Animal Husbandry (पशुपालन)

कब करायें पशुओं को गर्भित

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  • डॉ. राम निवास ढाका
    विषय विशेषज्ञ (पशुपालन),
    डॉ. चारू शर्मा, विषय विशेषज्ञ
    (गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा)
  • डॉ. के. जी. व्यास विषय विशेषज्ञ (शस्य विज्ञान),
    कृषि विज्ञान केन्द्र (स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर) पोकरण (जैसलमेर)

    email- ramniwasbhu@gmail.com

5 जुलाई  2021,  कब करायें पशुओं को गर्भित – पशुपालन ग्रामीण विकास का आधार एवं रोजगार का प्रमुख साधन है। पशु से प्रति वर्ष बचे का उत्पादन उसकी जनन क्षमता एवं आमदनी का स्त्रोत होता है। पशुओं का गलत समय पर गर्भित कराना ही उनके बांझपन का कारण बन जाता है । हालाकि पशु के बाँझपन के बहुत सारे कारण होते है परन्तु उचित समय पर पर गायों को गर्भित करवा करके हम इनके बाँझपन को काफी हद तक रोकने के साथ साथ दूध उत्पादन को सतत बनाए रख सकते हैं।

बछिया

पशुओं का शारीरिक विकास उनके आहार और उम्र पर निर्भर होता है। यदि बछिया पर शुरू से ही ध्यान नहीं दिया जाता है तो समय के साथ उसके जनन अंगों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है जिसका कुप्रभाव उनको बांझ तक बना देता है। इसलिए शुरू से ही हमें आहार, चिकित्सा एवं टीका पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि पशु उचित उम्र तक गर्भित हो जावे। अन्यथा उम्र गुजर जाने बाद यदि गर्भित कराया जाता है तो इसके डिंबकोश में खराबी आने की वजह से उनमे बाँझपन आने का डर रहता है। संकर नस्ल की बछिया जल्दी एवं देसी नस्ल की बछिया देर से गर्म होने के लक्षण दिखाती है। उत्तम नस्ल एवं बेहतरीन प्रबंधन मे पली देशी नस्ल की बछिया ढाई वर्ष मे एवं संकर नस्ल की बछिया डेढ़ वर्ष मे गर्भ धारण करने योग्य हो जाती है, लेकिन बिना उचित प्रबंधन के ग्रामीण परिवेश मे यह समय आने मे पाच से छ वष लग जाते है। अत: भारतवर्ष में दूध के क्षेत्र में स्वेत क्रान्ति लाने में संकर नस्लों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

पशु में गर्मी के लक्षण

दुधारू पशुओं में गर्भधारण की सफलता के लिए पशु पालक को मादा पशु में पाए जाने वाले मद चक्र का जानना बहुत आवश्यक है। गाय में ब्याने के लगभग 45 दिनों के बाद यह चक्र शुरू हो जाता है। एक सफल प्रजनन कार्यक्रम के लिए गाय ब्याने के 60 से 75 दिनों तक की अवधि मे गर्भित हो जानी चाहिए। गाय व भेंसों में एक मदकाल (गर्मी की अवधि) लगभग 20 से 36 घंटे का होता है। यदि इस मदकाल अवधि मे जानवर गर्भित नहीं हो पाता है तो यह 21 दिनों पश्चात फिर आता है। पशु का बैचन होना, चारा कम खाना, बार बार रंभाना, बार बार पेशाब करना और पूछ उठाना, दूध कम हो जाना, दूसरे पशुओं पर चढऩा तथा अपने ऊपर चढऩे देना पेशाब के रास्ते अंडे जैसी सफेद लार आना, भग द्वार एवं भगनासा का गुलाबी हो जाना।

पशु को गर्भधान करने का सही समय

पशु में मदकाल प्रारम्भ होने के 12 से 18 घंटे बाद अर्थात् मदकाल के दूसरे अर्ध भाग में गर्भधान करना सबसे अच्छा रहता है। मोटे तौर पर जो पशु सुबह गर्मी में दिखाई देता है, उसमें दोपहर के बाद तथा जो शाम को मद में आता है तो उसमें अगले दिन सुबह गर्भधान कराना चाहिए। यह समय टीका लगाने का उपयुक्त समय होता है। समान्यत: जब पशु दूसरे पशु को अपने ऊपर चढऩे पर चुपचाप खड़ा रहे तो इसे स्टेंडिंग हिट कहते हैं एवं पशु की इस अवस्था को गर्भधारण हेतु सबसे उपयुक्त अवस्था कहा जाता है। बहुत से पशु मद काल में रम्भाते नहीं हैं लेकिन गर्मी के अन्य लक्षणों के आधार पर उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। कृत्रिम गर्भाधान के बाद यदि पशु फिर 20-22 दिन बाद गर्मी में आये तो उसे फिर से गर्भित कराना चाहिए, क्योंकि अधिकतर पशु एक बार में गर्भधारण नहीं कर पाते हंै।

मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव

वैसे तो साल भर पशु गर्मी में आते रहते हैं लेकिन पशुओं के मद चक्र पर ऋतुओं का प्रभाव भी देखने में आता है। एक विश्लेषण के अनुसार माह जून में सबसे अधिक गाये गर्मी में देखी गयी जबकि सबसे कम गायें माह अक्टूबर में मद में पाई गयीं। भैंसों में ऋतुओं का प्रभाव बहुत अधिक पाया जाता है। माह मार्च से अगस्त तक छ: माह की अवधि जिसमे भैंसें बहुत कम मद में रिकॉर्ड की गयीं जबकि शेष छ: माह सितम्बर से फरवरी की अवधि में सबसे अधिक भैंसें गर्मी में पायी गयीं। पशु प्रबंधन में सुधार करके तथा पशुपालन में आधुनिक वैज्ञानिक विधि को अपना कर पशुओं के प्रजनन पर ऋतुओं के कुप्रभाव को जिससे पशु पालकों को बहुत हानि होती है, काफी हद तक कम किया जा सकता है।

पशु का गर्भधारण उपरांत रखें ध्यान

यदि पशु ने गर्भधारण कर लिया है तो किसान उसे ठीक प्रकार से संतुलित आहार देकर ब्याने तक सुरक्षित रख सकता है और यदि बार-बार गर्भित कराने के बाद भी गर्भधारण नहीं किया है तो उसकी सही समय पर जाँच कराकर के इलाज कराना चाहिए। कुछ पशुओं में अण्डाशय से अंडाणु का विसर्जन देर से होता है ऐसे पशुओं को गर्मी की अवस्था में 12 घंटे में दो बार गर्भित कराना चाहिए। स्वस्थ पशु एवं ऐसे पशु जिसमे गर्भधारण नहीं हुआ है, में यदि गर्मी के लक्षण निश्चित समय पर नहीं दिखाई पड़े तो ऐसे पशुओं की जाँच करानी चाहिए। कभी-कभी गर्मी के समय निकलने वाला स्त्राव पारदर्शी न हो कर पीला या दही की तरह सफेद होता है ऐसा बच्चे दानी की बीमारी के कारण होता है ऐसे पशु को गर्भित नहीं कराना चाहिए, बल्कि उसका इलाज कराना चाहिए।

गर्भाधान के बाद 3 महीने तक पशु यदि गर्मी में नहीं आता तो उसे निश्चित रूप से गर्भित नहीं मान लेना चाहिए, बल्कि गर्भावस्था की जाँच के बाद ही निश्चित होना चाहिए।

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