अधिक उत्पादन एवं लाभ के लिए करें जैविक खेती तकनीकों का समावेश
24 फरवरी 2022, उदयपुर । अधिक उत्पादन एवं लाभ के लिए करें जैविक खेती तकनीकों का समावेश – महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत पर एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन 23 फरवरी, 2022 को अनुसंधान निदेशालय में किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में उदयपुर संभाग के गांव झाड़ोल के किसानों सहित विश्वविद्यालय के 120 छात्र – छात्राओं ने भाग लिया।
उदघाटन सत्र में डॉ नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि जैविक खेती के प्रकृति संरक्षण में विशेष फायदे हैं। मुक्त खाद्यान्न, फल, सब्जी, दूध, अण्डे आदि खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ रही हैं, लेकिन बिना रसायन खेती की नवीन तकनीकों की जानकारी किसानों तक पहुँचाना आवश्यक है। डाॅ. राठौड ने बताया कि आज कई किसान स्वंय के परिवार के लिए अलग से पेस्टिसाइड रहित खाद्यान्न उत्पादन करते है तथा बाजार के लिए पेस्टिसाइड युक्त खेती। साथ ही उन्होनें बताया कि जैविक खेती की तरफ किसानों को एकदम शिफ्ट नहीं होना चाहिए बल्कि चरणबद्व तरीके से तकनीकी रोडमेप बनाकर सम्पूर्ण जैविक कृषि प्रंबधन की ओर अग्रसर होना चाहिए। उन्होनें कहा कि जैविक पेस्ट नियंत्रण द्वारा हानिकारक कीटों को कम करना चाहिए। उन्होनें जैविक खेती में मशीनरी का अधिक से अधिक प्रयोग कर खेती को लाभकारी बना सकते है। उन्होनें कम से कम रसायनिक खादों एवं पेस्टिसाइड के उपयोग के बारे में आम नागरिक का जागरूक करने की आवश्यकता पर बल दिया। क्योंकि आने वाले समय में मानव एवं पशु स्वास्थय तथा पर्यावरण संरक्षण खेती की दिशा तथा दशा तय करेंगे।
डॉ. सुजय रक्षित, निदेशक, आई. सी. ए. आर. भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना ने मेवाड़ में मक्का के महत्व के बारे में बोलते हुए बताया कि मक्का में तना छेदक का नियंत्रण जैविक खेती तरीके से किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि देश भर में जैविक तथा रासायनिक खेती पर अनुसंधान किये जा रहे हैं। चार वर्ष के बाद जैविक मक्का तथा रसायनिक मक्का के उपज अन्तर काफी कम था। उन्होंने बताया कि जैविक खेती की नवीन तकनीकों के सतत् प्रशिक्षण द्वारा किसानों तक पहुँचाना आज की मुख्य आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कारकों को ध्यान में रखते हुए फसल, सब्जी, फल तथा अन्य उत्पादों की तकनीकों का चयन करना चाहिए तथा साथ ही बेबीकाॅर्न तथा स्वीटकाॅर्न की जैविक खेती से ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है।
डॉ संाईदास, अध्यक्ष, भारतीय मक्का टेक्नोलोजिस्ट एसोसिएशन, नई दिल्ली ने बताया कि जैविक खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है लेकिन इसका बाजार सिमित है।
डॉ एम. एल. जाट, प्रधान वैज्ञानिक, सिमिट ने किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जैविक खेती विशेष परिस्थितियों तथा विशेष बाजार के मध्य नजर ही लाभकारी होती है। साथ ही उन्होंने बताया कि जैविक खेती की तरह राजस्थान में संरक्षण खेती का भी रोडमेप बनाने की जरूरत हैं। इस अवसर पर परियोजना के तहत् किसानों को सोलर होम लाइट तथा गर्मी के मौसम में मूंग की खेती के नये बीज वितरित किये गये।
प्रशिक्षण कार्यक्रम मेें परियोजना के विभिन्न वैज्ञानिको द्वारा किसानों को आर्गेनिक फूड की गुणवता बनाए रखने के लिए जैविक आदानों (वर्मीवाश, वर्मीकम्पोस्ट, पंचगव्य, प्रोम, हर्बल जैव अर्क, बायोपेस्टीसाइड, तरल जैव उर्वरक, नीम उत्पाद, देशी अर्क तथा गौमूत्र आधारित जैव पेस्टीसाइड) को तैयार करने की विधि तथा गुणों की जानकारी दी साथ ही जैविक खेती में काम आने वाले जैविक उत्पाद, उत्पादन एवं उनकी गुणवता की प्रायौगिक जानकारी दी गई तथा प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया। डॉ. रोशन चैधरी, प्रशिक्षण सह-प्रभारी ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा डॉ अरविन्द वर्मा, ने अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित दिया।