संपादकीय (Editorial)

किसान स्वयं अपनी खेती की लागत कम करे

अशोक कुमठ

24 फरवरी 2024, भोपाल: किसान स्वयं अपनी खेती की लागत कम करे – अब समय आ गया, किसान वैज्ञानिक आधार पर खेती कर अपनी खेती की लागत को स्वयं कम करे, यूरिया जैसी खाद के असंतुलित उपयोग से फसल उत्पादन में और मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी आ रही है, साथ ही सरकार द्वारा दी जा रही सब्सीडी भी पानी में जा रही है। फसलों को मुख्य रुप से तीन तत्व एनपीके की आवश्यकता होती है। इसमें 46 प्रतिशत नाइट्रोजन तत्व यूरिया से, फोस्फोरस तत्व डीएपी या सुपर फोस्फेट से एवं पोटाश तत्व आयातित पोटाश से मिल जाता है, अन्य 16 तत्व जिसमें सल्फर, जींक, मैग्निशीयम, आयरन, कैल्शीयम आदि घुलनशील खादों से मिल जाते है। सरकार के लाख जतन के बाद भी किसान यूरिया का अंधाधुंध उपयोग कर रहे है। तीन तत्वों का अनुपात 4ः2ः1 होना चाहिए, जो बिगड़कर 7ः3ः1 हो गया है। यूरिया के द्वारा ही पौधे हरे होकर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते है, लेकिन सस्ता होने के कारण किसान अनावश्यक उपयोग कर रहे है, जो फसलों के लिए घातक है।

अशोक कुमठ, मो. 8989557689

सरकार किसानों पर बोझ ना पड़े इसके लिए यूरिया पर भारी सब्सीडी दे रही है, 2.5 लाख करोड़ की कुछ सब्सीडी में 1.60 लाख करोड केवल यूरिया पर दे रही है। 75 से 80 रुपए किलो मूल्य का आयातित यूरिया को किसानों को 5-6 रुपए प्रति किलो दे रहे है, भारत में 265 रुपए में मिलने वाला यूरिया अमेरिका में 3000 रुपए और चीन में 2100 प्रति बेग में मिलता है, लेकिन सरकार की इस सहायता का दुरुपयोग हो रहा है, सोयाबीन जैसी फसल में यूरिया की कोई आवश्यकता नही, फिर भी धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है, गेंहू की फसल में 40 से 60 किलो यूरिया के उपयोग के बजाए किसान 120 से 150 किलो प्रति हेक्टेयर डाल रहे है, जो बर्बादी है, सरकार 350 लाख टन यूरिया की खपत को कम करना चाहती है, क्योंकि अभी भी 70.50 लाख टन आयात करना पड़ रहा है, प्रधानमंत्री की प्रेरणा से पांच बन्द पड़े यूरिया कारखानों रामागुंडम फटि., हिन्दुस्तान उर्वरक गोरखपुर, सिंदरी, बरोनी तालचर को पुनः शुरु किया है, प्रत्येक कारखाने की सालाना उत्पादन क्षमता 12.7 लाख मेट्रिक टन है। इन सभी पांचों संयत्रों के चालू हो जाने से 63 लाख मेट्रिक टन यूरिया की उपलब्धता बढ़ेगी और आयात का भार कम पड़ेगा। साथ ही तरल यूरिया नेनो का उत्पादन प्रारंभ किया है, ताकि भार कम हो सकते। यूरिया के बेग का वजन भी 50 से घटाकर 45 किलो किया है, अनावश्यक अन्यत्र उपयोग को रोकने के लिए नीमकोटेड किया है, आने वाले दिनों में यूरिया गोल्ड की योजना, जिसमें सल्फर कोटेड यूरिया मिलेगा, उसका प्रति बेग वजन घटाकर 40 किलो किया जा रहा है। सरकार की हर संभव चाह है कि किसान संतुलित खाद का उपयोग करे। सायल हेल्थ कार्ड (22 करोड वितरित किए है) के अनुसार खेती करे, लेकिन एसा हो नही रहा, किसान अपनी परम्परागत खेती को नही छोड़कर अपना नुकसान स्वयं कर रहे है, किसानों को अनिवार्य रुप से निम्ब उपाय अपनाकर अपनी लागत कम करना चाहिए।

1. अपनी खेत की मिट्टी का अनिवार्य रुप से परीक्षण करावे।
2. मिट्टी के तत्वों के आधार पर खाद का संतुलित उपयोग करें।
3. यूरिया का अंधाधुंध प्रयोग बन्द हो।
4. माइक्रो इरिगेशन को अपनावे।
5. फसल चक्र बदलते रहे।
6. नेनो यूरिया, डीएपी एवं यूरिया गोल्ड का उपयोग हो।
7. कृषि दवाईयों के छिड़काव में ड्रोन का उपयोग हो।
8. नियमित कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से खेती हो।

सड़कों पर आन्दोलन के साथ सरकार के सामने बाहें बढ़ाने से अच्छा हो, सरकार से कंधे से कंधे मिलाकर खेती की नई व्यवस्थाओं का निर्माण करे, वैज्ञानिक खेती को खुले मन से अपनाकर अपनी खेती की लागत स्वयं कम कर इसे लाभ का धंधा बनाने का दृढ़ संकल्प ले।

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