Editorial (संपादकीय)

रबी फसलों का सही प्रबंधन

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28 नवम्बर 2022, भोपाल । रबी फसलों का सही प्रबंधन – रबी फसलों के लिये प्रति इकाई उत्पादकता बढ़ाकर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जाना संभव है। रबी का राजा गेहूं की तीन-चार स्थिति में बुवाई की जाती है। इसकी भरपूर उपज लेने के लिए खेत की तैयारी, उर्वरकों का उपयोग समय से बुआई, ये जरूरी कार्य है, जिन्हें प्राथमिकता से किया जाना होगा। अच्छी फसल के लिए 4-5 सिंचाई जरूरी होगी, जो फसल की विभिन्न अवस्था में दिया जाना चाहिए उनमें सबसे अहम सिंचाई बुआई के 21 दिनों बाद किरीट जड़ अवस्था में की जाना चाहिए, दूसरी सिंचाई कल्ले निकलते समय, चौथी फूल एवं दूधिया अवस्था तथा पांचवीं दाना बनते समय की जाना चाहिए। इस वर्ष की वर्षा से भूमिगत जल की स्थिति बेहतर हुई है। इस कारण भरपूर उर्वरक देकर अधिक उपज प्राप्त हो सकती है। विशेषकर बारानी खेती में भी नत्रजन, स्फुर तथा पोटाश तीनों मुख्य तत्व दिये जाना हितकर होगा। सिंचित गेहूं में प्रमुख तत्वों के अलावा जिंक तथा सल्फर का उपयोग भी उपयोगी होगा। अच्छी वर्षा से खरपतवार की बढ़वार भी अधिक हुई है। गेहूं में बथुआ की स्थिति तो कहीं-कहीं मुख्य फसल से अधिक भी हो सकती है इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अंकुरण उपरांत 30-35 दिनों के अंदर खरपतवारनाशी छिडक़ाव और एक निंदाई हाथ से हो जाये तो क्या कहने फसल देखते ही बनेगी। हाथ से निंदाई करने से दो पौधों के बीच हुए खरपतवार को हटाना जरूरी होगा क्योंकि ये पौधों से, मुख्य रूप से बराबरी का पोषक तत्व खा लेता है जड़ सहित उखडऩे से उसका पुन: पनपने पर रोक लगेगी। कम उपजाऊ क्षेत्र में गेहूं की जगह जौ लगाना चाहिए कम लागत में अच्छा उत्पादन मिल सकेगा। दो पानी एक कल्ले निकलते समय तथा दूसरा फूल आने के समय यदि मिल जाये तो सोने में सुहागा हो जायेगा। चना, मटर, मसूर, अलसी, दलहनी फसल भी रबी की मुख्य फसलें हैं।

आमतौर पर इनकी बुआई के लिये खेत की तैयारी में कोताही रखरखाव में कमी उर्वरकों का उपयोग नहीं के बराबर होने से इनकी औसत उपज पर असर होता है। इनके अच्छे उत्पादन के लिए अधिक ध्यान दिया जाना वर्तमान की जरूरत है। दलहनी फसलों में जड़ों का विकास एवं जड़ ग्रंथियों के विस्तार के लिए फास्फोरस खाद का दिया जाना महत्वपूर्ण है। बीजों का उपचार राइजोबियम कल्चर द्वारा बहुत जरूरी कार्य होगा। फूल आते समय एवं फलियां बनते समय सिंचाई करके उत्पादन दो गुना किया जा सकता है। चने की दुश्मन इल्ली के बचाव हेतु (ञ्ज) टी आकार की खूंटियां, प्रकाश प्रपंच तथा फेरोमेन ट्रेप का उपयोग अत्यंत लाभकारी होगा। इससे कीट नियंत्रण आसानी से होगा और समय से उपचार भी किया जा सके।गा। इसी प्रकार तिलहनी फसलों की बुआई से लेकर रखरखाव भी गेहूं की तरह की जाना चाहिए। उर्वरकों का उपयोग विशेषकर फास्फोरस एवं पोटाश से लाभ ही होगा इसके अलावा गंधक का उपयोग भी जरूरी होगा। शाखायें फूटते समय तथा फली अवस्था में यथासम्भव सिंचाई करने से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। रबी में मौसम मेहरबान रहता है। भरपूर प्रकाश, ऊर्जा तथा आद्र्रता जिसका लाभ उठाया जाकर लक्षित उत्पादन प्राप्त करना कठिन नहीं है।

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