राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

शुद्ध के लिये युद्ध अभियान पर लगाया प्रश्न चिन्ह

भोपाल। म.प्र. कृषि मंत्रालय के नकली और अमानक उर्वरक पर नकेल कसने के जोश में चलाये गये शुद्ध के लिये युद्ध अभियान की केंद्र ने हवा निकाल दी है। केंद्र ने अभियान में नियमानुसार प्रक्रिया नहीं अपनाये जाने पर राज्य से स्पष्टीकरण चाहा है। शुरू से ही अपनी नीयत को लेकर शक के दायरे में रहे इस अभियान पर केंद्र के इस कदम से प्रश्र चिह्न लग गया है। इससे केंद्र और राज्य सरकार के बीच की खाई और चौड़ी होने की संभावना है। दोनों सरकारों के बीच राजनैतिक विरोधाभास के चलते आरोप प्रत्यारोप के दौर चलते रहते हैं। बात चाहे अतिवृष्टि के लिए राहत राशि की हो या प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना की हो। ऐसे में शुद्ध के लिये युद्ध अभियान में केंद्र का दखल राज्य शासन की मुश्किलें ही बढ़ायेगा।

हाल ही में म.प्र. कृषि मंत्रालय ने नकली एवं अमानक कृषि आदानों की रोकथाम के लिये 15 से 30 नवम्बर तक प्रदेश व्यापी अभियान  प्रारम्भ किया है। मंत्रालय स्तर से कृषि विभाग के मैदानी अमलों  को अमानक या नकली कृषि आदान विक्रेताओं पर कठोर कार्यवाही के निर्देश दिये गये। मैदानी अधिकारी भी निर्देश मिलते ही खंभ ठोककर मैदान में कूद पड़े। जोश से लबरेज अधिकारियों ने जाने-अनजाने में कृषि आदानों से संबंधित अधिकारियों में दिये गये निर्देशों की भी अनदेखी कर दी। तत्काल एफआईआर जैसी वैधानिक कार्यवाही से कृषि आदान व्यापारियों और निर्माताओं में हड़कंप मच गया। तब कृषि आदान निर्माताओं और व्यापारियों के विभिन्न संगठनों ने हर स्तर पर आवाज उठाई कि कार्यवाही की प्रक्रिया नियम सम्मत नहीं है, इस तरह की आधारहीन कार्यवाही से कृषि आदान निर्माताओं और व्यापारियों की साख को बट्टा लग रहा है। लेकिन शासन के घोषित युद्ध में खुद को हीरो साबित करने की दौड़ में लगे अधिकारियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। आखिरकार संगठनों ने केंद्र सरकार से इसमें दखल देने का अनुरोध किया। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने भी सारे घटनाक्रम को समझने के बाद म.प्र. के कृषि संचालक को आवश्यक वस्तु अधिनियम के अन्तर्गत उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के नियमों के अनुसार कार्यवाही करने के निर्देश दिये। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की उप सचिव सुश्री रजनी तनेजा (आईएनएम) द्वारा भेजे पत्र में स्पष्ट निर्देश हैं कि रेफरी नमूनों की जांच का अवसर दिये बिना कानूनी कार्यवाही गलत है।
इस सारे घटनाक्रम में राज्य शासन की ही छवि धूमिल हुई और अपने राजनैतिक आकाओं को खुश रखने वाले अधिकारियों की योग्यता पर भी संदेह गहरा गया है। केंद्र और राज्य की राजनैतिक स्थितियों को देखते हुए राज्य शासन को कोई भी कदम काफी सोच समझ कर उठाना होगा।
एफ सी ओ 1985 में प्रावधान
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के अधीन बनाये गये फर्टिलाइजर कंट्रोल आर्डर 1985 किसी भी प्रभावित व्यक्ति कानूनी कार्यवाही के पहले सभी कानूनी अधिकार उपलब्ध कराने का आह्वान करता है। अपील अधिकारी के लिये आवश्यक है कि वह धारा 32 ए (2) के अंतर्गत नमूनों की द्वितीय और तृतीय जांच के लिये अवसर प्रदान करे।
धारा 32 ए (2) पीडि़त पक्ष को अवसर देती है कि नमूने की दूसरी जांच के लिए अपील कर सकता है। पीडि़त पक्ष पहली जांच रिपोर्ट प्राप्ति दिनांक से 30 दिन के अंदर अपीलीय अधिकारी को इसके लिये आवेदन कर सकता है।

इधर प्रदेश के कृषि मंत्री श्री सचिन यादव ने पत्रकार वार्ता में बताया कि अब तक 1313 उर्वरक विक्रेताओं/ गोदामों का निरीक्षण कर 1096 नमूने लिये गये हैं एवं 110 प्रकरणों में अनियमितता पर कार्यवाही की गई है। उर्वरक निर्माण इकाइयों का भी निरीक्षण किया जा रहा है। इसी प्रकार 1120 बीज विक्रेताओं/ गोदामों का निरीक्षण कर 1129 बीज नमूने संकलित किये गये और 51 प्रकरणों में कार्यवाही की गई। कुल 334 पौध संरक्षण दवा विक्रेताओं/ गोदामों का निरीक्षण किया गया और 66 प्रकरणों में कार्यवाही की गई है। 
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