कृषि आपदाओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन, नई तकनीकों और नीति सुधारों पर जोर
20 सितम्बर 2025, नई दिल्ली: कृषि आपदाओं से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन, नई तकनीकों और नीति सुधारों पर जोर – नई दिल्ली स्थित डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सहयोग से देश की कृषि आपदा तैयारी को बेहतर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यशाला आयोजित की। इस कार्यक्रम में जलवायु से उत्पन्न खतरों से निपटने के लिए भारत के कृषि क्षेत्र के नीति निर्माता, वैज्ञानिक और विशेषज्ञ एक साथ आए।
कार्यशाला में यह बात सामने आई कि सक्रिय और उच्च जोखिम की तैयारी आवश्यक है। इसमें कृषि विभाग, एनआईडीएम, कृषि मंत्रालय और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए, जिन्होंने जलवायु जोखिम को कम करने और किसानों की सुरक्षा के लिए नई तकनीकों और नीतियों को अपनाने पर जोर दिया। साथ ही, उन्होंने सूखे, कीट प्रकोप, शीत लहर और ओलावृष्टि जैसे खतरों के प्रबंधन के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता पर चर्चा की।
उद्घाटन सत्र में प्रमुख वक्ताओं के विचार
कार्यशाला की शुरुआत में समन्वयक शिव नारायण सिद्ध ने दिन भर की चर्चाओं का परिचय दिया। कृषि विभाग के उप सचिव अर्नब ढाकी ने स्वागत भाषण में कार्यशाला की सहयोगात्मक भावना पर जोर दिया। एनआईडीएम के कार्यकारी निदेशक मधुप व्यास ने कृषि नीतियों में जलवायु जोखिम को कम करने की जरूरत पर प्रकाश डाला। कृषि मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. प्रमोद कुमार मेहरदा ने बताया कि भारत के 68% से अधिक फसल क्षेत्र सूखाग्रस्त है, इसलिए प्रौद्योगिकी और डेटा का सही उपयोग किसानों की आय सुरक्षित करने में मदद करेगा। एनडीएमए के सदस्य राजेंद्र सिंह ने जोखिम प्रबंधन में प्रतिक्रियाशील से सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
तकनीकी सत्रों में सिफारिशें और प्रमुख मुद्दे
कार्यशाला के दौरान चार तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिनकी अध्यक्षता विशेषज्ञों ने की। पहले सत्र में आईएमडी के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्रा ने सूखे की निगरानी में नई तकनीकों जैसे रिमोट सेंसिंग और एआई मॉडल को शामिल करने और सूखा नियमावली 2020 को अपडेट करने की सिफारिश की। दूसरे सत्र में एमएनसीएफसी के निदेशक डॉ. एस. बंद्योपाध्याय ने कीट प्रकोप पर चर्चा की और राष्ट्रीय निगरानी व चेतावनी प्रणाली बनाने की सलाह दी।
तीसरे सत्र में शीत लहर से निपटने के लिए राज्य स्तरीय कार्य योजनाओं को मजबूत करने और शीत-सहिष्णु फसल किस्मों को बढ़ावा देने की सिफारिशें हुईं। चौथे सत्र में आईसीएआर के डीडीजी एनआरएम डॉ. ए के नायक ने ओलावृष्टि के लिए प्रभाव-आधारित पूर्वानुमान और बीमा कवरेज बढ़ाने पर जोर दिया।
समापन सत्र और आगे की प्रतिबद्धताए
कार्यशाला के अंत में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव देवेश चतुर्वेदी ने आत्मनिर्भर कृषि क्षेत्र बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा कि सभी सिफारिशों को एक व्यापक योजना में शामिल किया जाएगा। एनडीएमए के सदस्य कृष्ण एस. वत्स ने बताया कि किसानों को समय पर जानकारी और संसाधन उपलब्ध कराना ही इस कार्यशाला की सफलता की कसौटी होगी। उन्होंने क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की भी बात कही।
इस तरह, यह कार्यशाला कृषि क्षेत्र के लिए एक सक्रिय और समन्वित आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण तैयार करने में सफल रही, जिससे भारत के किसान जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का बेहतर सामना कर सकेंगे।
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