नीति आयोग ने टिकाऊ खेती के लिए मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया
08 दिसम्बर 2022, नई दिल्ली: नीति आयोग ने टिकाऊ खेती के लिए मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया – नीति आयोग ने विश्व मृदा दिवस के अवसर पर टिकाऊ खेती के लिए मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।
नीति आयोग और जर्मन फेडरल मिनिस्ट्री फॉर कोऑपरेशन एंड इकोनॉमिक डेवलपमेंट (बीएमजेड) की ओर से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए जर्मन एजेंसी जीएमबीएच इंडिया (जीआईजेड) द्वारा इस सम्मेलन की सह-मेजबानी की गई।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इस अवसर पर मुख्य भाषण देते हुए कहा, “सरकार पर्यावरण संरक्षण के उपायों को प्रोत्साहन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है और जर्मन सरकार के सहयोग से हम मृदा के स्वास्थ्य और टिकाऊ कृषि पद्धतियों में सुधार लाने के लिए एक रोडमैप तैयार करने में मदद कर सकते हैं।”प्रधानमंत्री ने उत्पादकता बढ़ाने, पारिस्थितिकी में सुधार और समृद्धि लाने के लिए देश भर में मृदा के स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता पर बल देते हुए प्राकृतिक, रसायन मुक्त और विविध फसलों की खेती करने का आह्वान किया था।
इसी बात को दोहराते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्राकृतिक और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने पर बहुत जोर दिया है। स्वस्थ मृदा प्रबंधन और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में भारत और जर्मनी को एक साथ काम करते देखकर मुझे बेहद खुशी हो रही है।”
नीति आयोग के सदस्य (कृषि) प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा, “स्वस्थ मृदा प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए कृषि रसायनों के उपयोग में कमी लाने की आवश्यकता है; हमें स्वस्थ विकल्प तलाशने होंगे। कृषि रसायन उत्पादकता में तो सुधार लाते हैं, लेकिन वे मृदा के क्षरण का भी कारण बनते हैं। इसलिए, उत्पादन की वास्तविक लागत में वास्तव में वृद्धि हो रही है।”
नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी परम अय्यर ने कहा, “हरित क्रांति के बाद से हम खाद्य सुरक्षा की दिशा में एक लंबा सफर तय कर चुके हैं और कृषि उत्पादन के संदर्भ में हम सही रास्ते पर हैं। हालांकि, हमें टिकाऊ खेती पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि स्वस्थ मृदा ही स्वस्थ भविष्य का आधार है।”
सम्मेलन में भारत में टिकाऊ खेती और लचीली खाद्य प्रणालियों के लिए कृषि पारिस्थितिकीय परिवर्तन में सहायता करने के लिए मृदा की सुरक्षा, बहाली और टिकाऊ मृदा प्रबंधन की भूमिका को रेखांकित किया गया।
डॉ. नीलम पटेल, वरिष्ठ सलाहकार (कृषि), नीति आयोग ने उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड के डेटा के अनुवाद के लिए आईटी के उपयोग का उल्लेख किया। उन्होंने विभिन्न टिकाऊ कृषि पद्धतियों के वैज्ञानिक प्रमाण के लिए अनुसंधान की आवश्यकता पर जोर दिया।
जीआईजेड नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट एंड एग्रो इकोलॉजी के निदेशक राजीव अहल ने कहा, “प्राकृतिक खेती और कृषि पारिस्थितिकीय खेती प्रथाओं का अभ्यास न केवल मृदा के स्वास्थ्य, जैव विविधता और पोषण को फिर से जीवंत बनाने और बढ़ाने का नहीं, बल्कि किसानों की समृद्धि का भी मार्ग प्रशस्त कर सकता है।”
भारत और जर्मनी पहले से ही लचीली कृषि और खाद्य प्रणालियों जैसे कृषि पारिस्थितिकीय समग्र समाधानों को बढ़ावा देकर मृदा क्षरण, जैव विविधता की हानि और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने की दिशा में साझेदारी कर रहे हैं।भारत और जर्मनी ने कृषि पारिस्थितिकी और प्राकृतिक संसाधनों के सतत प्रबंधन पर प्रथम द्विपक्षीय लाइटहाउस पहल की स्थापना के लिए मई 2022 में एक संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। इसके माध्यम से दोनों देशों के शैक्षणिक संस्थानों और किसानों सहित व्यवसायियों के बीच संयुक्त अनुसंधान, ज्ञान-साझा करने और नवाचार को बढ़ावा दिया जाएगा। जर्मनी का फेडरल मिनिस्ट्री फॉर कोऑपरेशन एंड इकोनॉमिक डेवलपमेंट इस पहल के तहत परियोजनाओं हेतु वित्तीय और तकनीकी सहयोग के लिए 2025 तक 300 मिलियन यूरो तक प्रदान करने का इच्छुक है।
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