Editorial (संपादकीय)

लगाएं खरपतवारों पर ब्रेक

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यह निर्विवाद सत्य है कि खरपतवारों की उपस्थिति फसल की उपज कम करने में सहायक है. किसान जो अपनी पूर्ण शक्ति व साधन फसल की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए उगाता है, ये अवांछनीय पौधे इस उद्देश्य को पूरा नहीं होने देते. खरपतवार फसल से पोषक तत्व, नमी, प्रकाश ,स्थान आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करके फसल की वृद्धि, उपज एवं गुणों में कमी कर देते हैं. आमतौर पर विभिन्न फसलों की पैदावार में खरपतवारों द्वारा 5 से 85 प्रतिशत तक की कमी आंकी गयी है. लेकिन कभी-कभी यह कमी शत-प्रतिशत तक हो जाती है. खरपतवार फसलों के लिए भूमि में निहित पोषक तत्व एवं नमी का एक बड़ा हिस्सा शोषित कर लेते हैं तथा साथ ही साथ फसल को आवश्यक प्रकाश एवं स्थान से भी वंचित रखते हैं, फलस्वरूप पौधे की विकास गति धीमी पड़ जाती है एवं उत्पादन स्तर गिर जाता है. खरपतवारों द्वारा भूमि से पोषक तत्वों एवं नमी का शोषण तथा परिणामस्वरूप उपज में कमी खरपतवारों की संख्या, जाति, फसल की किस्म, उर्वरक एवं सिंचाई के पानी की मात्रा, मौसम आदि पर निर्भर करती है. खरीफ मौसम की फसलों में रबी फसलों की अपेक्षा खरपतवारों से अधिक नुकसान होता है. इसके अतिरिक्त खरपतवार फसलों में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं तथा कीट-व्याधियों को भी शरण देते हैं तथा फसल की गुणवत्ता में कमी कर देते हैं, खरपतवारों की उपस्थिति से भूमि के मूल्य में भी गिरावट आ जाती है तथा बहुत से खरपतवार मनुष्यों एवं पशुओं के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं. विभिन्न फसलों में खरपतवारों द्वारा पोषक तत्वों का शोषण एवं पैदावार में कमी का विवरण क्रमश: सारणी में दिया गया है।

विभिन्न फसलों के प्रमुख खरपतवार- किसी स्थान पर खरपतवारों की उपस्थिति वहीं की जलवायु, भूमि की संरचना, भूमि में नमी की मात्रा, खेतों में बोयी गयी पिछली फसल आदि पर निर्भर करती है। इसलिये एक ही फसल में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार के खरपतवार पाये जाते हैं। खरपतवारों को सुविधा के लिये मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा गया है। एक चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, जैसे बथुआ हिरनखुरी, कृष्णनील आदि तथा दूसरे संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे गेहूं का मामा,जंगली जई, साँवक आदि।

खरपतवारों की रोकथाम कब करें- प्राय: यह देखा गया है कि कीड़े-मकोड़े, रोग व्याधि लगने पर इनकी रोकथाम की ओर तुरन्त ध्यान दिया जाता है लेकिन किसान खरपतवारों को तब तक बढऩे देते हैं जब तक कि वह हाथ से पकड़कर उखाडऩे लायक न हो जाय, इसके दो कारण हैं एक तो भारतीय किसान समुदाय का अधिकांश भाग अशिक्षित एवं रूढ़ीवादी है और खरपतवारों द्वारा होने वाली हानि से बिना प्रमाण के खरपतवारों की रोकथाम की ओर विशेष ध्यान नहीं देता, तथा दूसरे किसान परिवार खरपतवारों को खेत से काटकर अपने दुधारू पशुओं के लिये हरे चारे के रूप में प्रयोग करते हैं। फसल के पौधे अपनी प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवारों से मुकाबला नहीं कर पाते हैं
यांत्रिक विधि- खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है। फसलों की प्रारम्भिक अवस्था में बुवाई के 15 से 45 दिन के मध्य का समय खरपतवारों से प्रतियोगिता की दृष्टि से क्रांतिक समय है अत: आरंभिक अवस्था में ही फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखना अधिक लाभदायक है। सामान्यतया: दो निंराई-गुड़ाई, पहली बुवाई के 20-25 दिन बाद तथा दूसरी 40-45 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।

रसायनिक विधि- खरपतवारों को रसायनों का प्रयोग करके भी नियंत्रित किया जा सकता है। इससे प्रति हेक्टर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है। लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इनका प्रयोग उचित मात्रा में उचित ढंग से तथा उपयुक्त समय पर हो अन्यथा लाभ के बजाय हानि की सम्भावना रहती है।

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