Editorial (संपादकीय)

बुआई उपरांत फसलों की देखरेख

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14 नवम्बर 2022, भोपालबुआई उपरांत फसलों की देखरेख – रबी फसलों की बुआई कार्यक्रम में पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष गति कम दिखाई दे रही है, जिसका परिणाम बुआई में देरी हो सकती है। जबकि समय से फसलों की बुआई का अपना अलग महत्व है। कहावत है डाल का चूका बंदर और समय से चूका किसान दोनों की दुर्गति होती है। भूमि में नमी की बढ़ोत्तरी से अंकुरण में इजाफा  होगा। अब गेहूं की बुआई पूरी कर लेनी चाहिये ताकि अच्छी नमी का पूरा-पूरा लाभ अर्जित किया जा सके। ध्यान रखें, केवल उन्हीं किस्मों की बुआई की जाये जो असिंचित या अर्धसिंचित अवस्था के लिये बताई गई हैं। असिंचित अवस्था में यदि सिंचित अवस्था की जातियों की बुआई की गई हो तो भविष्य में पौधों में बालियां समय से पहले निकल आयेंगी और दाना कमजोर होगा पूर्व में ऐसे अनेकों उदाहरण सामने आये हैं और बाद में निराकरण नहीं हो पाये हैं। असिंचित अवस्था की गेहूं की जातियों की बुआई कम से कम 4-6 सेमी गहराई पर की जाना चाहिये। तथा दाना आल (नमी) में जा रहा है इस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये किसी भी कीमत में बीज के साथ उर्वरक मिश्रण नहीं किया जाये तथा इस वर्ष अधिक से अधिक क्षेत्र में संतुलित उर्वरक उपयोग अवश्य किया जाये चूंकि भूमि में आम वर्षों की तुलना में इस वर्ष नमी पर्याप्त है। जिसका लाभ लेने से अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। बीजोपचार अनिवार्य होना चाहिये तथा अंकुरण उपरांत खाली जगह भरने से लक्षित उत्पादन मिलना संभव होगा। उल्लेखनीय है कि देश में तथा प्रदेश में 60-70 प्रतिशत खेती वर्षा आधारित होती है। यदि  क्षेत्र की औसत उत्पादकता बढ़ा दी जाये तो पूरे  क्षेत्र की औसत में फर्क लाया जा सकता है। अलसी का बीज चिकना होता है उसकी उराई अनुभवी मजदूरों से ही कराई जाये। अन्यथा जगह-जगह पौधों के झुक्के मिलेंगे, जिनसे औसत पौध संख्या प्रभावित होगी चना, मटर, मसूर, कुसुम की बुआई भी उचित गहराई पर की जाये तथा विधिवत बीजोपचार भी किया जाये।

चने के खेतों से सोयाबीन के स्वयं ऊगे पौधों को निकालना जरूरी है ताकि चने की इल्ली चौड़ी पत्तियों का सुख देखकर अपने अंडों के लिये अड्डा बनाने में विफल हो सकें। साथ ही जगह-जगह टी आकार की खूटियां भी, खरपतवार जो कोमल पौधों के साथ तीव्रता से ऊग कर पोषक तत्वों का बंटवारा करते हंै उनको निकालकर खाद के गड्ढों में डालते रहें। ध्यान रहे सभी फसलों में पर्याप्त पौध संख्या हो ताकि अच्छा उत्पादन मिल सके। सिंचित अवस्था में अब गेहूं की बुआई 2-3 सेमी गहराई पर करें। पूर्ण संतुलित उर्वरक की मात्रा देकर ही करें तथा खरपतवारों को मारने के लिये 30 दिनों के भीतर ही खरपतवारनाशी का उपयोग करें अन्यथा पैसा एवं श्रम दोनों व्यर्थ जायेंगे। पहली सिंचाई किरीट जड़ अवस्था पर बहुत जरूरी है जो कल्लों का औसत बढ़ाती है इस अवस्था में नमी की कमी कदापि नहीं होना चाहिये अतएव 21 दिनों बाद सिंचाई सुनिश्चित करें। वो भी खरपतवार निकालने के बाद पहली निंदाई यदि हाथों से की जाये तो अधिक अच्छा होगा। उर्वरक की टाप ड्रेसिंग खरपतवार को निकालने के बाद और सिंचाई के बाद ही की जाये ताकि उसका पूर्ण लाभ मिल सके। यह बात यूरिया उर्वरक के उपयोग के बारे में जरूरी है। जो आमतौर पर कृषक करते हंै। बुआई उपरांत की इन छोटी-मोटी तकनीकी का अंगीकरण आर्थिक दृष्टि से बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण भी हैं।

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