सशक्त हो पौध संरक्षण रसायनों का परीक्षण ढांचा
पौध संरक्षण रसायनों का कृषि उत्पादन में अपना अलग योगदान रहता है। पिछले कुछ दशकों से इनके उपयोग में गति आई है। सामान्य किसान अभी भी पौध संरक्षण रसायनों के स्थानीय विक्रेताओं से इस विषय पर सलाह लेता है और उनकी ही अनुशंसा पर इन रसायनों का उपयोग करता है। अधिकांश कृषि तथा कृषि रसायनों के लिये प्रशिक्षित नहीं रहते। उनको सर्वाधिक मुनाफा अमानक कृषि रसायनों से मिलता है इसलिये अमानक कृषि रसायन का व्यापार फल-फूल रहा है। इनके नियंत्रण की जिम्मेदारी कृषि विभाग के अधिकारियों की रहती है। परंतु अमानक कृषि रसायनों को रोकने में उनकी विभिन्न कारणों से उदासीनता रहती है। राज्य सरकारों की भी अमानक अपनी सीमा तथा बाध्यतायें हैं। पौध संरक्षण रसायनों का परीक्षण भी एक प्रमुख समस्या हैं।
भारत में अभी 268 पौध संरक्षण रसायन पंजीकृत है। इनके अतिरिक्त 45 कीटनाशक रसायनों, 45 फफूंदनाशक रसायनों, 24 नींदानाशक रसायनों तथा 2 कीटनाशक व फफूंदनाशक रसायनों के मिश्रण भी पंजीकृत हैं, जो बाजार में किसानों को उपयोग करने के लिये उपलब्ध है। कभी-कभी स्थानीय विक्रेता भी अपने स्तर पर इन रसायनों के मिश्रण अपने अनुमान या अनुभव के आधार पर अधिक मुनाफे के लिये किसानों को उपलब्ध करा देते हैं। जिसका अन्तिम परिणाम किसान को ही भोगना पड़ता है। इन सबको रोकने के लिये देश में कृषि रसायनों के परीक्षण के ढांचे को मजबूत बनाना होगा। वर्तमान में पौध संरक्षण रसायनों के परीक्षण के लिये देश के विभिन्न प्रांतों में मात्र 49 प्रयोगशालायें हैं। जिनकी वर्ष भर में 51440 सेम्पल जांच करने की क्षमता है। इनके अतिरिक्त भारत सरकार की दो क्षेत्रीय प्रयोगशाला कानपुर व चंडीगढ़ में व एक केन्द्रीय प्रयोगशाला फरीदाबाद में है जिनकी कुल क्षमता वर्ष भर में 3600 सेम्पल जांच करने की है। मध्यप्रदेश में इकलौती प्रयोगशाला जबलपुर में स्थित है जिसकी क्षमता साल भर में मात्र 1000 सेम्पल जांच करने की है। राजस्थान में भी मात्र दो प्रयोगशालायें जयपुर व बीकानेर में हंै जो मिलकर साल भर में 1600 नमूने ही जांच सकती हैं।
अमानक पौध संरक्षण रसायन किसानों तक नहीं पहुंचे इसके लिये कारगर कदम उठाने का समय आ गया है। इनकी जांच के लिये वर्तमान पौध संरक्षण रसायनों की परीक्षण ढांचे को सशक्त बनाना होगा तथा नई परीक्षण प्रयोगशाला खोलनी होगी जिनमें सभी 268 पौध संरक्षण रसायनों का कम से कम समय में परीक्षण की सुविधा हो। ताकि किसान को इन अमानक रसायनों से होने वाली हानि से बचाया जा सके।