गऊ संख्या के बिगड़ते समीकरण
सन् 2012 में पशुओं की संख्या की गणना अनुसार देश में 1909 लाख गऊ प्रजाति हैं, इनमें से 1511.7 लाख गायें देशी प्रजाति की हंै तथा 397.3 गायें विदेशी व संकर जाति की हंै, जबकि 1992 में देशी गाय प्रजाति की संख्या 1893.69 लाख थी और विदेशी व संंकर जाति की संख्या मात्र 152.15 लाख थी। इन 20 वर्षों में देशी गायों की संख्या 381.99 लाख की कमी देखी गयी है। जबकि विदेशी व संकर जाति की गायों में 245.15 लाख गायों की संख्या में वृद्धि पाई गई है। इस बीच इन बीस वर्षों में गायों की कुल संख्या में मात्र 36.85 लाख की वृद्धि पाई गई। देशी गायों की संख्या में गिरावट तथा विदेशी व संकर जाति की गायों में लगातार वृद्धि का सामाजिक व आर्थिक प्रभाव एक अध्ययन का विषय है। इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है नहीं तो इसके दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे। सन् 1992 में जहां-जहां गाय प्रजाति की कुल संख्या 2045.84 लाख में से 1029.67 गायें थीं व शेष 1016.17 लाख बैल या साँड थे और यह अनुपात एक नर के पीछे 1.01 मादा थीं। वहीं 2012 में 1229.84 लाख मादा गायों के पीछे मात्र 779.16 लाख नर बचे। नर व मादा गायों का अनुपात बढ़कर 1.0:1.57 हो गया। यह एक चिन्ता का विषय है। भले ही इसका मुख्य कारण खेती में ट्रैक्टर का उपयोग है जिसके कारण बैलों का कृषि कार्य में उपयोग न होना है। फिर भी हमें इस अनुपात को स्थिर रखने के लिये उपाय सोचने होंगे ताकि यह संतुलन और न बिगड़ जाये। इसके सामाजिक व आर्थिक प्रभावों का अध्ययन करना होगा नहीं तो भविष्य में कुछ विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। देश की कुल गाय प्रजाति का सबसे अधिक 10.27 प्रतिशत मध्यप्रदेश में है। इसके बाद उत्तरप्रदेश है जहां 10.24 प्रतिशत गाय प्रजाति हंै। राजस्थान में यह 6.98 प्रतिशत व छत्तीसगढ़ में 5.14 प्रतिशत है। देश की कुल गायों का 22.39 प्रतिशत मध्य क्षेत्र के तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में है। गाय प्रजाति के इन बिगड़ते समीकरण का अध्ययन व समाधान हेतु हमें अभी से प्रयास करने होंगे ताकि भविष्य में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष होने वाले दुष्परिणामों को रोका जा सके।