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मुर्गियों में बिछावन का महत्व

ब्रायलर मुर्गी के बच्चों को पिंजरे के बजाय फर्श पर बिछावन डालकर पालते हैं। एक बच्चे के लिए औसतन 1 वर्ग फुट जगह की जरूरत होती है। बिछावन की गहराई 2 से 5 इंच तक या इससे भी ज्यादा हो सकती है। यह मौसम के तापमान व आद्र्रता पर निर्भर करती है। एक अच्छे बिछावन की पहचान उसकी नमी सोखने की क्षमता पर निर्भर करती है। बिछावन सामग्री फर्श के सतह क्षेत्र को बढ़ाती है और उसको जल्दी सूखने में मदद करती है। बिछावन पक्षी को और उसकी मलिच खाद के सम्पर्क को कम करता है और साथ ही उन्हें अमोनिया गैस के हानिकारक प्रभावों से बचाता है। बिछावन सीलन व ठंड से भी बचाव करता है। बिछावन का चुनाव उसकी नमी सोखने की क्षमता, बाजार मूल्य, स्थानीय उपलब्धता

मुर्गीपालन न केवल एक स्थापित रोजगार के रूप में सामने आया है बल्कि कई लोगों ने इसे व्यापक स्तर पर अपनाकर मुनाफा भी कमाया है और साथ ही इसे मुख्य रोजगार के रूप में भी अपनाया है। देशभर में जो लोग खेती व अन्य व्यवसायों से जुड़े हैं, वे सभी मुर्गीपालन को व्यापारिक मुनाफे की नजर से देख रहे हैं। ऐसी स्थिति में मुर्गीपालन व इसके प्रबंधन से संबंधित विषयों में गहन ज्ञान होना बहुत जरूरी है। मुर्गीपालक को मुर्गियों की नस्ल, उनके लिए पोषक आहार, टीकाकरण और अन्य प्रबंधन संबंधी विषयों के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है। ब्रायलर मुर्गी का पालन मांस उत्पादन के लिए किया जाता है।

और उसके विषम प्रभाव को लेकर किया जाता है। बिछावन सामग्री पक्षियों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होनी चाहिए। चावल का छिलका और लकड़ी का बुरादा आजकल प्रचलन में है, पर इनका बाजार मूल्य अधिक होने के कारण अन्य वैकल्पिक सामग्रियों को बिछावन के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। मुर्गियों के आहार में प्रयोग होने वाली सामग्री में मक्की और सोयाबीन प्रमुख है जिनका बाजार मूल्य तेजी से बढ़ रहा है। इसके कारण ब्रायलर उत्पादन का खर्चा बढ़ जाता है। अत: हमे विकल्प खोजने की जरूरत है। इसलिए हम चावल के छिलके और बुरादे की बजाय दूसरी स्थानीय सामग्रियों का इस्तेमाल कर सकते है जो इन्हीं की तरह नमी सोखने वाले हो और सस्ती भी हो। साथ ही साथ पक्षियों के लिए हानिकारक भी नहीं होनी चाहिए। भारत एक कृषि प्रधान देश है। चावल व गेहूं उत्तर भारत की प्रमुख फसलें हैं। फसल कटाई के बाद किसान इनके बचे हुए हिस्सों को खेतों में जला देते हैं जो कि प्रदूषण का कारण बनते है। इसे तुड़ी में बदलकर हम इसे बिछावन सामग्री के रूप में इस्तेमाल कर सकते है। इसके अलावा स्थानीय उपलब्ध वस्तुओं को भी बिछावन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे की सूखे पत्ते, मक्की के पिसे हुए बुटटे, मक्की व ज्वार की तूड़ी, रेत इत्यादि। किसी भी बिछावन सामग्री को इस्तेमाल करने से पहले यह सुनिश्चित कर ले की वह पक्षियों के लिए हानिकारक न हो। ज्यादातर स्थानीय सामग्रियों में धूल जमी होती है जो ब्रायलर पक्षियों में सांस संबंधी बीमारी पैदा कर सकती है।
बिछावन की क्षमता को कम करने के कारण
1. शेड में से हवा पास नहोना।
2. पीने के पानी के प्रबंधन में त्रुटियाँ।
3. उच्च लवणीय एवं प्रोटीन आहार।
4. बिछावन की अपर्याप्त गहराई।
5. कम जगह में ज्यादा ब्रायलर पक्षी रखना।
6. बिछावन की खराब गुणवत्ता।
7. शेड में अत्यधिक नमी।
8. पक्षियों में एंर्टराइटिस की बीमारी आना
बिछावन प्रबंधन
यदि बिछावन में नमी की मात्रा बढ़ जाती है तो किसान बिछावन सामग्री की मात्रा बढ़ा सकते है। शेड से नमी को कम करने के लिए हवा का पास होना अति आवश्यक है, इसलिए इस और अवश्य ध्यान देना चाहिए। बिछावन सामग्री में नमी की मात्रा 30 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। नमी की मात्रा ज्यादा होने पर कोक्सीडीयोसिस नामक बीमारी के हालात बन जाते है। यह एक बहुत ही तेजी से फैलने वाली बीमारी है। इसकी रोकथाम के लिए बिछावन में नमी का नियंत्रण बहुत जरूरी है। बिछावन में नमी बढऩे पर अमोनिया गैस भी पैदा होती है। मुर्गियों के शेड में अमोनिया गैस को आसानी से पहचाना जा सकता है। अमोनिया की गंध बहुत तीखी होती है। साथ ही यह आंखों व त्वचा पर जलन भी पैदा करती है। गंध की मात्रा बढऩे पर यह देखे की शेड से हवा पर्याप्त मात्रा में पास हो रही है अथवा नहीं। शेड में पंखे का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। पानी के बिछावन के ऊपर गिरने से भी नमी की मात्रा और बढ़ जाती है। अत: पानी का प्रबंधन उचित होना चाहिए।

आहार के रूप में बिछावन सामग्री का उपयोग
प्रयोग किये जा चुके बिछावन को हम भण्डारण कर, उसमें पैदा होने वाले बैक्टीरिया को खत्म कर सकते हैं और इसका उपचार कर इसको जुगाली करने वाले पशुओं के लिए आहार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। बिछावन सामग्री को आहार के रूप में प्रयोग करने के लिए उसमें प्रोटीन की मात्रा 18 प्रतिषत से ज्यादा होनी चाहिए। कम प्रोटीन की अवस्था में हम इसे खाद के रूप में प्रयोग कर सकते है। बिछावन को उपचार करने के लिए हम दही को कल्चर के रूप में प्रयोग कर सकते है और मोलासिस को ऊर्जा स्त्रोत के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। फिर इस सामग्री को पॉलीथिन से ढक कर रख देते हैं ताकि इससे हवा पास न हो और तीन – चार हफ्ते बाद इसे खोलकर आहार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। खाद के रूप में बिछावन का उपयोग बिछावन सामग्री को खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। बिछावन सामग्री को थोड़े समय के लिए भण्डारण करते हैं ताकि हानिकारक बैक्टीरिया मर जाए और इसकी गुणवत्ता बढ़ सके। बिछावन सामग्री को खेत में प्रयोग करने से पहले कृषि वैज्ञानिक से इसका परीक्षण जरूर करवायें। इससे हमें इसकी नाईट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम की मात्रा का पता लग जाता है। इसके बाद आवश्यकतानुसार कृत्रिम खाद मिला कर इसे खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • डॉॅं. रूपेश जैन
  • डॉ. पी.पी. सिंह
    email : rupesh_vet@rediffmail.com
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