राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)संपादकीय (Editorial)

कर्ज, ब्याज चुकाने में चला जाता है देश का 20 फीसदी बजट 

लेखक- राजेश जैन

31 जनवरी 2024, नई दिल्ली: कर्ज, ब्याज चुकाने में चला जाता है देश का 20 फीसदी बजट – सरकार लगातार आमदनी से ज्यादा खर्च कर रही है। इसलिए देश पर कर्ज का भार बढ़ता जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2023 में ही देश पर कुल कर्ज 205 लाख करोड़ रुपए हो गया था। इसमें से केंद्र सरकार पर 161 लाख करोड़ रुपए का, जबकि राज्य सरकारों पर 44 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। देश की कुल आबादी 142 करोड़ मान लें तो आज के समय में हर भारतीय पर 1.40 लाख रुपए से ज्यादा का कर्ज है। हालात यह है कि केंद्र सरकार के सालाना बजट को अगर 100 रुपए माना जाए तो 20 रुपए तो सिर्फ कर्ज और उसके ब्याज चुकाने में चला जाता है। यह राशि देश के कुल रक्षा बजट की ढाई गुना, स्वास्थ्य बजट की 10 गुना और शिक्षा बजट की 7 गुना है।

2004 में जब मनमोहन सिंह सरकार बनी तो केंद्र सरकार पर कुल कर्ज 17 लाख करोड़ रुपए था। 2014 तक यह तीन गुना से ज्यादा बढ़कर ये 55 लाख करोड़ रुपए हो गया। इस तरह देश की आजादी के बाद 2014 तक 67 वर्षों में सभी पार्टीयों की सरकारों ने 55 लाख करोड़ का कर्जा लिया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 मार्च 2023 को संसद में बताया था कि 31 मार्च 2023 तक भारत सरकार पर 155 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज था जो सितंबर 2023 तक बढ़कर 161 लाख करोड़ हो गया। इसका मतलब ये है कि 6 महीने में ही केंद्र सरकार पर करीब 5 लाख करोड़ रुपए यानी 4% कर्ज बढ़ गया। अभी केंद्र सरकार पर 161 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। केंद्र पर कर्ज देश की सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में 60% से ज्यादा हो गया है। 
  
इसके समर्थन में कहा जाता है कि किसी देश के लिए कर्ज लेना हमेशा खराब नहीं होता है। सरकार कर्ज के पैसे को आय बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती है। कर्ज का पैसा जब बाजार में आता है तो इससे सरकार का राजस्व बढ़ता है। ये पैसा सरकार देश के लिए इंफ़्रा स्ट्रक्चर बनाने जैसे-वंदे भारत जैसी ट्रेन चलाने, रोड और एयरपोर्ट बनाने पर खर्च करती है, जो देश के विकास के लिए जरूरी है। भारत की इकोनॉमी 3 ट्रिलियन से ज्यादा की हो गई है। इस हिसाब से देखें तो 155 लाख करोड़ रुपए कर्ज ज्यादा नहीं है। सभी बड़े देश अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए कर्ज लेते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देशों में जापान, अमेरिका, चीन सम्पन्न देश कर्ज लेने में भारत से आगे है। लेकिन यह तुलना सही नहीं है। 

दरअसल अमेरिका जैसे देश ये कर्ज अपने ही रिजर्व बैंक से लेते हैं। इसके अलावा अमेरिका और चीन जैसे देशों के पास खुद का कमाया पैसा है। वहां की इकोनॉमी भारत से बहुत ज्यादा मजबूत है। उनके पास रिजर्व मनी भारत से कई गुना ज्यादा है। डॉलर दुनिया के कई देशों में करेंसी की तरह खरीदने-बेचने में इस्तेमाल होता है। इस स्थिति में अमेरिका और चीन जैसे देशों के लिए कर्ज चुकाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। जबकि भारत के मामले में ऐसा नहीं है। भारत वैश्विक संस्थाओं या बड़ी-बड़ी प्राइवेट कंपनियों, पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट और फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) से आता है। इस स्थिति में भारत के लिए कर्ज चुकाना ज्यादा मुश्किल होगा।

इसके अलावा सरकार जब कर्ज के पैसे को वहां खर्च करती है, जिससे रिटर्न नहीं आता है तो राजस्व घाटा बढ़ता है। कर्ज के पैसे का गलत इस्तेमाल हो तो महंगाई बढ़ सकती है। ऐसा हो भी रहा है। केंद्र सरकार ने कई फ्रीबीज योजनाओं की शुरुआत की है। इसमें 80 करोड़ लोगों को हर महीने मुफ्त अनाज, करीब 10 करोड़ महिलाओं को उज्जवला योजना के तहत मुफ्त गैस सिलेंडर, करीब 9 करोड़ किसानों को सालाना 6 हजार रुपए, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दो करोड़ लोगों को घर बनाने में आर्थिक सहायता आदि प्रमुख है। राजस्थान में इंदिरा गांधी फ्री मोबाइल योजना, फ्री स्कूटी योजना, फ्री राशन योजना, मध्यप्रदेश में लाड़ली बहिना जैसी योजनाएं भी शामिल हैं।

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