संपादकीय (Editorial)

सरसों के पीड़कनाशी कीटों का प्रबंधन

माहू या चैंपा, लिपेफिस इरिसामी: यह कीट छोटा, कोमल,सफेद, हरे रंग का होता है। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों पौधे के विभिन्न भाग से रस चूसते है। यह प्राय: दिसंबर के अंत से लेकर फरवरी के अंत तक सक्रिय रहता है। इससे उपज में लगभग 25 – 40 प्रतिशत तक की हानि हो सकती है।
लक्षण –

  •  माहू से ग्रसित पत्तियाँ मुड़ जाती है, पौधे कमजोर एवं रोगी दिखाई पड़ते है।
  •  इन कीटों द्वारा छोड़ा गया मधुरस काली फफूंद के पनपने में सहायक होता है जिससे पौधों में प्रकाश संष्लेशण की क्रिया बाधित होती है।
  • ग्रसित फलियाँ कमजोर हो जाते हैं एवं सिकुड़े हुये बीज बनते हंै जिसमें तेल की मात्रा भी कम हो जाती है।

प्रबंधन : शस्य विधियाँ
शीघ्र बोवाई – जल्दी बोवाई करने से फसल को इस कीट प्रकोप से बचाया जा सकता है। 25 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक सरसों की बोवाई उपयुक्त माना जाता है।
उचित किस्मों का चुनाव -माह ूके प्रकोप से बचने के लिए मध्यम प्रतिरोधी किस्म जैसे – करूणा (टी – 59) या सहनशील किस्में जैसे -डब्ल्यू 171, पी. वाय.एस. 842, बायों 4.64 को बीज के लिये उपयोग करें।
जल प्रबंधन– पुष्पावस्था से फली अवस्था के बीच पर्याप्त सिंचाई देने से पौधे में माहू प्रकोप के प्रति सहनशीलता में वृद्धि होती है।
रासायनिक खादों का संतुलित प्रयोग – सभी रासायनिक खादों का उचित मात्रा में उपयोग करें। 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर पोटाश देने से पौधे में कीट प्रकोप के प्रति सहनशीलता बढ़ती है।
यांत्रिक विधियाँ –

  •     दिसम्बर के अंतिम या जनवरी के प्रथम सप्ताह में पौधे के प्रभावित हिस्सों को कीट सहित तोड़कर नष्ट कर देवें।
  •     पीला चिपचिपा प्रपंच का उपयोग करें, इससे वयस्क माहु कीट पीले रंग की ओर आकर्षित होते है जिस पर लगे चिपचिपे पदार्थो से कीट चिपककर मर जाते है।

रासायनिक नियंत्रण -जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर (50 माहू प्रति पौधा या 30 प्रतिशत प्रकोपित पौधे) पर हो तब निम्नलिखित कीटनाशियों में से किसी एक का 10 – 15 दिन के अंतराल में दो से तीन बार छिड़काव करें –

  •  मिथाइल आक्सीडेमेटान 25 ई.सी. या डायमिथिएट 30ई.सी. दवा को 750 मि.ली. प्रति हेक्टेयर।
  •  थायोमिथाक्जम 25 डब्ल्यू. जी. का 0.5 मि.ली. प्रति लीटर
  •  इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. का 0.5 मि.ली. प्रति लीटर

जैविक विधियाँ –
परभक्षी कीट जैसे – कॉक्सीनेला, क्रायसोपरला या परोत्पजीवी डाअएरिशिप्रा रेपी या परजीवी कीट जैस सिरफिड फ्लाई/हॉपर फ्लाई का संरक्षण एवं संवर्धन करें।
आरा मक्खी, एथेलिया ल्यूगेन्स: इस कीट की मक्खी का वक्ष नारंगी, सिर व पैर काले तथा पंखों का रंग धुएं जैसा होता है। सुण्डियों का रंग गहरा हरा जिनके उपरी भाग पर काले धब्बों की तीन कतारें पायी जाती है। पूर्ण विकसित सुण्डियों की लम्बाई 1.5 – 2.0 सें.मी. तक होती है।
लक्षण –

  • सुण्डियॉं (ग्रब), पौधों की कोमल पत्तियों को खाकर उसमें छेद बनाती है जिससे पत्तियां सूखने लगती है और पौधे की वृद्धि रूक जाती है।
  • जालीदार पत्तियों और छोटे पौधों का सूखना इस कीट प्रकोप का प्रमुख लक्षण है।
  • बड़े पौधों में प्रकोप होने पर कलियों की संख्या कम हो जाती है।

प्रबंधन : शस्य विधियां –
ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई – ग्रीष्म ऋतु में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने से शंखी अवस्था प्राकृतिक शत्रुओं या सूर्य के प्रकाश में नष्ट हो जाती है।
निंदाई गुड़ाई – नियमित रूप से खेत की निंदाई गुड़ाई करते रहे इससेकीट प्रकोप में कमी आती है।

  •     फसल की सिंचाई करते रहने से सुण्डियों डूबकर नष्ट हो जाती है।
  •     सरसों की शीघ्र बोवाई करनी चाहिए।

यांत्रिक विधियाँ-

  • सुबह के समय सुण्डियों या इल्लियों को हाथ से पकड़कर नष्ट कर दें।

जैविक विधियाँ-

  • सुण्डयों के परोत्पजीवी सिंगुलेटरस्पे का संरक्षण एवं संवर्धन करें।

रसायनिक विधियां: अधिक आक्रमण की स्थिति में निम्न रसायनों का छिड़काव करें –

  •     क्विनालफास 25 ई.सी. को 1250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर
  •     मेलाथियान 50 ई.सी. को 1500 मि.ली प्रति हेक्टेयर

बिहार की रोमिल इल्ली, स्पालोसोमा आब्लिक्वा : इस कीट की तितली भूरे रंग की होती है जो पत्तियों की निचली सतह में हल्के पीले रंग के अण्डे देती है। पूर्ण विकसित सुण्डी का आकार 3.5 सेमी तक लम्बा होता है। इसका पूरा शरीर बालों से ढंका होता है।
लक्षण –
इस कीट की इल्ली अवस्था नुकसान करती है शुरू में यह पत्तियोंं के निचली सतह में इक_े होती हैं तथा बाद में सभी पौधों में फैलकर पत्तियों को खाकर छलनी कर देती है।
रोमिल इल्ली का समन्वित प्रबंधन

  • ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई-फसल कटाई के उपरांत खेत की गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी में रहने वाले शंखी को बाहर आने पर पक्षी उन्हें खा जाएं अथवा धूप से नष्ट हो जाए।
  • ऐसी पत्तियों जिन पर अण्डे समूह में होते है, को तोड़कर मिट्टी में दबाकर नष्ट कर दें। इसी तरह छोटी सुण्डियों को पत्तियों सहित तोड़कर मिट्टी में दबाकर अथवा केरोसीन में डुबोकर मार दें।
  • जैविक नियंत्रण, जैसे – मकड़ी, मेन्टिड, केंथाकोना बग, ब्रेकॉनस्पे आदि का संरक्षण एवं संवर्धन करें।
  • अधिक प्रकोप की दशा में निम्न रसायनों का उपयोग करें-
    क्विनॉलफास 25 ई.सी. को 1250 मि.ली/हेक्टेयर
    डायक्लोरोवास 76 ई.सी. को 650 मि.ली/हेक्टेयर
    चितकबरा (पेन्टेड) बग, बग्रेडा हिलेरिस :
    यह कीट काले रंग का होता है, जिस पर काले, पीलेे व नारंगी रंग के धब्बे होते है। इस कीट के शिशु हल्के पीले व लाल रंग के होते है। कीट की क्षति अवस्था शिशु एवं वयस्क दोनों है। दोनों पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर पौधे को कमजोर कर देते हंै जिससे फसल की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जिस स्थान पर कीट आक्रमण करता है वहाँ पर काली फफूंद का संक्रमण हो जाता है एवं प्रकोपित पौधे रोगी दिखाई देते हैं।

लक्षण –

  • पौधों के रस चूसने से उनकी वृद्धि रूक जाती है।
  • प्रकोपित पौधे में फूल एवं फलियाँ कम लगती हैं तथा बीजों में तेल की मात्रा भी कम हो जाती है।
    समन्वित प्रबंधन

शस्य विधियाँ

  •  गहरी जुताई करने से मिट्टी में दबे कीट के अण्डे नष्ट हो जाते हैं।
  •  शीघ्र बाुवाई करने से कीट का प्रकोप कम होता है।
  •  फसल में सिंचाई कर देने से प्रौढ़ शशु एवं अण्डे नष्ट हो जाते हैं।
  •  खलिहान पर कटी हुई फसल को अधिक दिनों तक नही छोडऩा चाहिए।
  •  खेत के आसपास उग रहे खरपतवार को नष्ट करें।

यांत्रिक विधियाँ

  • यह कीट पत्तियों एवं तनों के ऊपर एकत्रित रहते है जिसे थोड़े से झटकें देने से नीचे गिर आते है इन नीचे गिरे कीटों को केरोसीन में डुबोकर नष्ट कर देना चाहिये।

जैव विधियाँ –

  • जैविक नियंत्रण कारक जैसे अण्ड परोत्पजीवी,ऐकोफोरास्पे (टेक्निड फ्लाई) का संरक्षण एवं संवर्धन करें।

रासायनिक विधियां: अधिक प्रकोप की स्थिति में निम्नलिखित कीटनाशकों का छिड़काव करें –

  • डायक्लोरोवास 76 ई.सी. 625 मि.ली/हेक्टेयर।
  • डायमिथियेट 30ई.सी. 1000 मि.ली./हेक्टेयर।

पत्ती सुरंगक कीट, क्रोमेटोमीया हार्टीकोला :
इस कीट की मक्खियां दिखने में घरेलू मक्खियाँ जैसा होता है जो भूरे रंग तथा आकार में 15 – 2 मि.मी. तक होते है सुण्डियों का रंग पीला एवं लम्बाई 1 – 1.5 मि.मी. होता है। ये सुण्डियां पत्तियों के अंदर टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाकर हरे पदार्थ को खा जाती है जिससे पत्तियों के भोजन बनाने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
समन्वित प्रबंधन –

  •     ग्रसित पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर दें।
  •     खड़ी फसल पर मिथाइल आक्सीडेमेटान 25 ई.सी. की दवा को 750 मि.ली. मात्रा या डायमिथियेट 30 ई.सी. को 300 मि.ली. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
    हीरक पृष्ठ शलभ या डायमंड बैक मॉथ,प्लटेला जायलोस्टेला
    गोभीवर्गीय सब्जियों में हीरक पृष्ठ पंखी से ज्यादा नुकसान होता है । इस कीट की इल्लियां पत्तियों में बंदूक के समान छेद बनाती हैं । साथ ही इस कीट की छोटी – छोटी हरी इल्लियां पत्तों को खाकर, बढ़ेे हुए फूलों या बंदो के अन्दर घुसकर जाला बनाकर खाती रहती हैं। फूलगोभी से दुर्गन्ध (विष्ठा के कारण) आने लगती है ।

समन्वित प्रबंधन

  •     प्रारंभिक अवस्था में जाली वाली पत्तियां एवं इल्लियों को पकड़कर नष्ट कर देना चाहिये।
  •     फसल की समाप्ति पर पौधों के पुराने डण्ठल एवं पत्तियां आदि को नष्ट कर देना चाहिये ।
  •     गहरी जुताई करने से इल्लियां आदि नष्ट हो जाती है ।
  •     बंद गोभी की प्रत्येक 25 कतारों के बीच 2 कतार सरसों फसल को लगाने सेे, एफिड ( मैनी ) एवं हीरक पंखी कीट सरसों पर आकर्षित होते है और बंद गोभी में कम नुकसान होता है ।
  •    यदि संभव हो तो प्रकाश प्रपंच रात्रि में 7 से 9.30 बजे तक जलायें जिससे वयस्क कीट उसमें आकर्षित हो जाते हैं । प्रकाश प्रपंच के नीचे पानी में थोड़ा केरोसीन डालकर रख दें ताकि वयस्क कीट गिरकर अपने आप नष्ट हो जायें ।
  •     फूल या बंद की अवस्था में नीम कीटनाशक 5 मि. ली. या बी. टी. (जीवाणु कीटनाशक) 1.5 ग्रा. मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव हीरक पंखी के नियंत्रण के लिये करना चाहिये।
  •    कीट आक्रमण अधिक होने पर निम्न रसायनों का छिड़काव करें -डायक्लोरोवास को 1 मि.ली प्रति लीटर या इंडोक्साकार्ब 1 मि.ली प्रति लीटर या स्पानोसेड .5 मि.ली प्रति लीटर ।
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