राज्य कृषि समाचार (State News)

विश्व के सूखाग्रस्त इलाकों में 2.5 अरब लोगों की आय 2.5 डालर प्रतिदिन से कम – डॉ. रतन लाल

29 सितंबर 2020, उदयपुर। विश्व के सूखाग्रस्त इलाकों में 2.5 अरब लोगों की आय 2.5 डालर प्रतिदिन से कम – डॉ. रतन लाल महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में गत दिवस एक अंतरराष्ट्रीय वैबीनार का आयोजन किया गया। वेबीनार के आयोजन सचिव क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डॉ. एस के शर्मा ने बताया कि यह  वेबीनार खाद्य एवं जलवायु के लिए  मृदा का महत्व पर केंद्रित  था। डॉ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि इस वेबीनार के मुख्य वक्ता विश्व खाद्य पुरस्कार 2020 से सम्मानित विशिष्ट कृषि शिक्षा विद एवं वर्तमान में ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी, कोलंबस अमेरिका के कार्बन प्रबंधन एवं पृथक्करण केंद्र के निदेशक डॉ. रतनलाल थे। डॉ. रतन लाल ने विश्व के चार महाद्वीपों में 2 अरब लोगों के लिए मृदा के स्वस्थ प्रबन्धन द्वारा खाद्य सुरक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय  जगत में विशेष कार्य किया है। उन्हें बोरलाग अवार्ड] वान लीबिग अवार्ड ग्लिन्का वर्ड सायल अवार्ड सहित विश्व खाद्य सुरक्षा व जलवायु परिवर्तन की प्रतिकूलता व मृदा के टिकाऊ प्रबन्धन के लिए वर्ष 2019 में प्रतिष्ठित जापान पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

महत्वपूर्ण खबर : किसान विरोधी तीनों अध्यादेशों की होली जलाई

डॉ. रतन लाल ने वेबीनार को संबोधित करते हुए बताया कि विश्व के सूखाग्रस्त इलाकों में 2.5 अरब लोगों की आय 2.5 डालर प्रतिदिन से कम है। साथ ही यहाँ जलवायु की प्रतिकूल परिस्थितियाँ विद्यमान है। अतः इन क्षेत्रों में फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए जलवायु के प्रति अनुकूलता (अडेप्टेशन) तथा जलवायु की प्रतिकूलता को कम करने (मिटिगेशन) की सख्त आवश्यकता है। मिट्टी की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणवत्ता को सुधार कर जलवायु के प्रति लोचकता को बढ़ाया जा सकता है।

डॉ. रतन लाल ने कहा कि खेत की मृदा कृषि उत्पादन में सबसे महत्वपूर्ण घटक हैI हमें इसका उपयोग एक बैंक की तरह करना चाहिए जिस प्रकार बैंक में हम अपना धन जमा करते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर बैंक से वापस निकाल लेते हैं उसी प्रकार हमें अपनी मृदा  की देखरेख भी एक धन की तरह ही करनी चाहिए जिसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व एवं जैविक पदार्थ उपस्थित होते हैं। इसका सदुपयोग कर हम अपने कृषि उत्पादन को टिकाऊ बना सकते हैं।

डॉ. रतन लाल ने कहा कि मनुष्य के लालच  की वजह से हम अपने खेत की मृदा का अत्यधिक दोहन करते हैं तथा उसमें विभिन्न प्रकार के रसायनिक उर्वरक, कीटनाशक, पौध व्याधि नाशक रसायनों का उपयोग करते हैं। जरूरत ना होने पर भी सिंचाई करते हैं जिससे हम अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें परंतु इस सब में हम अपने खेत की मृदा के स्वास्थ्य और उपजाऊ पन की घोर अनदेखी करते हैं। हमें अपने खेत से टिकाऊ उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत की मृदा का ध्यान रखना होगा । 

उन्होंने भूमि में कार्बनिक पदार्थो के महत्व को रेखांकित कर सीएनपीके की अवधारणा देते हुए बताया कि मिट्टी में उपस्थित विभिन्न कार्बनिक एवं जैविक पदार्थ एवं मिट्टी के यौगिक पृथ्वी के मौसम एवं जलवायु को भी नियंत्रित करते हैं और हमें सांस लेने योग्य जलवायु प्रदान करते हैं। उन्होंने कृषि उत्पादन के साथ प्रकृति को बचाये रखने पर भी जोर दिया। उन्होंने प्रतिवर्ष कृषि अपशिष्ट पराली को जलाने के बजाय कार्बनिक व उर्वरक स्त्रोत के रूप में उपयोग करने पर जोर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति डॉ. नरेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि भारत सरकार की पहल पर मृदा जैसे महत्वपूर्ण संसाधन के सरंक्षण के लिए  देश के 145 मिलियन किसान परिवारों में से 130 किसान परिवारों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराये गये है, जिसका मुख्य उद्धेश्य किसानों एवं जनता में मृदा स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता लाना है तथा पोषक तत्वों के उपयोग से दक्षता बढ़ाना है। डॉ. राठौड़ ने भारत के कृषि उत्पादन में विगत दशकों में हुई उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डालते हुए मृदा, पानी, बीज, मशीन, जलवायु तकनीकों तथा मिट्टी की डिफेन्स क्षमता के बारे में जानकारी दी।

प्रारंभ में कुलपति के विशेष अधिकारी डॉ. विरेंद्र नेपालिया ने सभी उपस्थित सज्जनों का स्वागत किया एवं वेबीनार के विषय तथा मुख्य वक्ता के जीवन पर प्रकाश डाला। अंत में वेबिनार के आयोजन सचिव डॉ. एसके शर्मा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।  उन्होंने बताया कि इस अंतरराष्ट्रीय विनर के आयोजन का मुख्य उद्देश्य कृषि शिक्षा एवं शोध से जुड़े में देश विदेश के विभिन्न कृषि शिक्षा विद, विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, कृषि वैज्ञानिकों कृषि विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों मे मृदा  को एक संसाधन के रूप में देखने  एवं  टिकाऊ खाद्य उत्पादन  तथा जलवायु के निर्माण में  महती भूमिका  को देखते हुए  आयोजित किया गया। वेबीनार में  लगभग 200 लोगों ने  भाग लिया।

Advertisements