आत्मघाती विकास और पर्यावरण
विकास की बाजार केन्द्रित सोच ने प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित दोहन को बढ़ावा दिया है। आज भले ही देशवासियों की आमदनी बढ़ती दिख रही हो, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट चिंता बढ़ाने वाला है। वैसे विकास की संविधान में
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