State News (राज्य कृषि समाचार)

अरावली ग्रीन वाल परियोजना जलवायु परिवर्तन के द्रष्टिकोण से अहम

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रेशव चहल (शोध छात्र) कृषि वानिकी विभाग; आचर्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्विद्यालय कुमारगंज, अयोध्या

28 जुलाई 2023, नई दिल्ली: अरावली ग्रीन वाल परियोजना जलवायु परिवर्तन के द्रष्टिकोण से अहम – बीते दिनों केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने हरियाणा के गाँव टिकली से अरावली हरित दीवार परियोजना का अनावरण किया यह देश में मरुस्थलीकरण के विस्तार को रोकने के लिए चलाई गई|

ये अब तक की सबसे बडी परियोजना हैं हालांकि इस तरह की परियोजना चीन और अफ्रीका में ग्रेट ग्रीन वाल प्रोजेक्ट के रूप में पहले से चलाई जा रही है लकिन भारत में इस तरह का यह एक नया पारिस्थितिक पुंनेबहाली प्रयोग है| जिसमे बंजर क्षेत्र को हरित बनाने की पहल की जा रही है वास्तव में यह परियोजना मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण के विस्तार को रोकने के लिए केंद्र सरकार की कोशिश का हिस्सा है| इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य अरावली से संबंधित 1400 की०मी लम्बे और 5 की ० मी चोडाई वाले क्षेत्र को हरा-बहरा बनाना है| ये लम्बे समय तक चलने वाली एक चुनौती पूर्ण परियोजना है जिसके तहत मरुस्थलीकरण को रोकने और वनीकरण को बढावा देने के लिए प्रयास किये जायेगे| हरयाली दीवार का विकास जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण योगदान साबित हो सकता है| अगर यह परियोजना अपने मकसद में कामयाब होती है तो यह देश में मरुस्थलीकरण को रोकने और क्षारीय भूमि को उपजाऊ बनाने की दिशा में उल्लेखनीय योजना समझी जाएगी|  गौरतलब है नई दिल्ली में 2019 में संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय के 14 संस्करण मेजवानी करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली घोषणा पत्र जारी कर 2030 तक भूमि क्षय स्तर को तथ्यस्त रखने का लक्ष्य रखा गया है| वर्ष 2021 के जून में संयुक्त राष्ट्र के मरुस्थलीकरण भूमि और सूखे पर उच्च स्तरीय संवाद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था मानव गतिविधि के कारण भूमि के नुकसान को दूर करना मानव जाति की सामूहिक जिम्मेदारी है और आने वाली पीढ़ी के लिए स्वस्थ ग्रह छोड़ना हमारा कर्त्तव्य है| भारत ने 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को बाहल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है| एस लक्ष्य को हासिल करने का अर्थ वातावरण से 2.5 से 3.0 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित करने में योगदान देना भी है और अरावली क्षेत्र की बंजर भूमि के पुंनेबहाली उसी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक कोशिश मानी जा रही है|

अरावली हरयाली की दीवार के फायदे

जंगलो के विकास से इस क्षेत्र के पर्यावरण को नया जीवन मिलेगा और हरे भरे क्षेत्र ऑक्सीजन के बड़े उत्पादक होगे और पड़े पैमाने पर कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित करेंगे | हरयाली की इस पट्टी का वर्षा अथवा भूजल में भी हिजाफे के साथ-साथ इस परियोजना का मकसद अरावली क्षेत्र को पारिस्थितिक और जैव विविधता  के मकसद से भी सेहतमंद बनाना और वनीकरण, कृषि वानिकी और जल संरक्षण गतविधियो से आस-पास के लोगो के लिए आय और रोजगार के नए अवसरों के साथ सामाजिक लाभ प्रदान करने में मदद मिलेगी | संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक भूमि क्षरण रोकने का संकल्प क विस्तार को रोकना एक कठिन चुनौती है | यह परियोजना गुजरात के पोरबंदर से हरियाणा के पानीपत को हरयाली के माध्यम से जोड़ा जायेगा | ऐसे समय में भारत सहित दुनिया के देश मरुस्थलीकरण की मार झेल रहे है तब यह परियोजना पारिस्थितिक तंत्र संतुलन की दिशा में लाभदायक सिद्ध होगी |

मरुस्थलीकरण रोकने की राह में चुनौतिया

जमीन को बंजर में तब्दील करने में भूमि प्रदूषण, औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रक्रिया का अहम योगदान है वनों की कटाई अनियंत्रित कृषि, खनन, खेतो में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का ज्यादा उपयोग, फसल चक्र की अनदेखी, भूजल का अति दोहन की प्रक्रिया भी जमीन को बंजर में तब्दील करती है | यह समस्या कई बार स्थाई रूप लेकर किसी प्रदेश की अर्तव्यवस्था और समाज को गहरी तौर पर प्रभावित करती है एक आकडे के मुताबिक भारत में एक तिहाई भूमि क्षरण की शिकार है इससे भारत के सकल उत्पाद को हर साल 2.5 प्रतिशत का नुकसान होता है | बढ़ती जनसंख्या बढ़ती मांगो की पूर्ति के कारण गुणवत्ता निरन्तर घटती जा रही है संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया भर में हर साल 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी बंजर हो जाती है ऐसे में भूमि क्षरण बड़ी पर्यावरणीय समस्या तो है ही बल्कि कई अन्य आर्थिक और सामाजिक संकट की जन्मदाता भी है | संयुक्त राष्ट्र के एक सर्वे के अनुसार भूमि क्षरण के कारण अनाज उत्पादन  के प्रभावित  होने से खाद्य सामग्री में 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो जाती है | ऐसा हे चलता रहा तो वर्ष 2050 तक फसल उत्पादन में 10 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है |

अरावली ग्रीन वाल में चुनौतिया

परियोजना के चिन्हित क्षेत्रो में रोपण के लिए उपयुक्त पेड़ो की प्रजातियों का चयन और उनके अस्तित्व को सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौति है | यह परियोजना वित्तीय के अभाव में भी प्रभावित हो सकती है और राजनातिक स्थिरता भी एक अहम कड़ी है क्योंकि यह परियोजना तीन राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश से सम्बंधित होना और इन प्रदेशो की सरकारों के परियोजना के प्रति दृष्टिकोण से इसकी प्रगति और सफलता प्रभावित हो सकती है सत्ता परिवर्तन के साथ राज्य सरकारों की प्राथमिकताए भी बदल सकती है अत: यह परियोजना केंद्र के सैट सम्बंधित  प्रदेशो की सरकारों के सहयोग पर टिकी है जो एक चुनौति है |

निष्कर्ष

हरयाली की दीवार एक बड़ा निवेश का हिस्सा है जिससे आने वाली कई पीढ़िया लाभानित होने के साथ-साथ इस क्षेत्र में पौध रोपण से भविष्य में जंगल विकसित होने के साथ पर्यावरण को नया जीवन मिलेगा यह पर्यावरण संरक्षण के साथ पर्यटकों को लुभाने में भी सफल होगी | भूमि क्षरण को रोकने के लिए प्रक्रति के साथ निकटता का सम्बन्ध स्थापित करना होगा और ऐसी मानवीय गतविधियो पर लगाम लगानी होगी जो भूमि के साथ-साथ पर्यावरण को नुकसान पहुचाने का काम करती है और इस दिशा में हरित दीवार का निर्माण मील का पत्थर साबित होगा |

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