Crop Cultivation (फसल की खेती)

लघु धान्य फसलों की खेती

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  • डॉ. आशीष तिवारी,
    गन्ना अनुसंधान केन्द्र, बोहानी, नरसिंहपुर
  • अवधेश कुमार पटेल
    जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय,
    कृषि विज्ञान केन्द्र, डिण्डौरी

7 जुलाई 2022, लघु धान्य फसलों की खेती लघु धान्य फसलों की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। सांवा, काकुन एवं रागी को मक्का के साथ मिश्रित फसल के रूप में लगाते हैं। रोगी को कोदो के साथ भी मिश्रित फसल के रूप में लेते हंै। ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान्न फसलें है जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रारंभ में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान्न फसलें इस समय पर नहीं पक पाती और बाजार में खाद्यान्नों का मूल्य बढ़ जाने से गरीब उन्हें नहीं खरीद पाते है। अत: समय पर 60-80 दिनों में पकने वाली सांवा, कुटकी एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यान्न के रूप प्राप्त होती है।

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भूमि की तैयारी- ये फसलें प्राय: हर प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। जिस भूमि में अन्य कोई धान्य फसल उगाना सम्भव नहीं होता वहां भी ये फसलें सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। उतार-चढ़ाव वाली, कम जल धारण क्षमता वाली, उथली सतह वाली आदि कमजोर किस्म में ये फसलें अधिकर उगाई जा रही है। हल्की भूमि में जिसमें पानी का निकास अच्छा हो इनकी खेती के उपयुक्त होती है। बहुत जल निकास होने पर लघु धान्य फसलें प्राय: सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है।

बीज का चुनाव एवं बीज की मात्रा

भूमि की किस्म के अनुसार उन्नत किस्म के बीज का चुनाव करें। हल्की पथरीली व कम उपजाऊ भूमि में जल्दी पकने वाली जातियों का तथा मध्यम गहरी व दोमट भूमि में एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में देर से पकने वाली जातियों की बोनी करें। लघु धान्य फसलों की कतारों में बुवाई के लिये 8-10 किलोग्राम बीज तथा छिटकवां बोनी के लिये 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हे. पर्याप्त होता हेै। लघु धान्य फसलों को अधिकतर छिटकवंा विधि से बोया जाता है।

बोने का समय, बीजोपचार एवं बोने का तरीका

वर्षा आरंभ होने के तुरंत बाद लघु धान्य फसलों की बोनी कर दें। शीघ्र बोनी करने से उपज अच्छी प्राप्त होती है एवं रोग, कीट का प्रभाव कम होता है। कोदों में सूखी बोनी मानसून आने के दस दिन पूर्व करने पर उपज में अन्य विधियों से अधिक उपज प्राप्त होती है। जुलाई के अंत में बोनी करने से तना मक्खी कीट का प्रकोप बढ़ता है। बोनी से पूर्व बीज को मेन्कोजेब या थायरम दवा 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। ऐसा करने से बीज जनित रोगों से फसल की सुरक्षा होती है। कतारों में बोनी करने कतार के कतार की दूरी 20-25 सेमी तथा पौधों से पौधों की दूरी 7 सेमी उपयुक्त पाई गई है। इसकी बोनी 2-3 सेमी गहराई पर की जाए। कोदों में 6-8 लाख एवं कुटकी में 8-9 लाख एवं कुटकी में 8-9 लाख पौधे प्रति हे. हो।

खाद एवं उर्वरक का उपयोग

कुटकी में 20 नत्रजन, 20 स्फुर प्रति हे. तथा कोदों एवं रागी के लिए 40 किलो नत्रजन व 20 किलो स्फुर प्रति हे. के उपयोग करने से वृद्धि होती है। नत्रजन की आधी मात्रा व स्फुर की पूरी मात्रा बुआई के समय एवं नत्रजन के शेष आधी मात्रा बुआई के 3 से 5 सप्ताह के अन्दर निंदाई के बाद दें।

निंदाई-गुड़ाई

बुआई के 20-30 दिन के अन्दर एक बार हाथ से निंदाई करें। तथा जहां पौधे न ऊगे हो वहां पर अधिक घने पौधों को ऊखाड़ कर पौधों की संख्या उपयुक्त करें। यह कार्य पानी गिरते समय सर्वोत्तम होता है। कोदों का भण्डारण कई वर्षो तक किया जा सकता है, क्योंकि इनके दानों में कीटों का प्रकोप नहीं होता है।

फसल सुरक्षा- (कीट)

तना मक्खी- कोदो-कुटकी में इस कीट की छोटे आकार की मटमेली सफेद मेगट फसल की पौध अवस्था पर तने के अन्दर के तंतुओं को खाते है। जिससे कारण डेड हार्ट बन जाता है, और इसमें बालें नहीं आती।

रोकथाम- इमिडाक्लोप्रिड 125 मिली या डायमिथोयेट 30 ईसी 750 मिली दवा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. की दर छिडक़ाव करें और छिडक़ाव के पूर्व डेडहार्ट खीचकर इकटठा कर जमीन में गाड़ दें।

कम्बल कीट (हेयर केटर पिलर)- काले रंग की रोयेदार इल्ली है जो पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाती है।

रोकथाम- खेत में पक्षियों के बैठने हेतु ञ्ज आकार की खूटियां लगभग 3 फिट ऊंचाई की 25 खूटी प्रति हे. की दर से लगायें। डायमिथोयेट 30 ईसी 1200 मिली दवा 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. की दर छिडक़ें।

सांवा, रागी बालियों की सूंडी- भूरे रंग की रोएदार इल्लियां बालियों के दानों को खाती है।

रोकथाम- डायमिथोयेट 30 ईसी 1200 मिली दवा 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. की दर छिडक़ाव करें ।

कुटकी की गाल मिज– इस कीट मेगट इल्ली, भरते हुए दानों को नुकसान पहुंचाती है जिससे दाना खराब हो जाता है।

रोकथाम- बालियों की अवस्था पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी 1000 मिली 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हे. छिडकें।

रोग

कोदों कुटकी एवं रागी कंडवा रोग- बालियां काले रंग के पुन्ज में बदल जाती है।
रोकथाम- वीटावैक्स 2 ग्रा./किलो ग्राम बीज दर से उपचारित करें। रोगग्रस्त बाली जला दें।

कोदो का धारीदार रोग – पत्तियों पर पीली धारियां शिराओं के समानान्तर बनती है। अधिक प्रकोप होने पर पूरी पत्ती भूरी होकर सूखकर गिर जाती है।
रोकथाम- बीजोपचार करें तथा लक्षण दिखते ही डायथेन जेड- 78 (0.35 प्रतिशत) 15 दिन के अन्तर में छिडक़ेंं।

कटाई गहाई एवं भण्डारण

फसल पकने पर कोदों-कुटकी को जमीन की सतह के ऊपर कटाई करें खलिहान सुखाकर बैलों से गहाई करें उड़ावनी करके दाना अलग करें तथा दानों को धूप में सुखाकर भण्डारण करें।

भण्डारण करते समय सावधानियां –

  • भण्डार गृह के पास पानी जमा नहीं हो। भण्डार गृह की फर्श जमीन से कम से कम दो फिट ऊंची हो।
  • कोठी, बण्डा आदि में दरार हो तो उन्हें बंद कर दें। इनकी दरार में कीड़े हों तो उन्हें चूना से पुताई कर नष्ट करें।
उन्नत किस्में

कोदों
जवाहर कोदों 48 (डिण्डौैरी-48), जवाहर कोदों 439, जवाहर कोदों 41, जवाहर कोदों 62, जवाहर कोदों 76, जीपीयूके 3
कुटकी
जवाहर कुटकी 1 (डिण्डौरी-1), जवाहर कुटकी 8, सी.ओ. 2, पी.आर.सी. 3
रागी
एच.आर. 374, आरएयू 8, जेएनआर 852, जेएनआर 1008

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