सालभर करें लीची बगीचे का रखरखाव
- भाकृअनुप-राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र मुशहरी,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
10 जून 2022, सालभर करें लीची बगीचे का रखरखाव –
जनवरी
- लीची माइट, लीची विविल (घुन), लीफ माइनर आदि से ग्रसित टहनियों को निकाल कर नष्ट कर दें।
फरवरी
- 10 प्रतिशत फूल खिलने की अवस्था में मधुमक्खी के 10-15 बक्से प्रति हे. बागान में रखें ताकि पूर्णरूपेण परागण हो सके।
- फल लगने एवं मधुमक्खी के बक्से हटाने के बाद ही रसायनिक कीटनाशी या अन्य दवा का बागान में छिडक़ाव करें।
मार्च
- बौर निकलने के 15 दिन बाद डायफेनकोनाजॉल (25 ई.सी.) 10 मिली लीटर/लीटर या कार्बेन्डाजिम 10 ग्राम/ लीटर घोल का पहला छिडक़ाव करें।
- फल लगने के 7-10 दिन बाद प्लानोफिक्स 2.0 मिली लीटर/5 लीटर या एनएए 20 पीपीएम (20 मिलीग्राम/लीटर) के घोल का पहला छिडक़ाव करें ताकि फल झडऩे की समस्या न आये।
- बागों में नमी की कमी होने पर नियमित सिंचाई करते रहें।
- फलों के मसूर या लौंग दाने की अवस्था में निम्बीसिडीन या नीम बीज अर्क (5 मिली लीटर/लीटर) या पंचगव्य (30 मिली लीटर/ लीटर) या वर्मीवाश 10 मिली लीटर/लीटर का छिडक़ाव करें जिससे फल बेधक कीट के प्रभाव को कम किया जा सके। वैसे बागानों में जहां पिछले वर्ष में फल बेधक कीट का प्रकोप ज्यादा रहा हो उसमें नोवाल्यूरान (10 ईसी) 1.5 मिली लीटर/लीटर का घोल छिडक़ें।
अप्रैल
- फल लगने की प्रक्रिया होने के बाद नत्रजन की एक तिहाई मात्रा (500-600 ग्राम यूरिया प्रति पौधा) तथा बचे पोटाश की मात्रा (600 ग्राम प्रति पौधा) का व्यवहार कर हल्की सिंचाई करें।
- फलों के फटने की समस्या से बचाव के लिए फल लगने के 15-20 दिन बाद बोरेक्स (4 ग्राम/लीटर) का 2 छिडक़ाव 15 दिन के अंतराल पर करें। ध्यान रहे कि बागों में नमी की कमी न हो।
- बड़ी इलायची आकार के फल होने पर प्लानोफिक्स 2.0 मिली लीटर/5 लीटर या एनएए 20 पीपीएम (20 मिलीग्राम/लीटर) के घोल का दूसरा छिडक़ाव करें ताकि फल झडऩे की समस्या न आए।
- फलों के गुच्छों को नान ओवेन पॉलीप्रोपलीन थैलियों में ढकें।
- फलों पर लाली आने के पहले निम्बीसिडीन (5 मिली/लीटर) या पंचगव्य (30 मिली/लीटर) घोल का 7 दिनों के अंतर से दो छिडक़ाव करें ताकि फलों को फल बेधक कीट के प्रभाव से बचाया जा सके। ज्यादा प्रकोप की स्थिति में फल पकने के 20-25 दिन पहले नोवाल्यूरान (10 ईसी) 1.5 मिली/लीटर या थियाक्लोरप्रिड (21.7 एससी) 0.5 मिली/ लीटर के घोल का छिडक़ाव करें।
- अंतरवर्तीय फसलें जैसे हल्दी, अरबी आदि की बुवाई करें।
मई
- बागों में फल पकने तक सिंचाई का समुचित प्रबंधन करें।
- फल बेधक कीट के प्रभाव को कम करने के लिए ऊपर बताई गई दवा का प्रयोग करें।
- मई के तीसरे सप्ताह से फलों की तुड़ाई करें। तुड़ाई प्रात:काल 4-8 बजे तक ही करें। फलों को बाग में ही ठंडे स्थान पर झोपड़ी बनाकर रखें जहां फलों की छंटाई एवं पैकेजिंग की जा सके।
- पैकेजिंग हाऊस की सुविधा न होने पर फलों को धूप से बचाते हुए वहां पहुंचायें ताकि छंटाई पैकेजिंग एवं भण्डारण किया जा सके।
- शीतलन की कड़ी के साथ ही रेफर वैन से कार्डबोर्ड के डब्बों में फलों को बाहर विपणन के लिए भेजने का प्रबंध करें।
जून
- तुड़ाई उपरांत पेड़ों की छंटाई करें। कीड़ों से प्रभावित टहनियां, सूखी तथा धड़ों से निकल रही टहनियों और पेड़ के उचित फैलाव से बाहर जा रही टहनियों को काटकर नष्ट कर दें ताकि समुचित प्रकाश एवं हवा पौधों को मिल सके।
- बागों की हल्की जुताई करें जिससे खरपतवार नष्ट हो जायें एवं प्रकाश तथा हवा का आवागमन हो सके। जुताई उपरांत खेत में पाटा जरूर लगा दें।
- पहली अच्छी वर्षा के साथ प्रति पौधा 60-70 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 2-3 किलोग्राम नीम या करंज की खली, 11 से 12 किलोग्राम यूरिया, 1.5 किलोग्राम डीएपी एवं 10 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधा व्यवहार करें।
- खाद एवं उर्वरक पेड़ों के फैलाव से लगभग 1 मीटर अंदर 20-25 सेमी चौड़ी एवं गहरी नाली बनाकर दें। कम नमी की स्थिति में हल्की सिंचाई करें ताकि पौधे पोषक तत्वों को अच्छी तरह ग्रहण कर सकें।
- अंतरवर्तीय फसलें जैसे लोबिया, मक्का, या हरी खाद के लिए ढेंचा, सनई, आदि की बुवाई करें।
जुलाई
- नई कोपलों को पत्ती खाने वाले कीड़ों से बचाने हेतु क्लोरोपायरीफॉस (20 ईसी) 2.0 मिली/लीटर के घोल का छिडक़ें। साथ ही साथ मकड़ी के प्रकोप को कम करने के लिए ग्रसित टहनियों को काट कर नष्ट कर दें।
अगस्त
- बागों में जल जमाव दूर करने के लिए उचित जल निकास की व्यवस्था करें।
- शाखाओं पर अगर छिलका खाने वाले कीड़ों का प्रकोप नजर आये तो उसका उपचार करें। जाला को साफ कर छिद्र में सायकिल स्पोक घुसाकर कीड़ों को नष्ट करें एवं डाइक्लोरोवॉस (76 ईसी) कीटनाशकी का सान्द्र घोल 1-2 बूंद छिद्र में डालकर छिद्रों को गीली मिट्टी से बंद करें।
- बागों की जुताई करें ताकि हरी खाद फसलें अच्छी तरह से खेत में मिल जायें एवं खरपतवार आदि भी नष्ट हो जायें और वायु संचार अच्छा हो सके।
- पुराने बागों के जीर्णोद्धार का कार्य इसी महीने में किया जाए।
सितम्बर
- लीची बाग में नियमित पुष्पन व फलन के लिए पौधों के तीन-चौथाई प्राथमिक शाखाओं में 2 से 3 मिली मीटर चौड़ा आकार में छाल हटाकर वलय/छल्ला (गर्डलिंग) बनाने से टहनियों में मंजर/फूल निकलते हैं। शाही किस्म में गर्डलिंग अगस्त के अंतिम सप्ताह से तथा चाइना किस्म में सितम्बर के प्रथम सप्ताह में करें।
- नियमित पुष्पन व फलन हेतु वलयन (गर्डलिंग) प्रत्येक साल करना अनिवार्य है तथा दूसरे वर्ष वलयन प्रथम वर्ष से 1.5 इंच ऊपर करें।
- छिलका खाने वाले कीड़ों के प्रकोप के लिए ऊपर बताये विधि को अपनायें या दुहरायें।
- नई कोपलों/पत्तियों को खाने वाले कीड़ों से बचाव के लिए क्लोरोपायरीफॉस (20 ईसी) 2.0 मिली/लीटर के घोल का छिडक़ाव करें।
अक्टूबर
- बाग की जुताई न हुई हो तो जुताई कर पाटा मार दें।
- मकड़ी से प्रभावित टहनियों/पत्तियों को काटकर नष्ट कर दें एवं प्रोपरजाइट (57 ईसी) 3.0 मिली/लीटर के घोल का छिडक़ाव करेंं।
- इस माह में तांबा (कॉपर) की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं। इसकी कमी को दूर करने के लिए 2 ग्राम प्रति लीटर कॉपर सल्फेट के घोल का पहला छिडक़ाव करें। आवश्यकता अनुसार दूसरा छिडक़ाव 15 दिन के बाद करें।
नवम्बर
- धड़ों से या कटे भाग से टहनियां निकल रही हों तो उसे काटकर नष्ट करते रहें। छिलका खाने वाले कीड़ों पर ध्यान रखें। प्रकोप रहने पर ऊपर बताये गये विधि से उपचार करें।
- वर्षा खत्म होने पर बाग की हल्की जुताई/सफाई के बाद पेड़ों के तनों को कम से कम 1.5 मीटर ऊंचाई तक बोर्डो लेप (चूना : तुतिया : पानी 1:1:10) से पुताई करें।
दिसम्बर - जिंक सल्फेट (33 प्रतिशत) 2 ग्राम/लीटर के घोल का छिडक़ाव करें जिससे मादा फूलों की संख्या में वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है। आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद दूसरा छिडक़ाव करें।
- पोषक तत्वों की आवश्यकता के लिए मृदा व पत्तियों की जांच करवायें तद्नुसार पोषक तत्वों का व्यवहार करें।
सामान्य सुझाव
- सामान्यत: नवम्बर माह से फूल आने तक बाग की सिंचाई न करें। अति आवश्यक होने पर ही हल्की सिंचाई दें।
- बाग में पर्याप्त नमी की अवस्था में ही खाद एवं उर्वरकों का व्यवहार तथा कोई छिडक़ाव करें।
- नमी संरक्षण के लिए पलवार (मल्चिंग) का प्रयोग करें।
- रसायनिक कीटनाशी का व्यवहार तभी करें जब कीटों का प्रकोप नियमित रूप से बढ़ रहा हो अन्यथा समेकित कीट प्रबंधन तकनीक को अपनायें। रसायनिक घोल बनाने में 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के दर से स्ट्रीकर को अवश्य मिलायें।