का कृषि से शुद्ध लाभ कम हो रहा है।
अत: मेरा आप सब किसान भाईयों से अनुरोध है कि आप चर्चा की गई बातों को ध्यान में रखें ताकि आप अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण को भी बचाया जा सकें। इसके साथ मेरा सरकार से निवेदन है कि कीटनाशक निर्माताओं तथा विक्रेताओं के लिए सख्त नियम नीति लागू करें ताकि दूसरे देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का निर्माण तथा बिक्री पर अपने देश में रोक लग सके।
समाधान
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को रसायनिक उर्वरकों का उपयोग धीरे-धीरे कम करने और अंतत: मिट्टी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उनके उपयोग को रोकने के लिए एक स्पष्टीकरण दिया। प्रधान मंत्री ने कहा कि रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण पृथ्वी नष्ट हो रही है। ‘क्या हमने कभी धरती माता के स्वास्थ्य के बारे में सोचा है? जिस तरह से हम रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं, हम पृथ्वी को नष्ट कर रहे हैं,’ उन्होंने कहा कि कोई भी शरीर स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने का अधिकार नहीं रखता है। ‘मैं अपने कृषक समुदाय से अनुरोध करता हूं … हम अपनी आजादी के 75 साल मनाने जा रहे हैं। गांधी जी ने हमें रास्ता दिखाया है। क्या हम अपने खेत की भूमि में रसायनिक उर्वरकों के उपयोग को 10 से 25 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं, प्रधान मंत्री ने कहा कि एक अभियान को अंतत: उनके उपयोग को पूरी तरह से बंद करने के लिए शुरू करें।
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- मनजीत
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