संपादकीय (Editorial)

पशुओं को लू लगने के लक्षण एवं उपाय

लू लगने का कारण – पशुओं के बाड़े में ज्यादा मात्रा में नमी होना तथा वायुसंचार ठीक प्रकार नहीं होना, बाड़े में भीड़ होना, पशुओं से धूप में काम करवाना, उन्हें ठीक से पानी न पिलाना इन कारणों से पशुओं के शरीर का अंदरूनी तापमान बढ़ता है और उसके शरीर में मौजूद ताप नियमन प्रणाली काम नहीं करती तथा इसके फलस्वरूप उन्हें लू लगती हैं.
लू लगने के लक्षण– जिस पशु को लू लगती हैं उसे शुरू में बैचेनी होती हैं, पशु अति उत्तेजित होता हैं. अगर लू की सान्द्रता कम है तो उसके शरीर के कुछ विशिष्टï स्नायविक हिस्सों में लकवा मार जाता है. उसे सांस लेने में कठिनाई होती हैं या साँसों की गति कम हो जाती है. कुछ पशुओं में सांसे लेना बंद होकर पशु की मृत्यु हो जाती है. पशुओं के मस्तिष्क में खून का संचय होने से उनके शरीर में खून का दबाव बढ़ जाता है जिससे वे या तो लडख़ड़ाते हुए चलते हैं या जमीन पर धड़ाम से गिर जाते हैं. उन्हें झटके आते हैं. पशुओं को 108 डिग्री फारेनहिट तक बुखार हो जाता हैं तथा उन्हें जबरदस्त थकान हो जाती है. उनकी चमड़ी सूख जाती हैं. उनकी प्यास में बढ़ोत्तरी होकर वे ज्यादा मात्रा में पानी पीते हैं. उनके शरीर का तापमान अत्यधिक बढऩे पर वे बेहोश हो जाते हैं या उनकी मृत्यु भी हो सकती है.
उपचार – जिस पशु को लू लगती है उसे तुरन्त हवादार ठंडी छायादार जगह पर ले जाये. अगर पशु का शरीर भार ज्यादा होने की वजह से उसे उठाने में कठिनाई महसूस हों तो वही पाल लगाकर उस पर छाया की व्यवस्था करें.

  • पशु के शरीर के ऊपर मटके का ठंडा जल छिड़कें तथा किसी पुट्ठा/ खर्डा या अखबार लेकर उसे हवा दें. इससे उसके शरीर का बढ़ा हुआ तापमान कम होने में मदद मिलेगी.
  • पशु को 10 लीटर पानी में 5 ग्राम सादा नमक मिलाकर पिलायें.
  • अगर व्यवस्था है तो पशु के शरीर पर पाईप द्वारा पानी की फुहार लगायें. इससे उसके शरीर का बढ़ा हुआ तापमान कम होने में मदद मिलेगी.
  • तुरन्त अनुभवी पशुओं के डाक्टर को बुलाकर सलाईन लगवाये तथा उसके द्वारा इलाज करवायें.

घरेलू उपचार –

  • आम (कच्ची कैरी) का पना पिलायें या इमली का पानी नमक मिलाकर पिलायें.
  • गुलाब के फूल की पंखुडिय़ों का शरबत बनाकर उसमें चीनी (शक्कर) मिलाकर पिलायें.
  • प्याज का रस 50 मिलीलीटर लेकर उसमें 10 ग्राम जीरा चूर्ण तथा 50 ग्राम खड़ी शक्कर मिलाकर पिलायें.

बचाव –पशुधन प्रबंधन के स्वर्णिम तत्व अनुसार बचाव उपाय से श्रेष्ठï होता हैं. अत: इस उक्ती अनुसार पशुओं को लू नहीं लगनी चाहिए इसके लिए प्रयास करें. पशुओं से सबेरे 5 से 9 तथा शाम को सूरज ढलने के पश्चात कृषि कार्य हेतु इस्तेमाल करें. उन्हें धूप के वक्त छायादार बाड़े या घने वृक्ष की छाया में रखें. पशुओं का बाड़ा ठंडा रखने हेतु छत पर घांसफूस डालें या उन पर बेल बढ़ायें. छत के ऊपर सफेद पेन्ट लगायें. बाड़े के ईद-गिर्द घने छायादार वृक्ष जिनमें ग्रीष्मऋतु में पत्तियाँ रहती हैं. जैसे आम, नीम, सिरस, अकेशिया, अशोक आदि लगायें. बाड़े के आंगन में भी बल्लियाँ. खंबे लगाकर ऊपर टाट बोरियां या हो सके तो हरी जालीदार कपड़े की छत बनवायें. ताकि पशु हवादार जगह में आराम कर सके. बाड़े में ज्यादा भीड़ नहीं होनी चाहिए. हो सके तो बाड़े के छत पर पानी की टंकी लगाकर छेदधारी पी.व्ही.सी. पाईप द्वारा पशुओं के शरीर पर दिन में गर्मी के समय ठंडे पानी की फुहार डालें. पानी की टंकी को सफेद पेन्ट लगवायें ताकि वह गर्म न हो. अगर यह मुमकिन न हो तो दिन में तीन से छह बार बाल्टी में ठंडा जल भरकर लोटे से पशुओं के शरीर पर पानी का छिड़काव करें. बाड़े की बगलों में टाट/बोरियों के पर्दे लगाकर उन पर पानी छिटक कर उन्हें गीला रखें इससे बाहर की हवा ठंडी होकर बाड़े के अंदर प्रवेश करेगी तथा बाड़े के भीतर का तापमान कम होगा.
पशुओं को ठंडा जल पिलायें. इसके लिये एक दिन पहले बड़े मटकों या बर्तनों में पानी भरकर रखें. दिन में कम से कम तीन-चार बार ठंडा जल पिलायें. इससे पशुओं को काफी राहत मिलेगी. पशुओं को दिन में सूखा भूसा या चारा ना खिलायें. उन्हें हरा चारा खिलायें. इससे भी उन्हें ठंडक प्रदान होती है. पशुओं के बाड़े में खनिज ईट टांग कर रखें. उनके कुट्टी में एक मुट्ठी भर सादा नमक का घोल डालकर खिलाये. उनकी कुट्टी भिगोकर फिर खिलायें. सूखी कुट्टी ना खिलायें. कुट्टी में 2 चम्मच जीवनसत्व मिश्रण भी डालें।

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