पंजाब की ‘कैंसर ट्रेन’ का सच
29 अगस्त 2025, नई दिल्ली: पंजाब की ‘कैंसर ट्रेन’ का सच – लंबे समय से पंजाब को लेकर एक भयावह कहानी दोहराई जाती रही है- कि यह राज्य आधुनिक खेती के कारण कैंसर की महामारी से जूझ रहा है। इस कहानी का प्रतीक बनी है बठिंडा से बीकानेर जाने वाली रात की ट्रेन, जिसे आम बोलचाल में ‘कैंसर ट्रेन’ कहा जाने लगा। कहा जाता है कि इस ट्रेन में सवार ज्यादातर यात्री कैंसर के मरीज होते हैं जो इलाज के लिए राजस्थान जा रहे हैं। यह कहानी सुनने में मार्मिक लगती है, लेकिन जब तथ्यों की पड़ताल की जाती है तो तस्वीर बिल्कुल अलग निकलती है।
‘कैंसर ट्रेन’ की हकीकत
हर रात 9:30 बजे बठिंडा से बीकानेर के लिए एक ट्रेन चलती है। पर्यावरण कार्यकर्ता सुश्री सुनीता नारायण सहित कई लोगों ने इसे पंजाब की खेती और कीटनाशकों से जोड़कर पेश किया। लेकिन आरटीआई (सूचना का अधिकार) से प्राप्त आंकड़े इस दावे की पुष्टि नहीं करते।
बीकानेर स्थित आचार्य तुलसी क्षेत्रीय कैंसर उपचार एवं अनुसंधान संस्थान के आँकड़े बताते हैं कि पिछले 11 वर्षों (2014–2024) में इलाज के लिए आने वाले कुल मरीजों में से पंजाब से आने वाले मरीजों की औसत संख्या मात्र 6% रही है। साल 2024 में तो यह आँकड़ा घटकर केवल 2% रह गया।
सीसीएफआई (Crop Care Federation of India) के वरिष्ठ सलाहकार श्री हरीश मेहता कहते हैं, “यह आँकड़े साफ-साफ दिखाते हैं कि पंजाब से कैंसर मरीजों की भारी संख्या बीकानेर नहीं जा रही। यह महज़ एक मिथक है, जिसे चुनिंदा उदाहरणों से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।”
2020 से 2024 तक पंजाब से मरीजों के आँकड़े
वर्ष | संस्थान में कुल मरीज | पंजाब से मरीज | प्रतिशत |
---|---|---|---|
2020 | 10,549 | 635 | 6% |
2021 | 9,728 | 486 | 5% |
2022 | 10,108 | 505 | 5% |
2023 | 11,309 | 452 | 4% |
2024 | 11,309 | 226 | 2% |
इन आँकड़ों से साफ है कि न केवल प्रतिशत घट रहा है बल्कि पंजाब से आने वाले मरीजों की वास्तविक संख्या भी कुल मरीजों की तुलना में बेहद कम है।
भारत में कैंसर दर: पंजाब की वास्तविक स्थिति
आईसीएमआर और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी (1990–2016) के अनुसार, कैंसर की आयु-मानकीकृत दर में पंजाब का स्थान पूरे भारत में 24वाँहै।
भारत के शीर्ष 25 राज्य – कैंसर की आयु-मानकीकृत दर (प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर)
रैंक | राज्य | कैंसर दर |
---|---|---|
1 | मिज़ोरम | 186.5 |
2 | मेघालय | 153.3 |
3 | दिल्ली | 148.6 |
4 | अरुणाचल प्रदेश | 145.9 |
5 | हरियाणा | 139.1 |
6 | असम | 134.4 |
7 | नागालैंड | 127.1 |
8 | केरल | 125.4 |
9 | कर्नाटक | 123.5 |
10 | सिक्किम (100% जैविक) | 123.1 |
… | … | … |
24 | पंजाब | 97.5 |
ध्यान देने योग्य है कि शीर्ष 10 में आने वाले अधिकांश राज्य उत्तर-पूर्व से हैं, जहाँ गहन कृषि (intensive agriculture) प्रचलित नहीं है। इसके विपरीत पंजाब, जो गहन खेती करता है, कैंसर दर में काफी नीचे है।
श्री मेहता कहते हैं, “पंजाब को कैंसर की राजधानी कहना निंदनीय और भ्रामक है। वास्तविक आँकड़े इस दावे का समर्थन नहीं करते।”
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: भारत कहाँ खड़ा है
नवंबर 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की इकाई अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (IARC) ने कैंसर से जुड़े नवीनतम वैश्विक आँकड़े जारी किए। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में कैंसर की सर्वाधिक दर वाले शीर्ष 10 देशों में से 6 देश यूरोपीय संघ के हैं, जिससे यह क्षेत्र “दुनिया की कैंसर राजधानी” कहलाता है।
भारत इस सूची में 172वें स्थान पर है, जहाँ कैंसर की आयु-मानकीकृत दर मात्र 97 प्रति 1,00,000 जनसंख्या है। यह दर यूरोपीय संघ की तुलना में तीन गुना कम और विश्व औसत (201) की आधी से भी कम है।
भारत के पड़ोस में सिंगापुर का कैंसर दर 233 प्रति 1,00,000 है—जबकि वहाँ कृषि बिल्कुल नहीं होती। वहीं भारत के भीतर मिज़ोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में सबसे अधिक कैंसर दर दर्ज की गई है। यह साफ करता है कि आधुनिक खेती और कैंसर को सीधे जोड़ना भ्रामक है।
वैश्विक कैंसर दर (प्रति 1,00,000 जनसंख्या) – 2020
रैंक | देश | कैंसर दर |
---|---|---|
1 | ऑस्ट्रेलिया | 452 |
2 | न्यूज़ीलैंड | 423 |
3 | आयरलैंड | 373 |
4 | अमेरिका | 362 |
5 | डेनमार्क | 351 |
6 | नीदरलैंड | 350 |
7 | बेल्जियम | 349 |
8 | कनाडा | 348 |
9 | फ्रांस | 342 |
10 | हंगरी | 338 |
– | विश्व औसत | 201 |
172 | भारत | 97 |
स्रोत: इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर, GLOBOCAN 2020 (16 दिसम्बर 2020 तक)
पंजाब को लेकर फैलाई गई ‘कैंसर ट्रेन’ की कहानी आँकड़ों के सामने टिकती नहीं है। पंजाब न तो कैंसर का गढ़ है और न ही वहाँ के किसानों की आधुनिक खेती को इसका जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
श्री मेहता के शब्दों में, “भारतीय कृषि को बदनाम करने से किसी का भला नहीं होगा। हमें विज्ञान-आधारित खेती का सम्मान करना चाहिए और सुरक्षा सुधार पर काम करना चाहिए, न कि गलत तथ्यों से किसानों को कटघरे में खड़ा करना चाहिए।”
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