स्थानीय किस्मों के संरक्षण में उनके योगदान को स्वीकार कर पुरस्कृत करें
पौधों की किस्म संरक्षण में कठिनाइयाँ एवं किस्म लक्षण विकास पर वेबिनार
इंदौर। पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 (पी.पी.वी. एवं एफ.आर. अधिनियम) के तहत दिए गए अधिकारों की व्याख्या करने, प्रजनकों के अधिकारों को लागू करने के सकारात्मक पहलुओं पर जागरूकता फैलाने, लाभ साझा करने,लाइसेंस प्रावधान, मुआवजे, प्रक्रियात्मक विवरण तथा इस अधिनियम के कार्यान्वयन के तरीकों पर भा.कृ.अनु.प. भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा गत दिनों एक ऑनलाइन वेबिनार आयोजित किया गया।
डॉ आर.आर. हंचिनाल, पूर्व अध्यक्ष, पी.पी.वी. एवं एफ.आर प्राधिकरण तथा पूर्व कुलपति, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़ ने पौधों की किस्म संरक्षण में कठिनाइयाँ एवं किस्म लक्षण विकास पर प्रभाव विषय पर दिए अपने व्याख्यान में किसानों के अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि स्थानीय किस्मों के संरक्षण में उनके योगदान को स्वीकार करके उन्हें पुरस्कृत करते हैं। किसानों को इस अधिनियम के तहत किसी भी कार्यवाही के लिए किसी भी शुल्क की आवश्यकता नहीं है। पौधों की किस्मों का संरक्षण एवं किसान अधिकार प्राधिकरण किसानों को पादप जीनोम उद्धारकर्ता; किसान पुरस्कार और किसान पहचान प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत किसान गैर-ब्रांडेड तरीके से एक पंजीकृत किस्म के बीज सहित अपनी कृषि उपज को बचाने, उपयोग करने, बोने, फिर से बोने या बेचने के हकदार हैं। उन्होंने कहा कि खाद्यान्न फसलों के लिए संरक्षण की अवधि 15 वर्ष है, तथा पेड़ों के लिए 18 वर्ष है। पंजीकृत किस्म की दी गई शर्तों के तहत अपेक्षित प्रदर्शन में विफल होने पर किसान मुआवजे का दावा कर सकते हैं।
इसके पूर्व इंदौर संस्थान की निदेशक डॉ. नीता खांडेकर ने डॉ. हंचिनाल का स्वागत कर पी.पी.वी एवं एफ.आर. अधिनियम के विभिन्न पहलुओं की खोज में वैज्ञानिकों और किसानों की रुचि के बारे में बताया। इस वार्ता में वर्चुअल व फिजिकल मोड के माध्यम से विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय एवं भा.कृ.अनु.प. संस्थानों के 100 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस वेबिनार का उद्देश्य बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा के लिए पी.पी.वी. एवं एफ.आर. अधिनियम, 2001 के तहत किसी भी नई या मौजूदा पौधों की किस्मों को पंजीकृत करने के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिकों एवं किसानों को प्रोत्साहित करना है। अंत में, प्रश्न-उत्तर सत्र में वैज्ञानिक बातचीत आयोजित की गई। वेबिनार का आयोजन डॉ. गिरिराज कुमावत ने किया और धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. संजय गुप्ता ने दिया।