Horticulture (उद्यानिकी)

सोयाबीन की उन्नत उत्पादन तकनीक

Share

सोयाबीन की उन्नत उत्पादन तकनीक

बुवाई के समय किये जाने वाले कार्य:-

सोयाबीन  बीज- विभिन्न जातियों के बीज आकार के हिसाब से उपयोग करना चाहिये। छोटे दाने वाले सोयाबीन  की किस्मों (जे. एस. 97-52) की बीजदर 60-70 कि.ग्रा., मध्यम दाने वाली किस्मों ( जे.एस. 335, जे. एस. 93-05) की बीजदर 70-75 कि.ग्रा. तथा बढ़े दाने वाली किस्मों ( जे. एस. 95-60) की बीज दर 90-100 कि.ग्रा. रखना चाहिये। बीज को फफूंदनाशक दवा कार्बोक्सिन-थायरम (बीटावैक्स पावर) की 2 ग्राम मात्रा द्वारा अथवा ट्राइकोडर्मा विरिडी की 5-8 ग्राम मात्रा के प्रति कि.ग्रा. का उपचार करना आवश्यक है ताकि बीज एवं मृदा जनित बीमारियों से बीज की रक्षा जा सकें।

फफूंदनाशक दवा से उपचार के पश्चात् 5 ग्राम राइजोबियम व 5 ग्राम पी.एम.बी. से बीज को निवेशित करना चाहिये। राइजोबियम जीवाणु, पौधों में जड़ ग्रंथियों की संख्या बढ़ाने में सहायक होते हैं जिससे भूमि में लगभग 20 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हे. वायुमंडल से स्थिर की जाती है तथा पी.एस.बी. कल्चर जमीन में स्थिर स्फुर को घुलनशील अवस्था में लाकर पौधों को उपलब्ध करवाता है।

बुवाई – अच्छे अंकुरण के लिये बोने के समय खेत में 10 सेमी. गहराई तक उपयुक्त नमी होनी चाहिये। बोआई हेतु किस्म के अनुसार कतार से कतार की दूरी 30-45 से.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 6-8 से.मी. रखें। बीज को 3.5 से.मी. से अधिक गहराई पर नहीं बोना चाहिये सोयाबीन की 9 लाइनों के बाद एक लाइन की जगह निरीक्षण पट्टी के रूप में छोड़ें। कुल मिलाकर एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में कुल 4-4.5 लाख पौधों की संख्या जरूर होनी चाहिए।

मेढऩाली पद्धति से सोयाबीन की खेती-

मेढ़़वाली पद्धति से सोयाबीन की बुवाई करने से वर्षा की अनिश्चितता से होने वाली हानि की संभावना को कम किया जा सकता है। मेढऩाली पद्धति में बीजाई मेढ़ो पर की जाती है तथा दो मेढ़ों के मध्य लगभग 15 से.मी. गहरी नाली बनाई जाती है तथा मिट्टी को फसल की कतारों की तरफ कर दिया जाता है। बीज की बीजाई मेढ़ पर होने से अति वर्षा या तेज हवा के समय पौधों के गिरने की संभावना कम हो जाती है तथा अतिरिक्त पानी का निकास हो जाता है। यदि फसल अवधि में अवर्षा या लम्बे अंतराल से वर्षा न होने की स्थिति में नमी की कमी नही हो पाती, क्योंकि खेत की नालियो में नमी की उपलब्धता ज्यादा लम्बे समय तक बनी रहती है। साधारण सीडड्रिल में एक छोटी सी लोहे की पट्टी लगाकर बुबाई का कार्य किया जा सकता है अथवा साधारण सीडड्रिल द्वारा समतल बुवाई करने के पश्चात कतारों के बीच देशी हल चलाकर नाली का निर्माण किया जा सकता है। बुवाई पश्चात् एवं अंकुरण के बाद नाली को अंत मे मिट्टी द्वारा बॉंध दिया जाता है जिससे वर्षा के पानी का भूमि में अधिक से अधिक संरक्षण हो। वर्तमान सीडड्रिल के आगे मेढ़वाली (रीज एवं फरो पद्धति) यंत्र का उपयोग करके सीधे बुआई की जा सकती है।

सिंचाई- सोयाबीन में पुष्पन अवस्था व फली अवस्था पर नमी की कमी होने पर सिंचाई करें ।

खरपतवार नियंत्रण

सोयाबीन की फसल में खरपतवारों को नष्ट न करने से उत्पादन में 25-70 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। खरपतवार, फसल के लिये भूमि में निहित पोषक तत्वों में से 30-60 कि.ग्रा. नत्रजन, 8-10 कि.ग्रा. स्फुर एवं 40-60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि से शोषित करते है, जिससे पौधों की विकासगति धीमी पड़ जाती है और उत्पादन स्तर गिर जाता है इसके अतिरिक्त खरपतवार फसल को नुकसान पहॅुंचाने वाले अनेक प्रकार के कीड़े व बीमारियों के रोगाणुओं को भी आश्रय देते हैं। खरपतवार व सोयाबीन फसल की प्रतिस्पर्धा अवधि 20-35 दिन रहती है अत: इससे पूर्व नींदा नियंत्रण आवश्यक है।

प्रथम निदाई बुवाई के 20-25 दिन बाद व दूसरी निंदाई 40-45 दिन की अवस्था पर करें। अथवा

बोनी के बाद तथा अंकुरण के पूर्व एलाक्लोर 50 ई.सी. 4 लीटर या पेंडीमिथालीन 30 ई.सी. 3 लीटर को 600-700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के मान से भूमि में छिड़काव करें। तत्पश्चात् 25-30 दिन की अवस्था पर निदाई करें।

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *