उद्यानिकी (Horticulture)

अधिक लाभ के लिये पपीता की खेती

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  • डॉ. निशिथ गुप्ता
    कृषि विज्ञान केन्द्र, देवास

 

20 नवम्बर 2022, अधिक लाभ के लिये पपीता की खेती  – पपीता उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाले प्रमुख फलों में से एक है। यह विटामिन ‘ए‘ व कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसके औषधीय गुणों एवं आर्थिक रुप से लाभकारी होने के कारण पिछले कुछ वर्षों से किसान भाइयों ने इसकी खेती की ओर अधिक ध्यान देना शुरु किया है, जिसके कारण क्षेत्रफल की दृष्टि से देखें तो आज यह हमारे देश के पांच प्रमुख फलों में से एक है। इसके फलों का दूध विभिन्न प्रकार के रोग एवं व्याधियों के उपचार के लिए उपयोग में लाया
जाता है।

भूमि

पपीते की सफल बागवानी के लिये गहरी और उपजाऊ, सामान्य पी-एच मान वाली बलुई दोमट मृदा जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो, उपयुक्त होती है। पपीते के पौधे जल भराव के लिए संवेदनशील होते हैं अत: वह क्षेत्र जहां पानी रुकने की संभावना होती है, इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होता हैं।

उन्नत प्रजातियां

वर्तमान में भारत में पपीते की कई किस्में उगायी जा रही हैं। इनमें प्रमुख रूप से 20 उन्नत किस्में हैं तथा कुछ स्थानीय व विदेशी किस्में हैं। स्थानीय किस्मों में रांची, बड़वानी तथा मधु बिन्दु प्रमुख हैं। विदेशी किस्मों में वाशिंगटन, सोलो, सनराइज सोलो एवं रेड लेडी प्रमुख हैं। पपीते की कुछ प्रमुख किस्मों की संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है।

पूसा नन्हा – यह पपीते की सबसे बौनी डायोसियस प्रजाति है। यह 30 सेमी की ऊंचाई से फलना प्रारंभ करता है। इस किस्म से एक पौधे से 25 कि.ग्रा. तक फल प्राप्त होता है। यह प्रजाति सघन बागवानी तथा गृह वाटिका के लिए काफी उपयुक्त पायी गयी है।

पूसा ड्वार्फ – यह एक डायोसियस प्रजाति है। इस किस्म के पौधे बौने होते हैं। इसमें फलन जमीन से 40 सेमी की ऊंचाई पर प्रारंभ होता है। एक फल का औसत वजन 0.5 से 1.5 कि.ग्रा. तक होता है। इसकी पैदावार 40-50 कि.ग्रा. प्रति पौधा है।

पूसा डेलिशियस – यह एक गायनोडायोसियस प्रजाति है। इसमें मादा और उभयलिंगी पौधे निकलते हैं तथा उभयलिंगी पौधे भी फल देते हैं। पूसा डेलिशियस 80 सेमी की ऊंचाई तक बढऩे पर फल देता है। इसके प्रत्येक फलों का औसत वजन 1-2 किग्रा तक होता है। एक पौधे से औसतन 45 किग्रा तक पैदावार प्राप्त हो जाती है।

पूसा मैजेस्टी – इस प्रजाति में भी पूसा डेलिशियस की भांति मादा एवं उभयलिंगी पौधे निकलते हैं। यह 50 सेमी की ऊंचाई से फल देता है तथा एक फल का औसत वजन 1.0-2.5 किग्रा तक होता है। इस किस्म के एक पौधे से 40 किग्रा तक फल प्राप्त होता है।

पूसा जायंट – यह भी एक डायोसियस प्रजाति है। इस किस्म के पौधे विशालकाय होते हैं, जिनमें फलन जमीन से 80 सेमी की ऊंचाई पर होता है। पूसा जायंट के फल बड़े होते हैं तथा एक फल का वजन 1.5 से 3.5 किग्रा तक होता है। प्रति पौधा औसत उपज 30-35 किग्रा तक होती है।
सूर्या – इस गायनोडायोसियस प्रजाति के फल मध्यम आकार के होते हैं और इनका औसत वजन 600-800 ग्राम तक होता है। फल की भंडारण क्षमता भी अच्छी है। प्रति पौधा औसत उपज 55-65 किग्रा तक होती है।

कुर्ग हनीड्यू – यह एक गायनोडायोसियस प्रजाति है। इसके पौधे मध्यम आकार के होते हैं तथा एक फल का औसत वजन 1.5 से 2.0 किग्रा तक होता है। प्रति पौधा औसतन 70 किग्रा तक उपज प्राप्त हो जाती है।

को. 1 – यह एक डायोसियस किस्म है। इसके पौधे छोटे तथा फल मध्यम आकार के गोल होते हैं। एक पौधे से लगभग 40 किग्रा तक उपज प्राप्त होती है।

को. 2 – इसके फलों का औसत वजन 1.5 से 2.0 किग्रा तक होता है तथा प्रति पौधा औसत उपज 80-90 फल प्रति वर्ष होती है।

को. 3 – यह गायनोडायोसियस प्रजाति है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं, जिनका औसत वजन 500 से 800 ग्राम तक होता है। प्रति पौधा औसत उपज 90 से 120 फल होती है।

को. 4 – इसके फल मध्यम आकार के होते हंै और औसत वजन 1.2 से 1.5 किग्रा तक होता है। औसत उपज 80 से 90 फल प्रति पौधा होती है।

प्रवर्धन

पपीता का प्रवर्धन मुख्य रूप से बीज के द्वारा ही किया जाता है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में पपीता लगाने के लिए लगभग 2500 सें 3000 पौधों की आवश्यकता होती है, जोकि गायनोडायोसियस किस्मों मे लगभग 80-100 ग्राम बीजों सें प्राप्त हो जाते हंै जबकि परंपरागत किस्मों के लिए 400-500 ग्राम बीजों की आवश्यकता होती है।

पौधे तैयार करने की विधि:

पपीते का स्वस्थ पौध तैयार करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। बीज बोने के लिए 6ङ्ग8’’ इंच आकार के पॉलीथिन की थैलियों का प्रयोग किया जाता हैं। बोने से पहले किसी भी रसायनिक फफूंदीनाशक से बीजों का उपचार करें तथा बीजों को 1.0 सेमी की गहराई पर थैलियों में बीचों-बीच बोयें। बीज बोने के बाद उनकी समय-समय पर सिंचाई करते रहें। साधारणत: पपीते का बीज नर्सरी में रोपने की निर्धारित तिथि से दो महीने पहले बोयें। इस प्रकार पौधे मुख्य क्षेत्र में रोपाई के समय करीब 20 से 25 सेमी ऊंचाई के हो जाते हैं।

खेत की तैयारी एवं पौध रोपण

पपीते के पौधे लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करके उसे समतल कर लेें ताकि सिंचाई के समय या वर्षा ऋतु में जलभराव न हो। पपीता के पौधे मुख्य खेत में लगाने के लिए 2ङ्ग2 मीटर की दूरी पर 50ङ्ग50ङ्ग50 सेमी (लंबाईङ्ग चौड़ाईङ्गगहराई) आकार के गड्डे खोद ले परन्तु बौनी किस्मों जैसे पूसा नन्हा के लिए यह दूरी 1.5ङ्ग1.5 मीटर रखे। पौधों की रोपाई करते समय यह ध्यान रखें कि डायोसियस किस्म के 2-3 पौधे तथा गायनोडायोसियस किस्म में एक पौधा प्रति गड्ढे में लगायें। रोपण के बाद प्रत्येक पौधे की हल्की सिंचाई करें।

खाद एवं उर्वरक

पपीते के एक फल देने वाले पौधे को 200-250 ग्राम नाइट्रोजन, 200-250 ग्राम फास्फोरस तथा 250 से 500 ग्राम पोटाश देने से अच्छी उपज प्राप्त होती है। उपरोक्त पोषक तत्वों के लिए 450 से 550 ग्राम यूरिया, 1200 से 1500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 450-850 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश लेकर उन्हें आपस में मिला लें। इसके बाद चार बराबर भागों में बांटकर प्रत्येक माह के शुरू में जुलाई से अक्टूबर तक पौधे की छांव के नीचे पौधे से 30 सेमी की गोलाई में देकर मृदा में अच्छी तरह मिला दें। खाद देने के बाद हल्की सिंचाई कर दें। इसके अतिरिक्त सूक्ष्म तत्व बोरॉन (1 ग्राम प्रति लीटर पानी में) तथा जिंक सल्फेट (5 ग्राम प्रति लीटर पानी में) का छिडक़ाव पौध रोपण के चौथे एवं आठवें महीने में करें।

सिंचाई

पपीता उथली जड़ वाला पौधा होने के कारण सही समय पर पानी देना जरूरी होता है। जब तक पौधा फलन में नहीं आता तब तक हल्की सिंचाई करें, जिससे पौधे जीवित रह सकें। अधिक पानी देने से पौधे काफी लम्बे हो जाते हैं तथा विषाणु रोग का प्रकोप भी अधिक होने की संभावना होती है। फल लगने से लेकर पकने तक पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। पानी की कमी के कारण फल झडऩे लगते हैं। गर्मी के दिनों में एक सप्ताह के अंतराल पर तथा जाड़े के दिनों में 12-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। मृदा नमी को संरक्षित करने के लिए पौधे के तने के चारों तरपफ सूखे खरपतवार या काली पॉलीथिन की पलवार बिछायें।

फलों की तुड़ाई

पपीता का पौधों में रोपण के लगभग 9-10 महीनों के अन्दर फल लगने प्रारम्भ हो जाते है। फल लगने के 120-130 दिन के बाद वो पकने लगते हैं उस समय इन्हे तोड़ लें। फलों का रंग गहरा हरे रंग से बदलकर हल्का पीला होने लगता है यह रंग फल के शीर्ष भाग सें बदलना प्रारम्भ होता है। जब पीलापन शुरू हो जाये तब डंठल सहित फल की तुड़ाई कर लें।

उपज

सामान्यत: पपीता से प्रति पौधा लगभग 50 से 80 किग्रा. तक उपज प्राप्त हो जाती है।

प्रमुख रोग

तना गलन (कॉलर रॉट) – वर्षा ऋतु में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की जड़ें व नीचे से तना गलने लगता है। इसके अधिक प्रकोप से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं व पौधों की बढ़वार रुक जाती है। फलों का आकार छोटा रह जाता है। कुछ समय बाद पूरा पौधा सूख जाता है।

नियंत्रण:
  • बगीचे में जल निकास का उचित प्रबंध हो।
  • रोगी पौधों को जड़ सहित उखाडक़र जला दें
  • जून, जुलाई और अगस्त के महीने में पौधों पर जमीन की सतह से 50 से.मी. की ऊँचाई तक बोर्डो मिश्रण लगाने से रोग से बचा जा सकता है।
  • यदि तने में धब्बे दिखाई देते हों तो (मेटालैक्सिल+मेन्कोजेब) का घोल बनाकर 2 ग्राम/लीटर पानी की दर से पौधे के तने के पास मिट्टी में छिडक़ाव करें।

लीफ कर्ल – यह एक गंभीर विषाणु रोग है। पत्तियों में विकृति का आ जाना और शिराओं का पीला होना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। रोग से प्रभावित पत्तियां छोटी एवं झुर्रीदार हो जाती हैं तथा नीचे की ओर मुड़ जाती हैं। बाद में ये पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं। रोगग्रस्त पौधे पर फल बहुत कम और छोटे आकार के लगते हैं जिससे पौधे की उपज कम हो जाती है। यह रोग सफेद मक्खी से फैलता है।

नियंत्रण:
  • सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए डाइमिथिएट 1 मिली/लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें।
  • रोगी पौधों को उखाडक़र जला दें।

मौजेक रोग – इस रोग का प्रकोप पौधे के सभी अवस्थाओं में हो सकता है, परन्तु यह नये पौधे को काफी प्रभावित करता है। ऊपर की नयी पत्तियाँ आकार में छोटी हो जाती है तथा फफोले की तरह धब्बे दिखाई पडऩे लगते हैं। पौधे की वृद्धि काफी कम तथा फल के आकार छोटे हो जाते हैं। इस रोग को फैलाने वाला कीट एफिड होता हैं।

नियंत्रण:
  • रोगग्रसित पौधे को उखाडक़र नष्ट कर दें।
  • यह रोग एफिड द्वारा फैलता है अत: वाहक कीट के प्रबंधन हेतु ऑक्सीडेमेटॉन मिथाइल 25 ई.सी. घोल का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. का 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें।
  • नीम आधारित कीटनाशी का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पौधे पर छिडक़ाव करें।

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