National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

उर्वरक का कालाबाजार

Share

यह कैसा लोकतंत्र है कि अन्नदाता देश का पेट भरने एक-एक बोरी यूरिया की जुगाड़ में भटक रहा है। सत्ता पक्ष एवं विपक्ष किसान की इस विपदा में अपना राजनैतिक लाभ तलाश रहा है। मौके का राजनैतिक लाभ लेने आरोपों एंव प्रत्यारोपों का खेल खेला जा रहा है। गत वर्ष की समान अवधि में इस वर्ष मिली यूरिया की अधिक मात्रा के बाद भी राज्य के किसानों के पास यूरिया नहीं पहुॅच सका है। सरकार की ननुकुर के बाद भी यूरिया की कालाबजारी हो रही है। अधिक नमी से पीली पड़ रही फसलों को देने के लिये राज्य के किसानों के पास यूरिया नहीं है। आजादी के सात दशक के बाद भी यदि सरकारें अपने राज्यों के किसानों को उर्वरक नहीं दे पा रही इै तो, सरकारों के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मर जाने वाली  बात है। खेती को लाभ धन्धा बनाने के न जाने कितने लोक-लुभावने नारे! एक के बाद एक सभी किसान हितैषी सरकारें। लेकिन बावजूद इसके असल सच्चाई यह है कि आजादी के सात दशक के बाद भी मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य में किसान उर्वरक की एक—एक बोरी की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा है। इन राज्यों में यूरिया के लिये अन्नदाता पुलिस के डन्डों से पीट रहे है। ट्रक से यूरिया की लूट एवं सहकारी समितियों में एक बोरी यूरिया की प्राप्ति के लिये दिन—दिन भर कतारबद्ध किसानों की तस्वीरें, खबरों का हिस्सा बन चुकी है। लेकिन इसे देखकर भी, सरकार के मुखिया कहते हैं कि राज्य में उर्वरक का संकट नहीं है। उर्वरक खेती की पहली आवश्यकता है। उर्वरक संकट से रुबरु कराती प्रदेश की तस्वीरें राज्य की व्यवस्था को शर्मसार करने वाली है। मप्र एवं छत्तीसगढ़ में रबी फसलों की बोवनी अतिवृष्टी के कारण एक माह बिलंव से प्रारंभ हो सकी है। लेकिन बावजूद इसके इन राज्यों की सरकारं इस अतिरिक्त समय के बाद भी उर्वरकों की आसान उपलब्धता लिये गंभीर नहीं हो सकी है। इस वर्ष सिंचाई के लिये पानी की पर्याप्त उपलब्धता के कारण मप्र राज्य में गेहूँ के रकबे में लगभग 20 फीसदी की वृद्धि हुई है। राज्य के पचास फीसदी हिस्से में गेहूं की बुवाई पूर्ण होने के साथ पहली सिंचाई की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन सिंचाई से पूर्व गेहूं की फसल में डालने के लिय किसानों के पास यूरिया नहीं है। सहकारी समितियों द्धारा खाताधारी किसानों को एक से दो बोरी की प्रसादी दी जा रही है।   

कारण समितियों को मांग के विरुद्ध बहुत ही कम यूरिया उपलब्ध कराया जा रहा है। जिसे पाने राज्य का किसान कतारबद्ध होकर सुबह से शाम तक खड़ा है। पूर्व में राज्य शासन की नीति में निजी विक्रेताओं को राज्य को प्राप्त मात्रा का 20 फीसदी यूरिया देना तय हुआ था। लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि यूरिया पर निजी विक्रेताओं का ही कब्जा है। नियत मूल्य से लगभग दुगनी कीमत पर निजी विक्रेता अतिरिक्त उत्पाद साम्रगी खरीदने की अनिवार्यता पर यूरिया का विक्रय किसानों को कर रहे हैं। लेकिन राज्य के प्रत्येक जिले में हो रही इस कालाबजारी को रोकने मे ंप्रशासन नाकाम है। मप्र में नकली खाद—बीज के कारोबार की रोकथाम के लिये शुद्ध के लिये युद्ध अभियान चलाया जा रहा है। लेकिन आश्चर्य इस अभियान में खाद की मुनाफाखोरी रोकने को शामिल नहीं किया गया है। चालू रबी सीजन के लिये मप्र द्वारा केन्द्र से 18 लाख मैट्रिक टन यूरिया की मांग की थी। जिस पर केन्द्र सरकार ने 15 लाख 40 हजार टन की स्वीकृति दे दी है। अभी तक राज्य में पहुंची यूरिया की मात्रा विगत वर्ष इस अवधि में दी गई मात्रा से अधिक है। लेकिन प्रदेश में यूरिया की एक एक बोरी का किसान संघर्ष इस बात के संकेत देता है कि आवंटित यूरिया की मात्रा किसानों तक पहुंचने के बजाये कहीं और खपायी गई है। यह मामला जांच में अवश्य आना चाहिये।

गेहूँ की फसल में यूरिया का अंधाधुंध प्रयोग राज्य में तेजी से बढ़ रहा है। धान की फसल से नष्ट हुई उर्वरता को पाने के लिये किसान यूरिया का अत्याधिक प्रयोग कर रहा है, जो कि भूमि की सेहत बिगाडऩे के साथ पर्यावरण के लिये घातक है। इसके लिये भी मप्र में एक जागरुकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। लेकिन इससे पहले राज्य में किसान की खेतिहर भूमि पर उर्वरक का कोटा निर्धारित करने की आवश्यकता है। 

सहकारी समितियों में प्रत्येक किसान को उसकी उपलब्ध भूमि पर तय कोटे की उर्वरक म़ात्रा ही दी जाना चहिए। इसे किसान के मूलभूत अधिकार में भी शामिल किया जाना चहिए। तय मात्रा से अधिक उर्वरक अनुदान मूल्य पर लेने का अधिकार किसानों को नहीं होना चाहिए। यह उपाय किसानों के आत्मसम्मान के साथ उर्वरक की प्राप्ति एवं उर्वरक के अतिरिक्त अपव्यय एवं कालाबजारी को रोकने में कामयाब होंगे।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *