यूं करें गन्ने से आय में बढ़ौत्री
यूं करें गन्ने से आय में बढ़ौत्री – भारत में कृषि मे लाभ की कमी के कारण कृषि में युवाओं की रूचि में लगातार कमी देखी जा रही है। ऐसी स्तिथि में किसानों को अपनी कृषि पद्धति में आधुनिक तकनीकी ज्ञान का प्रयोग कर आय में वृद्धि की जा सकती है। भारत एक कृषि आधारित देश है। जहां लगभग 13-14 प्रतिशत कुल घरेलू उत्पाद कृषि से प्राप्त होता है अत: कृषि में व्यवसाय की अपार संभावनायें हंै। अत: कृषकों को अपनी कृषि पद्धति को बाजार आधारित करना उचित योजना होगी। गन्ना एक पूरी तरह नकदी फसल है ये किन्तु इस फसल से अधिकतम आय प्राप्त करने के लिए प्रयास करना एक उचित कृषि योजना हो सकती है। यह अत्यंत आवश्यक है कि कृषकों को खाद्यान्न उत्पादन के साथ-साथ नकदी फसलों के प्रति भी अधिक प्रेरित किया जाए। गन्ना भारत वर्ष में उगाई जाने वाली एक प्रमुख नकदी/व्यावसायिक फसल है, जो कि भारतीय शक्कर उद्योग का आधार है किन्तु उचित लाभ प्राप्त करने में असमर्थ हैं अत: उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग कर कृषक गन्ना फसल से अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं।
खेत की तैयारी:
एक बार लगाने के बाद गन्ना खेत में 3-4 साल तक लगा रहता है। इस कारण खेती की खड़ी, आड़ी एवं गहरी जुताई करें। अंतिम जुताई के बाद पाटा चलकर खेत को समतल करें। रिज फरो की सहायता से गहरी नालियां बनायें क्योंकि जितनी गहरी नालियां बनेगी उतनी ही मिट्टी चढ़ाने हेतु मिलेगी जिससे गन्ने में अच्छी बढ़वार प्राप्त होगी और गिरने की समस्या भी कम होगी।
पौध ज्यामितीय:
किसी भी फसल के उन्नत एवं अधिक उत्पादन लेेने के लिए उसका पौध विन्यास एक महत्वपूर्ण कारक है। अत: गन्ना लगाते समय भी पौध ज्यामितीय का ध्यान रखना आवश्यक है। गन्ना मुख्यत: तीन प्रकार से लगाया जाता है-
- 3-4 आंख के टुकड़े नालियों के बीच 3 फुट दूरी पर टुकड़े सिरे-से-सिरा मिलाकर लगायें। इस विधि में बीज की मात्रा 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक लगती है।
- 2 आंख के टुकड़े नालियों के बीच 3 फुट दूरी एवं दो टुकड़ों के बीच 9 इंच दूरीकर लगाएं। इस विधि से 55-60 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा लगती है।
- एक आंख का टुकड़ा नालियों के बीच 3 फुट दूरी दो टुकड़ों के बीच 1 फुट की दूरी रखकर लगाएं इसमें बीज मात्रा 25-30 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर लगती है।
बीज का चुनाव:
उच्च गुणवत्ता युक्त बीज की उपलब्धता किसी भी स्थिति में फसल उत्पादन की प्रमुख लागत है अत: गन्ना बीज के चुनाव हेतु निम्न बातों का ध्यान रखें:
- उन्नत जाति के बीज का चयन करें।
- बीज की उम्र 8-9 माह हो तो सर्वोत्तम है।
- बीज रोग एवं कीट ग्रस्त नहीं हो।
- ताजा बीज ही उपयोग करें। बीज काटन एवं लगाने में कम से कम अंतर हो।
- बीज उपचारित करें अथवा टिश्यू कल्चर से उत्पादित बीज का ही चयन करें।
बोने का समय:
गन्ना बोने का सर्वोत्तम समय शरद कालीन गन्ने के लिए अक्टूबर-नबंवर एवं बसंत कालीन गन्ने की फसल के लिए फरवरी-मार्च तक है। इस समय साधारणत: दिन गर्म एवं रातें ठण्डी होती हैं। अर्थात् दिन व रात के औसत तापमान में 5-10 डिग्री सेल्सियस तक का अंतर होता है एवं तापमान का यह अंतर गन्ने के अंकुरण के समय अनुकूल होता है।
बीजोपचार:
- नम गर्म हवा संयंत्र द्वारा उपचार करावें।
- 1250 ग्राम कार्बेन्डाजिम, 1250 मिली मैंकोजेब 250 लीटर पानी में घोलकर तैयार टुकड़ों को 30 मिनिट डुबायें। अथवा
- 23 किलो चूने को 100 लीटर पानी में बुझा लेने के बाद, तैयार टुकड़ों को 30 मिनिट तक उपचारित करें।
बोने की विधि:
- सिंचाई के साथ-साथ मेड़ों के ऊपर पहले से बिछाये गये टुकड़ों को गीली मिट्टी में पैर से या हाथ से दबायें।
- सूखी बोनी: नालियों में गन्ने के टुकड़े बिछाकर फिर हर एक मेढ़ छोड़कर दूसरी को उल्टे बखर से समतल करें। यह मिट्टी बिछाये गन्ने को दबा देगी तथा सिंचाई में सुविधा होगी।
खरपतवार प्रबंधन:
गन्ना बोने के 15-20 दिन बाद एक गुड़ाई चाहिए। जिससे अंकुरण अच्छा होता है। इसके बाद फसल को आवश्यकतानुसार निंदाई-गुड़ाई कर एवं खरपवतार नाशियों का प्रयोग कर 90 दिन तक नींदा रहित रखें। अर्थात् बुवाई से 90 दिन तक गन्ना के खरपतवार हेतु क्रोनिक अवस्था है। अत: इस समय में खरपतवार की रोकथाम न करने से सर्वाधिक हानि होती है।
गन्ना की फसल में खरपतवार नियंत्रण हेतु निम्नानुसार शाकनाशियों का प्रयोग लाभदायक है:
- एट्रॉजीन 2 कि.ग्रा. अथवा ऑक्सीफ्लोरकेन 0.75 कि.ग्रा./हे. का छिड़काव बुवाई की तीसरे दिन तक 600 ली. पानी के घोल बनाकर फ्लैट फेन नोजल का प्रयोग करते हुए छिड़काव करें।
- अधिकतम गन्ना उपज के लिए एट्रॉजीन 1.0 कि.ग्रा./हे. बुवाई के तीसरे दिन के साथ 45 दिन बाद ग्लायफोसेट 1.0 ली./ हे. हुड स्प्रेयर के साथ नियंत्रित छिड़काव तथा 90 दिन की फसल अवस्था पर निदाईं करवायें।
- यदि अंकुरण पूर्व छिड़काव नहीं कर पाते हैं तब ग्रेमेक्जोन 1.0 ली. 2,4-डी सोडियम साल्ट 2.5 कि.ग्रा./हे. को 600 ली. पानी में घोलकर बुवाई के 21 दिन की अवस्था में छिड़काव करें।
- यदि परजीवी खरपतवार स्ट्राइगा की समस्या है तब 2,4 डी सोडियम सॉल्ट 1.0 कि.ग्रा./हे. 500 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें अथवा 20 प्रतिशत यूरिया का नियंत्रित छिड़काव कर भी स्ट्राइगा को नियंत्रित किया जा सकता है।
- मौथा आदि के लिए ग्लायफोसेट 2.0 कि.ग्रा./हे. के साथ 2: अमोनियम सल्फेट का छिड़काव बुुवाई के 21 दि पूर्व करें तथा बुवाई के 30 दिन बाद पुन: स्पेशल हुड से 2.0 कि.ग्रा./हे. एवं 2 प्रतिशत अमोनियम सल्फेट का घोल का नियंत्रित छिड़काव करने से मौथा पर अच्छा नियंत्रण प्राप्त होता है।
अंतरवर्तीय खेती के साथ गन्ना फसल के खरपतवार नियंत्रण:
अंतरवर्तीय फसल विशेषकर सोयाबीन, उड़द अथवा मूंगफली के साथ गन्ना फसल होने पर थायबेनकार्ब 1.25 कि.ग्रा./हे. की दर में अंकुरण पूर्व उपयोग करना लाभदायक होता है।
मिट्टी चढ़ाना एवं संघाई
गन्ना फसल के लिए मिट्टी चढ़ाना एक महत्वपूर्ण सस्य वैज्ञानिक क्रिया है। क्योंकि गन्ना की ऊंचाई बढने पर गन्ना गिरना एक प्रमुख समस्या बन जाती है। जिससे उत्पादन में बहुत हानि होती है। अत: वर्षा पूर्व गन्ना फसल में मिट्टी चढ़ाने का कार्य किया जाना आवश्यक है। इस प्रकार मिट्टी चढ़ाने में गन्ना फसल की जड़ों में मजबूत पकड़ प्राप्त होती है। कल्लों के निकलने पर भी रोक लगती है।गन्ना तेज हवाओ से न गिरे इसके लिए कतारों के गन्ने की झुंडी को गन्ने की सूखी पत्तियों से बांधना चाहिए । यह कार्य अगस्त अंत में या सितम्बर माह में करें। बंधाई का कार्य इस प्रकार करें कि हरी पत्तियों का समूह एक जगह एकत्र न हो अन्यथा प्रकाश संलेषण क्रिया प्रभावित होगी।
सिंचाई:
गन्ना चूंकि एक वर्ष तक खेत में रहने वाली फसल है अत: गन्ना में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है तथा गन्ना फसल के सफल उत्पादन हेतु लगभग 220-250 से.मी. सिंचाई की आवश्यकता होती है। गन्ना फसल से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने हेतु मौसम के अनुसार सर्दी के मौसम में 15-20 दिन के उपरांत तथा गर्मी के मौसम में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। इस प्रकार संपूर्ण फसल काल में लगभग 10-12 दिन सिंचाई की आवश्यकता होती है।
कम पानी में अधिक उत्पादन:
- गन्ने की कतारों में सूखी पत्तियों की पलवार बिछायें।
- जब खेत में पानी की कमी संभावित हो 2.5 प्रतिशत एमओपी का घोल 2 प्रतिशत यूरिया मिलाकर 15-20 दिन के अंतर से छिड़काव करें।
- उन्नत सिंचाई तकनीकें जैसे टपक सिंचाई विधि एवं अधो सतही सिंचन का प्रयोग कर पानी बचायें।
- कतार छोड़ सिंचाई पद्धति अपनायें।
- जिप्सम एवं गोबर की खाद का प्रयोग अवश्य करें।
मध्यप्रदेश के लिए अनुशंसित उन्नत जातियां
प्रजाति | पकने की अवधि | वर्ष | गन्ना उपज (टन/हे.) | सुक्रोज की मात्रा त्न | विशेष लक्षण |
सीओ 09004 | शीघ्र | 2017 | 109.85 | 18.94 | लाल सडऩ एवं स्मट |
(अम्रता) | रोग के लिए प्रतिरोधी | ||||
सीओ 06027 | मध्यम | 2013 | 110.56 | 19.18 | लाल सडऩ रोग के प्रति प्रतिरोधी |
सीओ 05103 | शीघ्र | 2014 | 105.5 | 17.21 | लाल सडऩ, स्मट एवं विल्ट के प्रति मध्यम प्रतिरोधी एवं वूली एफिड के प्रति प्रतिरोधी किस्म |
सीओ 05104 | मध्यम-देरी | 2014 | 104.8 | 17.52 | जल भराव, सूखा, लवणीयता एवं वूली एफिड के प्रति सहनशील |
सीओ 0403 | शीघ्र | 2012 | 101.6 | 18.16 | सूखा सहनशील, पेडी की |
(समृृद्धि) | फसल उत्तम, गुड़ बनाने के लिए अच्छी किस्म | ||||
सीओ 0218 | मध्यम-देरी | 2010 | 103.77 | 20.79 | लाल सडऩ के प्रति मध्यम |
(श्रेयस) | प्रतिरोधी एवं स्मर के प्रति प्रतिरोधी | ||||
सीओ 2001.13 | मध्यम-देरी | 2009 | 108.6 | 19.03 | लाल सडऩ के प्रति प्रतिरोधी |
(सुलभ) | सूखा सहनशील, पेडीकी फसल उत्तम, गुड़ बनाने के लिए अच्छी किस्म |