राज्य कृषि समाचार (State News)

स्थापना दिवस पर कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा सत्र आयोजित

12 दिसम्बर 2022, इंदौर: स्थापना दिवस पर कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा सत्र आयोजित – भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा गत 11 दिसंबर को अपना  36 वां स्थापना दिवस मनाया गया। मुख्य अतिथि देवी अहिल्या विश्व विद्यालय की कुलपति डॉ रेणु जैन तथा विशेष अतिथि संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ वी.एस. भाटिया उपस्थित थे । कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ एस.पी. तिवारी, पूर्व कुलपति, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर ; पूर्व निदेशक, भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान तथा उप-महानिदेशक (शिक्षा एवं फसल विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद थे।  इस कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक द्वारा सोयाबीन की खेती में अधिक उत्पादन लेने एवं नवाचार अपनाने वाले तीन उत्कृष्ट  सोया कृषकों श्री मेहरबान सिंह चौधरी, ग्राम अर्जुन बड़ोदा; श्री जीवन परमार, ग्राम भोंडवास, जिला इंदौर एवं श्री महेंद्र पवार, ग्राम पिपलोदा, जिला शाजापुर को स्मृति चिन्ह एवं पुरस्कार वितरण कर सम्मानित किया गया।

 संस्थान के निदेशक डॉ के.एच. सिंह द्वारा पहली बार अपने क्षेत्र में वर्ष भर मेहनत करने वाले उत्कृष्ट तकनीकी अधिकारियों , वैज्ञानिकों / शोध वैज्ञानिक  डॉ गिरिराज कुमावत,  विस्तार वैज्ञानिक डॉ बी.यु. दुपारे, तकनीकी कर्मी श्री श्याम किशोर वर्मा,  प्रशासनिक कर्मी श्री शक्ति पाल  सिंह वर्मा को पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। अपने उद्बोधन में डॉ के.एच. सिंह द्वारा सोयाबीन फसल की अभी तक की यात्रा के बारे में आये उतार चढ़ाव  एवं इस फसल की भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा की गई । उन्होंने कहा “देश को 25 मिलियन टन खाद्य तेल की आवश्यकता है, जिसमें से हमारा उत्पादन केवल 12 मिलियन टन है जिसके चलते हमें  13 मिलियन टन खाद्य तेल विदेशों  से आयात करना पड़ता है। इसलिए हम अग्रिम पंक्ति परीक्षणों के माध्यम से ऐसे इलाकों में सोयाबीन का परीक्षण कर रहे हैं , जहां से अच्छी मात्रा में उपज प्राप्त हो सके”। आपने कहा कि  संस्थान द्वारा 3 एस.वन.वाई जैसी परियोजना भी संचालित की जा रही है, जिसके माध्यम से न्यूनतम अवधि में किसानों को गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीज प्राप्त हो सके।

Advertisement
Advertisement

 मुख्य अतिथि डॉ रेणु जैन ने कहा “सोयाबीन एक चमत्कारी फसल है, इसके बहुमुखी उपयोग है ,साथ ही सकारात्मक कारणों के लिए जल्द ही देवी अहिल्या विश्वविद्यालय  भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के साथ मिलकर छात्रों, किसानों एवं देश हित के लिए समझौता  ज्ञापित कर जुड़ने में गर्व महसूस करेगा। वहीं संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ वी.एस. भाटिया ने बताया कि विगत 35 वर्षों में हाई ओलिक एसिड वाली तथा खाद्य गुणों के लिए उपयुक्त ट्रिप्सिन इन्हिबिटर मुक्त किस्में सर्वप्रथम संस्थान द्वारा ही विकसित की गयी है। संस्थान के मार्गदर्शक एवं
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ एस.पी. तिवारी ने कहा “सोयाबीन विदेशी फसल नहीं है।  यह हमारे देश में ही उपजी है, जिसका प्रमाण खुद महात्मा गाँधी जी के सन 1934 – 35 के आलेखों से मिलता है। भारत में सोयाबीन कश्मीर-लेह से नागालैंड तक उगाई जाती थी। उनके अनुसार सोयाबीन एक कमर्शियल फसल है और वर्तमान में हमें सोयाबीन का कमर्शियलाइजेशन करने की आवश्यकता है, जिससे किसानों को अधिक से अधिक आर्थिक लाभ मिले। इस मौके  पर संस्थान की स्थापना से अभी तक की यात्रा को डोक्युमेंट्री फिल्म के माध्यम से दिखाया गया तथा  बीज अंकुरण जांच तथा बीज भंडारण विषय पर दो विस्तार फोल्डर एवं सोया कृषकों के लिए विस्तार बुलेटिन का भी विमोचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ ज्ञानेश कुमार सातपुते द्वारा किया गया तथा धन्यवाद  ज्ञापन प्रधान वैज्ञानिक एवं आयोजन सचिव डॉ बी.यु. दुपारे ने किया। कार्यक्रम के दूसरे चरण में कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा सत्र का आयोजन हुआ जिसमे इंदौर, खरगोन, शाजापुर एवं धार जिले के प्रगातिशील किसानों ने विभिन्न मुद्दों पर जैसे सोयाबीन की  बीज उपलब्धता, बीजोपचार, कीट एवं रोग नियंत्रण बाबत चर्चा की  जिसमें संस्थान के निदेशक द्वारा आने वाले समय में उचित रणनीति अपना कर निदान किये जाने का आश्वासन दिया गया।

महत्वपूर्ण खबर: गेहूं में उर्वरकों की मात्रा एवं उनका प्रयोग

Advertisement8
Advertisement

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्राम )

Advertisement8
Advertisement
Advertisements
Advertisement5
Advertisement