प्राकृतिक कृषि और ड्रोन के मध्य किसान
- सुनील गंगराड़े
9 अगस्त 2022, भोपाल । प्राकृतिक कृषि और ड्रोन के मध्य किसान – प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने, फर्टिलाइजर उपयोग को कम करने, कीटनाशकों का ड्रोन से छिडक़ाव, भारतीय कृषि संस्कृति के ऐसे अनेक विपरीत ध्रुवों को जोडऩे वाली कड़ी के रूप में है भारत का किसान अन्नदाता। अभिनंदन! किसान भाई भी डटे हुए हैं। पीढिय़ों से मुहावरा विभिन्न मंचों से गूंजता है, निबंधों की प्रथम पंक्ति होती है ‘भारत कृषि प्रधान देश है’ और देश की अर्थव्यवस्था की धुरी कृषि है। परन्तु खेती में लाभ होना, आज भी देश के 85 प्रतिशत किसानों के लिए मृग मरीचिका है।
देश में 10 करोड़ से अधिक किसानों के पास 1 हेक्टेयर से भी कम कृषि भूमि है, वहीं 2.5 करोड़ किसान 2 हेक्टेयर से कम भूमि पर खेती करते हैं। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक छोटी जोत हाइटेक खेती के प्रयोग करने के लिए व्यवहारिक नहीं हैं। यह वर्ष आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। निश्चित रूप से स्वतंत्रता मिलने के बाद से भारतीय कृषि और ग्रामीण जीवन की उत्कृष्ट तस्वीर दिखती है। 1947 के दौर में देश की राष्ट्रीय आय का कृषि में लगभग 50 प्रतिशत का योगदान और 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि पर टिकी थी। वक्त के साथ-साथ कृषि का योगदान कम होता गया। वर्ष 2020-21 में जीडीपी में कृषि का योगदान घटकर 19.9 प्रतिशत रह गया। पर कोरोना काल में विर्विवाद रूप से कृषि क्षेत्र ही गतिशील रहा। अनिश्चित मानसून, मिट्टी की गिरती सेहत, कीट-रोगों के प्रकोप की आशंका के मध्य कृषक बंधुओं के दर्द और उनकी भावनाएं मौन ही रहती हैं। सरकार ने मार्च 2022 तक कृषकों की आमदनी दोगुनी करने के लिए कमर कसी थी, तारीख तो गुजर गई, आमदनी में इजाफा नहीं हुआ। हालांकि सरकार ने इस दिशा में अनेक योजनाएं बनाई है, किसानों तक पहुंच भी रही है पर मंजिल अभी दूर है। हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक ने एक रिपोर्ट जारी कर दावा किया कि पिछले 5 वर्षों में किसानों की आमदनी लगभग दूनी हो गई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के एक सर्वेक्षण के मुताबिक खेती से जुड़े लोगों की आय 60 प्रतिशत तक बढ़ गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक किसानों ने पारंपरिक फसलों के बजाय नकदी फसलें लगाने पर ज्यादा जोर दिया है। सरकार भी हर मंच से कहने लगी है- देश में 14 करोड़ किसान है, जिसमें से 85 प्रतिशत छोटे और सीमांत कृषकों की आमदनी बढ़ाने का लक्ष्य पूरा हो गया है। ईश्वर करे, ये सारी रिपोर्ट, ये सारे दावे हकीकत बन जाएं। पर धरातल पर वास्तविकताएं कुछ और रंग में होती हैं। किसान को क्वालिटी बीज नहीं मिलता, फर्टिलाइजर के लिए दर-दर भटकना पड़ता है, खेत की मिट्टी जांच सपना है, मंडी में फसल ले जाने पर लागत भी नहीं निकलती, ऐसी अनेक विकट परिस्थितियों का उसे सामना करना पड़ता है। उसे कर्ज से मुक्ति मिल नहीं पाती है।
आवश्यकता है सामूहिक रूप से कृषि और कृषकों की दशा और दिशा बदलने के प्रयास हों। कृषि विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, राजनीतिज्ञों एवं अन्य सभी स्टेकहोल्डर के सामूहिक प्रयासों से भारतीय कृषि का सुधार होगा और इनोवेशन में इजाफा होगा। किसान भाई भी समय के साथ नए प्रयोग करने और बदलने के लिए तैयार रहें। ड्रोन तकनीक, डिजिटल प्लेटफॉर्म, प्रिसीजन कृषि, स्मार्ट वेयरहाउसिंग, ई- मार्केटिंग जैसी तकनीक अपनाकर खेती को लाभकारी बनाएं।
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